मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
|
4 पाठकों को प्रिय 161 पाठक हैं |
जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
नये मकान में सोने और उठने-बैठने की पूरी सहूलियत थी, लेकिन रसोई का इंतजाम पेड़ के नीचे ही रखना पड़ा। अगले दिन रविवार था-छुट्टी का दिन! इसलिए काफी देर तक लेटे-लेटे हम समुद्र की ओर से आती हुई ठंडी हवा का आनंद लेते और सवेरे के समुद्री-दृश्यों को देखते रहे। उधर पत्नी नीचे उतरकर नाश्ते का प्रबन्ध करने लगी। कुछ ही देर मे ताजे नाश्ते की प्लेटें हमारे सामने आ गई और हमारे चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे।
नाश्ते के दौरान हम सब आपस में बातें भी करते जा रहे थे। तभी अचानक यह तय हुआ कि अब तक जिन-जिन जगहों और चीजों की खोज हमने की है, और जो चीजें हमने बनाई हैं उनके नाम भी रखने चाहिए, ताकि बातचीत में कभी परेशानी न आने पाये। काफी सलाह-मशविरा के बाद जगहों और चीजों के नाम रख दिए गए।
जिस नाव से हम लोग टूटे जहाज से इस टापू पर आए उसका नाम 'दि डिलीवरेंस' तो पहले ही रखा जा चुका था। जहां हमारी नाव किनारे आकर लगी थी, उस जगह का नाम 'सुरक्षातट' तय हुआ, और 'सुरक्षातट' के पास वाले पहले मकान का नाम तय हुआ-तंबू घर। नदी पर हमने जो पुल बनाया था उसे 'फेमिली ब्रिज' पुकारना तय हुआ और मचाननुमा नये मकान का नाम 'घोंसला' निश्चित किया गया।
अंत में मेरे मंझले लड़के अर्नेस्ट ने एक बात और कही। उसने कहा, ''पापा, अब तो यह जगह वीरान नहीं रही न!
अब हम सब यहा के निवासी हैं और यह हमारा देश है। इसलिए मेरी इच्छा है कि हम अपने इस टापू को एक देश मानकर इसका भी नाम रख दे।''
अपनी तब तक की सारी मेहनत का असली महत्त्व मुझे उसी समय पता चला। 'इसका मतलब कभी हम लोगों को भी उसी तरह याद किया जाएगा। जिस तरह लोग कोलम्बस और मार्कोपोलो को याद करते हैं! तब तो हर हालत में हमें अपने टापू का नाम रख देना चाहिए,' मैंने मन ही मन सोचा। हम टापू के नाम के बारे में सोच-विचार करने लगे। थोड़ी देर बाद हमने उसका नाम 'अद्मुत द्वीप' घोषित कर दिया।
सोमवार का सुबह मुर्गियों का अजीब-सा शोर सुनकर हमारी नींद टूटी। पत्नी ने कहा, ''यह मुर्गियां भी क्या अजीब है! अंडे तो एक भी नही देतीं, लेकिन शोर सुबह-सुबह ही मचा देती हैं।''
|