लेख-निबंध >> भूख भूखदिनेश चन्द्र
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अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवाद के विरुद्ध हुए युद्ध एवं स्थितियों के विशेष संदर्भ में लिखा गया दस्तावेज
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
लगभग 450 वर्ष पूर्व उत्पन्न अति मेधावी पुरुष-जिसने भविष्य परखा एवं
देखा, अद्भुत भविष्यवाणियाँ कीं, जो सच हो सकती हैं या नहीं भी।
उसने युद्ध की तरह खींचती कड़ियों से आग्रह किया। क्या-क्या घटनाएँ होंगी, जो विश्वयुद्ध की ओर ले जायेंगी, उसने बताया।
उसने भविष्यवाणी की, कि 1998 से आगे आने वाले तीन वर्ष में ब्रह्माण्ड बिखर सकता है और महाविनाश हो सकता है।
उसने यह भी कहा कि इस महायुद्ध के अन्तिम चरण में एक ऐसा पुरुष उभर कर सामने आयेगा जो मानवता को विनाश से बचाएगा। इस पुरुष की शक्ल नोस्त्रदमस के अनुसार ओसामा बिन लादेन की आकृति से मिलती है.....
उसने युद्ध की तरह खींचती कड़ियों से आग्रह किया। क्या-क्या घटनाएँ होंगी, जो विश्वयुद्ध की ओर ले जायेंगी, उसने बताया।
उसने भविष्यवाणी की, कि 1998 से आगे आने वाले तीन वर्ष में ब्रह्माण्ड बिखर सकता है और महाविनाश हो सकता है।
उसने यह भी कहा कि इस महायुद्ध के अन्तिम चरण में एक ऐसा पुरुष उभर कर सामने आयेगा जो मानवता को विनाश से बचाएगा। इस पुरुष की शक्ल नोस्त्रदमस के अनुसार ओसामा बिन लादेन की आकृति से मिलती है.....
समर्पण
यह कृति उन सभी धर्मावलम्बियों को सहृदय भेंट
है, जो सत्य को स्वीकार करते हैं तथा इन्सानियत को सर्वप्रथम धर्म मानते हैं।
धर्मान्धुकरण का बहिष्कार कर धर्म के सत्य, सुन्दर एवं शिव स्वरूप का
अनुसरण करते हैं। ईश्वर, गॉड एवं खुदा को एक समझते हैं तथा सभी धार्मिक
ग्रन्थों का सम्मान करते हैं....
सर्वोपरि उन्हें जो इन्सान इन्सान में भेद नहीं करते तथा हर इन्सान को भूख, बीमारी एवं दुःख दर्द से उबारने में सहायता करते हैं। हर इन्सान की भूख एवं दुःख दर्द को अपना समझते हैं तथा उनके निवारण में अथक सहायता करते हैं....
सर्वोपरि उन्हें जो इन्सान इन्सान में भेद नहीं करते तथा हर इन्सान को भूख, बीमारी एवं दुःख दर्द से उबारने में सहायता करते हैं। हर इन्सान की भूख एवं दुःख दर्द को अपना समझते हैं तथा उनके निवारण में अथक सहायता करते हैं....
-डॉ. दिनेश चन्द्र
प्राक्कथन
भूख मेरी मानसिकता को सदा ग्रसित करती है और
मैं सोचता रहा
हूँ कि क्या भूख का निवारण नहीं किया जा सकता ? प्रकृति को इतना सब कुछ
दिया है कि इस पर निवास करने वाले हर जीव की भूख संतप्त हो सकती है,
किन्तु हमारी हवस ने कभी भी इन्सान की भूख को संतप्त नहीं होने दिया और
यह निरन्तर बढ़ती जा रही है। एशिया और अफ्रीका में करोड़ों बच्चे भूख से
तड़प रहे हैं, हजारों की भूख से मृत्यु हो जाती है और विश्व के संपन्न
देशों का अनाज-गोदामों में सड़ता रहता है। हर मनुष्य अजगर की भांति अपना
मुख खोले विश्व की सारी सम्पदा को अपने पेट में संग्रहित करने में लगा है।
एक बार संपन्न हो जाने के पश्चात वह सिर्फ अपना पेट भरने में लग जाता है,
दूसरों के दुःख दर्द, भूख-पीड़ा से द्रवित नहीं होता। मनुष्य जानवरों से
अधिक क्रूर होता जा रहा है। उसकी स्वार्थपरता की कोई सीमा नहीं है। मैंने
अपने ही देश में छोटे-छोटे बच्चों को भूख से बिलखते देखा है। माँ की ममता
को विवशता के आवेश में बँधे देखा है और देश के नेताओं के बड़े-बड़े
व्याख्यान देते देखा है। किसी को भी निर्धनों के दुःख से द्रवित होते नहीं
देखा। सरकार के तंत्रवाद की व्यवस्था ने कभी पैसा गरीबों के घर तक आने
नहीं दिया और सरकारी प्रबन्धक वितरण, धन वितरण के झूठे आँकड़े सरकार को
भेजकर उसे संतुष्ट करते रहे हैं। मंत्री से लेकर नीचे तक जाने वाली
व्यवस्था पूर्णतः चरमरा गई है और स्वार्थपरता ने अपनी चरम सीमा छू ली है।
भारत में स्व. लालबहादुर शास्त्री ऐसा एक भी प्रधानमंत्री पैदा नहीं हुआ,
जिसने दीन दुःखियों के दर्द को समझा है। किसी को भी देश से, देशवासियों से
कोई सरोकार नहीं है। कोई जनकल्याण की बात नहीं सोचता। गरीब कहे जाने वाले
भारत देश में करोड़ों रुपयों का व्यय मंत्रियों, सांसदों के मतों में खर्च
किया जा रहा है, जिसे मीडिया कभी-कभी उठाकर फिर चुप हो जाता है। मनुष्य
में मनुष्य का भय इतना घर कर गया है कि विरला ही सच्चाई को सामने रखने का
साहस करता है यह सोच कर कि एक बड़ा शक्तिशाली तबका अपनी सामर्थ्य का
प्रयोग कर उसका दमन कर देगा और सच्चाई के स्वर उसके दमनचक्र में फँसकर
विलीन हो जाएँगे।
भूख का दलदल निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। बच्चों के भूख-पीड़ा के स्वर ठेठी लगे कर्णों को नहीं छूते। माँ के अन्तःकरण से द्रवित हो रहे स्वर किसी को कल्याण की तरफ प्रेरित नहीं करते। भूख की परिभाषा ही बदल गई है। सब कुछ हासिल कर उसे कठोरता से संग्रहीत करने की भूख का व्यापक रूप आज के समाज में सरलता से देखा जा सकता है। धन-संग्रह, पदार्थ-संग्रह, संसाधन, की कोई सीमा नहीं रह गई है। सबको अपने स्वार्थ सिद्ध की ही पड़ी है। राजनीति एक अखाड़ा बन कर रह गई है, जिसमें शक्तिशाली दमनकारी व्यक्ति की चढ़ बनी है। सद्पुरुष एवं योग्य पुरुष राजनीति में भाग ही नहीं लेते, इससे कतराते हैं। यदि कुछ सद्पुरुष जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर, देशसेवा की भावना से इसमें भाग लेते हैं, वे समय से पहले ही क्रूर शक्तिशाली व्यक्ति उनका दमन कर देते हैं। और आतंक का सहारा लेकर शासन की बागडोर अपने हाथों में ले लेते हैं। रावण की तरह संसार को आतंकित सारे कुकर्म करते हैं, राज्यभोग करते हैं। संसार की सुखशांति हरते हैं। उनका विरोध करने वाले चेतन प्राणियों की हत्या करते हैं, करवाते हैं।
भय से ग्रसित समाज का विवेक शून्य हो गया है। चेतना कुण्ठित हो गई है। शरीर, मानसिक एवं शारीरिक वेदना से ग्रसित शिथिल हो गया है। संसाधन जनता तक पहुँचते ही नहीं हैं और निर्धनता करोड़ों के घर में ठीक उसी तरह से ठहरती हुई है, जैसे कि परतंत्र देश में विद्यामान था। ऐसी विषम परिस्थिति में उन स्वार्थपरक लोगों की ओर आशा से देखना जो सिर्फ अपने स्वार्थ को पूरा करने में लगे हैं, दुःखदायी होगा। समाज को किसी ओर करुणा से देखनी नहीं है। जो संसाधनहीन समाज है, उसे एकजुट होकर दुःख निवारण की ओर प्रयास करने होंगे। उन लोगों को अपना नेता चुनना होगा जो सद्पुरुष हैं, योग्य हैं और जनकल्याण की भावना से ओतप्रोत हैं। ऐसे पुरुष आज भी हमारे समाज में हैं, जिन्हें जनता को सक्रिय कर गंगा की पावन धारा को गतिमय करना होगा और एक ऐसे समाज, देश का निर्माण करना होगा, जिसमें देश के संसाधन हर व्यक्ति तक पहुँच सकें और देश का समग्र विकास हो सके। अनाज के गोदामो की निर्धनों/भूखों के लिए खोलना होगा। संसाधन/धन का सम्यक वितरण करना होगा और तिजोरियों में कैद स्वर्ण का आभा से सम्पूर्ण देश को आलोकित करना होगा। हम हिंसा द्वारा सम्यक-वितरण या विकास की बात नहीं कर रहे हैं। अहिंसा के मार्ग पर चलकर जन शक्ति से जन इच्छा को पूर्ण करने की बात कर रहे हैं। खाली पेटों में भोजन पहुँचाने की बात कर रहे हैं। भूख से तड़पते रोते विलखते बच्चों के करुणा भरे स्वर शांत करने, उन्हें समुचित भोजन देने की बात कर रहे हैं। गणतंत्र को सच्चा स्वरूप देने की बात कर रहे हैं। सम्पूर्ण मानव समाज के विकास, उन्नति एवं सुख, शांति प्रदान करने की बात कर रहे हैं। इन सबको प्राप्त करने के लिए मानव को स्वयं जागरूक करना होगा पड़ेगा; स्वयं की जनशक्ति का मान करना होगा और उसका अहिंसा के मार्ग पर सम्यक प्रयोग कर वह हासिल करना होगा, जो 50 वर्ष का गणतंत्र उन्हें प्रदान नहीं कर सका। भूख की व्यापकता को सीमित कर संसाधन एवं धन का सम्यक एवं समुचित उद्देश्यपूर्ण प्रयोग इस देश की निर्धनता, गरीबी, दुःख, पीड़ा, का निदान कर सकता है। उठिए एवं अपने कर्त्तव्य मार्ग पर अग्रसर हो जाइये। सम्पूर्ण देश का विकास, सुख एवं शांति ही आपका लक्ष्य है।
तालिबान सरकार ने अपनी राक्षसी भूख का पेट भरने के लिए अफगानिस्तान ऐसे प्राकृतिक सम्पदा से परिपूर्ण देश को कहीं का नहीं रखा और मानवता के साथ अमानवीय व्यवहार करके उसके विकास, शांति एवं समृद्धि को कुण्ठित कर दिया है। क्रियाशील सुशिक्षित अफगानी स्त्रियों पर कहर के जो जुल्म ढाए हैं वे इतिहास में क्रूरता के मिसाल बन गये हैं। उत्तरी गठबन्धन को अफगानी समाज के प्रति किए जा रहे जुल्मों से, इस क्रूर, हवसी दानवी दुनिया से निजाद दिलाने के लिए अपने चाहने वाले शांतिप्रिय देशों ने जिसमें अमरीकी फौजों की भूमिका है, मदद की है और वहाँ की अमन प्रिय जनता को स्वतंत्रता दिलाई है। किन्तु बमों की वर्षा के कारण तथा तालिबान आतताइयों के जुल्मों के कारण अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। भूख का सम्राज्य बढ़ा है। देश संसाधनहीन हो गया, बच्चे भूख से शरणार्थियों कैम्पों में तड़प रहे हैं, रोगग्रस्त होकर रोगों का शिकार हो रहे हैं। सम्पूर्ण विश्व को इस दिशा में प्रयासरत होना चाहिए नहीं तो हजारों बच्चे भूख एवं रोगग्रस्त होकर मर जायेंगे। अफगानिस्तान की विपदा भयावह है, जिसका विशेष विवरण इस ग्रंथ में है। मानवीय हवस भूख की ओर बार-बार ध्यानाकर्षित करता है, यह ग्रन्थ और उस पर नियंत्रण रखने का आग्रह करता है। कृति में अफगानिस्तान में हो रही दिन-प्रतिदिन की गतिवाधियों का सजीव चित्रण किया गया है, जो अफगानिस्तान की तालिबानी आतंकवादी सम्राज्य से स्वतंत्र कराने का समय काल का दस्तावेज है, जो कुछ इन्सानों की हैवानियत ने उस समय पैदा कर दीं। यह ग्रन्थ विश्व को हमेशा आगाह करता रहेगा उस जाल में दुबारा न फंसने के लिए और मानवता एवं स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए। अतः इस चित्रण का उस परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। यह चित्रण कभी भी अफगानिस्तान को धार्मिकता के कृत्रिम कट्टर के भ्रमजाल में दुबारा न फंसने देगा और जनता के बलिदानों एवं स्वतंत्रता में सहायक होगा, जो भयरहित होगा, निष्पक्ष होगा, शांतिप्रिय होगा और मानवता के शिवस्वरूप का पुजारी होगा, नव अफगानिस्तान का निर्माण प्रारम्भ हो गया है और वह समय दूर नहीं नव अफगानिस्तान एवं शांतिपूर्ण देश के रूप में उभरेगा। हिंसक देशों के तालिबानी सरकार का पुनः निर्माण करने के कुप्रयासों को विफल कर देगा तथा समय विकास की ज्योर अग्रसर होगा। देश की सम्पदा का सम्यक् वितरण करेगा, जहाँ न कोई भूखा होगा। न रोगी और दरिद्र। जहाँ दैनिक प्रवृत्ति का विकास होगा और हिंसा का दमन। विकास और शांति के इस प्रयास में विश्व का सहयोग वांछित है
भूख का दलदल निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। बच्चों के भूख-पीड़ा के स्वर ठेठी लगे कर्णों को नहीं छूते। माँ के अन्तःकरण से द्रवित हो रहे स्वर किसी को कल्याण की तरफ प्रेरित नहीं करते। भूख की परिभाषा ही बदल गई है। सब कुछ हासिल कर उसे कठोरता से संग्रहीत करने की भूख का व्यापक रूप आज के समाज में सरलता से देखा जा सकता है। धन-संग्रह, पदार्थ-संग्रह, संसाधन, की कोई सीमा नहीं रह गई है। सबको अपने स्वार्थ सिद्ध की ही पड़ी है। राजनीति एक अखाड़ा बन कर रह गई है, जिसमें शक्तिशाली दमनकारी व्यक्ति की चढ़ बनी है। सद्पुरुष एवं योग्य पुरुष राजनीति में भाग ही नहीं लेते, इससे कतराते हैं। यदि कुछ सद्पुरुष जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर, देशसेवा की भावना से इसमें भाग लेते हैं, वे समय से पहले ही क्रूर शक्तिशाली व्यक्ति उनका दमन कर देते हैं। और आतंक का सहारा लेकर शासन की बागडोर अपने हाथों में ले लेते हैं। रावण की तरह संसार को आतंकित सारे कुकर्म करते हैं, राज्यभोग करते हैं। संसार की सुखशांति हरते हैं। उनका विरोध करने वाले चेतन प्राणियों की हत्या करते हैं, करवाते हैं।
भय से ग्रसित समाज का विवेक शून्य हो गया है। चेतना कुण्ठित हो गई है। शरीर, मानसिक एवं शारीरिक वेदना से ग्रसित शिथिल हो गया है। संसाधन जनता तक पहुँचते ही नहीं हैं और निर्धनता करोड़ों के घर में ठीक उसी तरह से ठहरती हुई है, जैसे कि परतंत्र देश में विद्यामान था। ऐसी विषम परिस्थिति में उन स्वार्थपरक लोगों की ओर आशा से देखना जो सिर्फ अपने स्वार्थ को पूरा करने में लगे हैं, दुःखदायी होगा। समाज को किसी ओर करुणा से देखनी नहीं है। जो संसाधनहीन समाज है, उसे एकजुट होकर दुःख निवारण की ओर प्रयास करने होंगे। उन लोगों को अपना नेता चुनना होगा जो सद्पुरुष हैं, योग्य हैं और जनकल्याण की भावना से ओतप्रोत हैं। ऐसे पुरुष आज भी हमारे समाज में हैं, जिन्हें जनता को सक्रिय कर गंगा की पावन धारा को गतिमय करना होगा और एक ऐसे समाज, देश का निर्माण करना होगा, जिसमें देश के संसाधन हर व्यक्ति तक पहुँच सकें और देश का समग्र विकास हो सके। अनाज के गोदामो की निर्धनों/भूखों के लिए खोलना होगा। संसाधन/धन का सम्यक वितरण करना होगा और तिजोरियों में कैद स्वर्ण का आभा से सम्पूर्ण देश को आलोकित करना होगा। हम हिंसा द्वारा सम्यक-वितरण या विकास की बात नहीं कर रहे हैं। अहिंसा के मार्ग पर चलकर जन शक्ति से जन इच्छा को पूर्ण करने की बात कर रहे हैं। खाली पेटों में भोजन पहुँचाने की बात कर रहे हैं। भूख से तड़पते रोते विलखते बच्चों के करुणा भरे स्वर शांत करने, उन्हें समुचित भोजन देने की बात कर रहे हैं। गणतंत्र को सच्चा स्वरूप देने की बात कर रहे हैं। सम्पूर्ण मानव समाज के विकास, उन्नति एवं सुख, शांति प्रदान करने की बात कर रहे हैं। इन सबको प्राप्त करने के लिए मानव को स्वयं जागरूक करना होगा पड़ेगा; स्वयं की जनशक्ति का मान करना होगा और उसका अहिंसा के मार्ग पर सम्यक प्रयोग कर वह हासिल करना होगा, जो 50 वर्ष का गणतंत्र उन्हें प्रदान नहीं कर सका। भूख की व्यापकता को सीमित कर संसाधन एवं धन का सम्यक एवं समुचित उद्देश्यपूर्ण प्रयोग इस देश की निर्धनता, गरीबी, दुःख, पीड़ा, का निदान कर सकता है। उठिए एवं अपने कर्त्तव्य मार्ग पर अग्रसर हो जाइये। सम्पूर्ण देश का विकास, सुख एवं शांति ही आपका लक्ष्य है।
तालिबान सरकार ने अपनी राक्षसी भूख का पेट भरने के लिए अफगानिस्तान ऐसे प्राकृतिक सम्पदा से परिपूर्ण देश को कहीं का नहीं रखा और मानवता के साथ अमानवीय व्यवहार करके उसके विकास, शांति एवं समृद्धि को कुण्ठित कर दिया है। क्रियाशील सुशिक्षित अफगानी स्त्रियों पर कहर के जो जुल्म ढाए हैं वे इतिहास में क्रूरता के मिसाल बन गये हैं। उत्तरी गठबन्धन को अफगानी समाज के प्रति किए जा रहे जुल्मों से, इस क्रूर, हवसी दानवी दुनिया से निजाद दिलाने के लिए अपने चाहने वाले शांतिप्रिय देशों ने जिसमें अमरीकी फौजों की भूमिका है, मदद की है और वहाँ की अमन प्रिय जनता को स्वतंत्रता दिलाई है। किन्तु बमों की वर्षा के कारण तथा तालिबान आतताइयों के जुल्मों के कारण अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। भूख का सम्राज्य बढ़ा है। देश संसाधनहीन हो गया, बच्चे भूख से शरणार्थियों कैम्पों में तड़प रहे हैं, रोगग्रस्त होकर रोगों का शिकार हो रहे हैं। सम्पूर्ण विश्व को इस दिशा में प्रयासरत होना चाहिए नहीं तो हजारों बच्चे भूख एवं रोगग्रस्त होकर मर जायेंगे। अफगानिस्तान की विपदा भयावह है, जिसका विशेष विवरण इस ग्रंथ में है। मानवीय हवस भूख की ओर बार-बार ध्यानाकर्षित करता है, यह ग्रन्थ और उस पर नियंत्रण रखने का आग्रह करता है। कृति में अफगानिस्तान में हो रही दिन-प्रतिदिन की गतिवाधियों का सजीव चित्रण किया गया है, जो अफगानिस्तान की तालिबानी आतंकवादी सम्राज्य से स्वतंत्र कराने का समय काल का दस्तावेज है, जो कुछ इन्सानों की हैवानियत ने उस समय पैदा कर दीं। यह ग्रन्थ विश्व को हमेशा आगाह करता रहेगा उस जाल में दुबारा न फंसने के लिए और मानवता एवं स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए। अतः इस चित्रण का उस परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। यह चित्रण कभी भी अफगानिस्तान को धार्मिकता के कृत्रिम कट्टर के भ्रमजाल में दुबारा न फंसने देगा और जनता के बलिदानों एवं स्वतंत्रता में सहायक होगा, जो भयरहित होगा, निष्पक्ष होगा, शांतिप्रिय होगा और मानवता के शिवस्वरूप का पुजारी होगा, नव अफगानिस्तान का निर्माण प्रारम्भ हो गया है और वह समय दूर नहीं नव अफगानिस्तान एवं शांतिपूर्ण देश के रूप में उभरेगा। हिंसक देशों के तालिबानी सरकार का पुनः निर्माण करने के कुप्रयासों को विफल कर देगा तथा समय विकास की ज्योर अग्रसर होगा। देश की सम्पदा का सम्यक् वितरण करेगा, जहाँ न कोई भूखा होगा। न रोगी और दरिद्र। जहाँ दैनिक प्रवृत्ति का विकास होगा और हिंसा का दमन। विकास और शांति के इस प्रयास में विश्व का सहयोग वांछित है
डॉ. दिनेशचन्द्र
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सभ्यता के प्रारम्भ से भारत कृषि प्रधान देश
रहा है। कृषि सम्पन्न भूमि समस्त विश्व को पेट पालन का न्योता देती रही है और सम्पूर्ण विश्व इसकी सम्पन्ता की आकर्षक परिधि में बंध कर इसकी सुलभता सें खिंचता रहा है और अपना देश छोड़कर यहाँ आता रहा है, बसता रहा है। यहाँ की उपजाऊ भूमि, कलकल करतीं नदियाँ, उच्च हिमालय शिखर, वनस्पति प्रकृति सौंदर्य मानव का सदा से मन मोटे रहे हैं और भारत भूमि पर आने का सदा निमंत्रण देते रहे
हैं विश्व की प्राचीन सभ्यताएं भारतीय सभ्यता से सदा जुड़ी रही हैं और
विशाल सागर की गहनता, भीषणता कमी मानव से मिलने, व्यापार करने से थाम नहीं पाई। समस्त विश्व हजार अवधानों के होते हुए पास-पास सिमटने लगा और सारी
मानव जाति अपनी विभिन्नताज्यों वो अपनी बगल में समेटे अपनी इच्छानुसार
यत्रतत्र बस गया। भारत भूमि में विभिन्न विश्व जातियाँ, विश्वास सोच और
परम्पराएँ पनपीं और भारत को सभ्यता के विशान शिखर पर पहुँचा दिया। रोम,
मिश्र, बेवीलोन, तथा योरपीय सभ्यताएँ स्वेच्छा से यहाँ आई और बस गईं। इस
पावन भूमि पर आर्य-अनार्य का कोई भेद नहीं था और न आर्य अनार्य के कभी इस
पावन भूमि पर आर्य-अनर्थ का कोई भेद नहीं था और न आर्य अनार्य के कभी इस
पावन भूमि पर युद्ध हुए। भूमि या सम्पदा के लिए युद्ध होना या शक्तिशाली
द्वारा उसे हथिया लेना मानव की उत्तप्रेरणा रही है, जो उसकी प्रकृति से
कभी मिट नहीं सकती। भारत भूमि प्राकृतिक संसाधनों की बाहुल्यता के कारण
मानव का आकर्षण बिन्दु तब गई और प्रकृति के विभिन्न रंगों ने ऐश्वर्य भूमि
में परिणति कर दिया।
विश्व की यह भूमि इतनी सम्पन्न रही है कि यहाँ सबको रहने का सुन्दर स्थान प्राप्त हुआ, खाने को भोजन प्राप्त हुआ और मानव सभ्यता को आग्रसर करने के साधन उपलब्ध हुए मानव की काया या विश्वास विभिन्ता कभी उनके मार्ग में नहीं आई और सबको सम्मान एवं वैभव का जीवन प्राप्त हुआ। वेद इस विभिन्नता को वैभव को, संघर्ष को, विश्वास को सुन्दरता से विश्व के सम्मुख रखते हैं और इनमें कुछ ऐसे विवरण बिखरे पड़े हैं, जो रोचक है एवं मानवीय सोच को उन्हें विवेकपूर्ण ढंग से समझाने के लिए उत्साहित करते है। कंचन के समान इस भूमि पर रमणीक जीवन की झांकी प्रस्तुत करते हैं। भारतभूमि की विभिन्नता जहाँ संघर्ष का कारण बनी, वहीं दूसरी ओर उसने मानव सभ्यता को उत्वर्ष के शिखर पर पहुँचा दिया। मानव की सोच को नित नए आयाम मिले और न केवल दर्शन, विचार, कलाकौशल में इसकी प्रगति हुई, अपितु ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में उसने नए आयाम स्थापित किए। न केवल पुरातत्व बल्कि साहित्यिक शेष कृतियां विज्ञान के क्षेत्र में भारत की अद्भुत प्रगति की ओर ध्यानाकर्षित करती हैं। रामायण, वायुमान, अस्त्रशस्त्रों की क्षमता तथा आणविक शक्ति की ओर इंगित करती है, जो विश्व की अन्य तात्कालीन सभ्यताओं में सुलभ नहीं था। महाभारत उस प्रगति को स्पष्टता से दर्शाती है, लेकिन हमारा अविश्कार मानव सभ्यता की इतनी प्रगति को मानने से इन्कार करता है, स्वीकार नहीं करता, क्योंकि उसका आज का दर्प उसे ऐसा मानने से रोकता है, जब कोई ‘साहित्यिक यंत्र’ आज के विज्ञान में अनुवाद हो जाता है, तो उसे स्वीकार कर लिया जाता है अन्यथा उसे मिथ की संज्ञा दी जाती है। यही तो विडम्बना है जिसने मानव सभ्यता को स्फूर्तिमय प्रगति से रोका है। उसकी सोच में अवरोध पैदा किया है।
भारत की प्रगति ने उसे विश्व की महानशक्ति बना दिया और भारतीय विद्याकेन्द्रों के ज्ञान-विज्ञान कला कौशल को हासिल करने के लिए विभिन्न सभ्यताओं के बौद्धिकरण आने लगे और इसे विश्व गुरू मानने लगे। इसके वैभव की ख्याति ने इसे स्वर्ण चिड़ियाँ की उपाधि प्रदान की और दूध, घी की बाहुल्यता ने इसे वह देश बना दिया, जहाँ दूध की नदियाँ बहती हैं। कालान्तर में शुष्क भूमि में रहनेवाले बनजारे, लड़ाकू इस देश में आए और प्रतिस्पर्धा, वैमनस्य को साधन बनाकर यहाँ के शासक बन बैठे और फिर लौट कर अपने देश नहीं गए। यहाँ के वैभव, सम्पन्नता एवं प्रकृति की मनोरमता ने उनका मन मोह लिया और उन्होंने अपने चातुर्य से इतिहास के पन्नों में अपना महत्त्वपूर्ण का स्थान बना लिया। हूण, कुषाण, मंगोल, मुगल शासकों के कारनामें भारतीय इतिहास के अंग बन गए और भारतीयों के आपसी वैमनस्य, ईर्षा एवं पतन पर प्रकाश डालते हैं। भारतीय संसाधनों का प्रयोग दूसरे देशों की प्रगति में सहायक होने लगा और सोने की चिड़िया के पंख नोचे जाने लगे। अंग्रेजों ने यहाँ आकर पूरी तरह इस देश की सम्पदा को लूटा और ज्ञानवान भारतीयों को अपना दास बना लिया। मुगलों ने जहाँ धार्मिक असिहस्णुता का परिचय दे भारतीय जीवन की स्वतंत्रता सार्वभौमिकता का हरण कर लिया, वहीं अंग्रेजों ने इसकी सम्पदा का शोषण कर इसे निर्धन बना दिया। भारतीय विवेक का क्षय और विश्व के सर्व विकसित देश को अविकसित देश में परिणति कर आंग्ल गौरव को विकसित किया।
अंग्रेजों के काल से ही भूख की कहानी शुरू होती है। उनके उदर में सुरसा की भाँति सबकुछ समाता चला गया और संसाधनहीन भारतीय समाज भूख से संग्रस्त हो निर्बल हो गया। अकाल पड़ने लगे। बाढ़ के प्रकोप बढ़ने लगे और लोग दाने-दाने को तरसने लगे। भूख से पीड़ित अबोध बाल-बलिकाओं की पुकार गगन छूने लगी और लोग इसे प्राकृतिक आपदा, विपदा या दैवी प्रकोप या दैव के रूस्ट होने की संज्ञा देने लगे। अंग्रेज जो स्वयं को दुनिया का सबसे सुसंस्कृत मानव मानते हैं, भारतीयों के लिए अमानव बन गए। अपने शासन को भारत में सुदृढ़ रखने के लिए उन्होंने भारतीयों पर जो जुल्म ढाए, इतिहास उसका गवाह और सदा यह विश्व को बताता रहेगा कि वे स्वार्थपरता की पराकाष्ठा को छू गए अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए उन्होंने जो अमानवीय कृत्य किए है, भारतीयों को जो दर्द दिए हैं, उसकी चीत्कार गगन के शून्य में आज भी गूँज रही है। फिर भी सहिष्णु भारतीय उन्हें सदा श्रेष्ठ पुरुष समझता रहा और आज भी उसका झुकाव उनके देश, उनकी संस्कृति के प्रति अथाह है। हर भारतीय नव युवक का स्वप्न या तो यूनाइटेड किंगडम है या यूनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरीका। इंग्लैण्ड नें जब अपनी स्वार्थ परता को जन्म दिया तो उन्होंने भारतीय को बैद्धिक श्रेष्टता, आत्मिक ज्ञान एवं शिक्षा में गहन रूचि को समझा और उन्हें सम्मानित किया। अंग्रेजों को विश्व के पटल पर इतना ऊँचा पहुँचाने वाला या उसके गुणों को उजागर करने वाला जितना भारत रहा है, शायद कोई अन्य देश नहीं ? वर्षों तक यहाँ रहनेवाला, शासन करने वाला अंग्रेज भारत की प्रभुता, श्रेष्ठता, कलात्मकता, मानव सम्मान, अखण्डता, विभिन्नता के गुणों को भलीभाँति समझता है और भारत को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देश मानता है। वह जानता है कि भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ विश्व समाज का सम्मान है, सम्मिलन है, सद्भाव है और मानव समाज के प्रति बिना भेद-भाव के आदर भाव एवं स्वागत है, जो अन्य देशों में देखने को नहीं मिलता।
अंग्रेजों से सत्ता ग्रहण करने वाले समाज ने भारत को दो भागों में विभाजन देखा है और धर्म के नाम पर एक-दूसरे का निरादर, दंगे और प्रत्यागमन कराया है। विभाजन में हजारों लोगों की जानें गईं। न जाने कितने बच्चे अनाथ हो गए। कितनी बहनों की लाज को, हया, शर्म को ताख में रखकर लूटा गया। लोग बेघरबार हो गए। मजहब न उन्हें अखलाक दे सका, न सम्मान न भाईचारा। धर्मान्धता से प्रेरित होकर उन्होंने सबकुछ गवाँ दिया। मुल्ला-मौलवियों ने मानव को कभी सुख एवं शान्ति से नहीं रहने दिया।
इस्लाम का झूठा स्वरूप उनके सम्ममुख रखकर अनपढ़, अज्ञान जनता को मूर्ख बनाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति की जो सिलसिला आज भी जारी है और कट्टरपंथी मानव समाज को विनाश के कगार पर ले जा रहा है। ओसामा बिन लादेन तथा उसके आतंकवादी संगठन को इस्लाम का मसीहा मानने वाले कुछ अफगानी समस्त देश का तहस-नहस करा रहे हैं। हजारों अफगानी शरणार्थी पाकिस्तान की सीमाओं पर जान लेकर भाग रहे हैं। उनकी धर्मानन्धता ही उन्हें इस घोर आपदा में खींच लाई है। जिसके जिम्मेदार वे नहीं हैं, अपितु कुछ आतंववादी हैं, जो न तो खुद शान्ति से बैठते हैं और न दूसरों को बैठने देना चाहते हैं। उन्हें विश्व शान्ति, विश्व समृद्धता भली नहीं लगती। विनाश उनके सिर पर बैठकर समस्त विश्व को समेट लेना चाहते हैं।
विश्व की यह भूमि इतनी सम्पन्न रही है कि यहाँ सबको रहने का सुन्दर स्थान प्राप्त हुआ, खाने को भोजन प्राप्त हुआ और मानव सभ्यता को आग्रसर करने के साधन उपलब्ध हुए मानव की काया या विश्वास विभिन्ता कभी उनके मार्ग में नहीं आई और सबको सम्मान एवं वैभव का जीवन प्राप्त हुआ। वेद इस विभिन्नता को वैभव को, संघर्ष को, विश्वास को सुन्दरता से विश्व के सम्मुख रखते हैं और इनमें कुछ ऐसे विवरण बिखरे पड़े हैं, जो रोचक है एवं मानवीय सोच को उन्हें विवेकपूर्ण ढंग से समझाने के लिए उत्साहित करते है। कंचन के समान इस भूमि पर रमणीक जीवन की झांकी प्रस्तुत करते हैं। भारतभूमि की विभिन्नता जहाँ संघर्ष का कारण बनी, वहीं दूसरी ओर उसने मानव सभ्यता को उत्वर्ष के शिखर पर पहुँचा दिया। मानव की सोच को नित नए आयाम मिले और न केवल दर्शन, विचार, कलाकौशल में इसकी प्रगति हुई, अपितु ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में उसने नए आयाम स्थापित किए। न केवल पुरातत्व बल्कि साहित्यिक शेष कृतियां विज्ञान के क्षेत्र में भारत की अद्भुत प्रगति की ओर ध्यानाकर्षित करती हैं। रामायण, वायुमान, अस्त्रशस्त्रों की क्षमता तथा आणविक शक्ति की ओर इंगित करती है, जो विश्व की अन्य तात्कालीन सभ्यताओं में सुलभ नहीं था। महाभारत उस प्रगति को स्पष्टता से दर्शाती है, लेकिन हमारा अविश्कार मानव सभ्यता की इतनी प्रगति को मानने से इन्कार करता है, स्वीकार नहीं करता, क्योंकि उसका आज का दर्प उसे ऐसा मानने से रोकता है, जब कोई ‘साहित्यिक यंत्र’ आज के विज्ञान में अनुवाद हो जाता है, तो उसे स्वीकार कर लिया जाता है अन्यथा उसे मिथ की संज्ञा दी जाती है। यही तो विडम्बना है जिसने मानव सभ्यता को स्फूर्तिमय प्रगति से रोका है। उसकी सोच में अवरोध पैदा किया है।
भारत की प्रगति ने उसे विश्व की महानशक्ति बना दिया और भारतीय विद्याकेन्द्रों के ज्ञान-विज्ञान कला कौशल को हासिल करने के लिए विभिन्न सभ्यताओं के बौद्धिकरण आने लगे और इसे विश्व गुरू मानने लगे। इसके वैभव की ख्याति ने इसे स्वर्ण चिड़ियाँ की उपाधि प्रदान की और दूध, घी की बाहुल्यता ने इसे वह देश बना दिया, जहाँ दूध की नदियाँ बहती हैं। कालान्तर में शुष्क भूमि में रहनेवाले बनजारे, लड़ाकू इस देश में आए और प्रतिस्पर्धा, वैमनस्य को साधन बनाकर यहाँ के शासक बन बैठे और फिर लौट कर अपने देश नहीं गए। यहाँ के वैभव, सम्पन्नता एवं प्रकृति की मनोरमता ने उनका मन मोह लिया और उन्होंने अपने चातुर्य से इतिहास के पन्नों में अपना महत्त्वपूर्ण का स्थान बना लिया। हूण, कुषाण, मंगोल, मुगल शासकों के कारनामें भारतीय इतिहास के अंग बन गए और भारतीयों के आपसी वैमनस्य, ईर्षा एवं पतन पर प्रकाश डालते हैं। भारतीय संसाधनों का प्रयोग दूसरे देशों की प्रगति में सहायक होने लगा और सोने की चिड़िया के पंख नोचे जाने लगे। अंग्रेजों ने यहाँ आकर पूरी तरह इस देश की सम्पदा को लूटा और ज्ञानवान भारतीयों को अपना दास बना लिया। मुगलों ने जहाँ धार्मिक असिहस्णुता का परिचय दे भारतीय जीवन की स्वतंत्रता सार्वभौमिकता का हरण कर लिया, वहीं अंग्रेजों ने इसकी सम्पदा का शोषण कर इसे निर्धन बना दिया। भारतीय विवेक का क्षय और विश्व के सर्व विकसित देश को अविकसित देश में परिणति कर आंग्ल गौरव को विकसित किया।
अंग्रेजों के काल से ही भूख की कहानी शुरू होती है। उनके उदर में सुरसा की भाँति सबकुछ समाता चला गया और संसाधनहीन भारतीय समाज भूख से संग्रस्त हो निर्बल हो गया। अकाल पड़ने लगे। बाढ़ के प्रकोप बढ़ने लगे और लोग दाने-दाने को तरसने लगे। भूख से पीड़ित अबोध बाल-बलिकाओं की पुकार गगन छूने लगी और लोग इसे प्राकृतिक आपदा, विपदा या दैवी प्रकोप या दैव के रूस्ट होने की संज्ञा देने लगे। अंग्रेज जो स्वयं को दुनिया का सबसे सुसंस्कृत मानव मानते हैं, भारतीयों के लिए अमानव बन गए। अपने शासन को भारत में सुदृढ़ रखने के लिए उन्होंने भारतीयों पर जो जुल्म ढाए, इतिहास उसका गवाह और सदा यह विश्व को बताता रहेगा कि वे स्वार्थपरता की पराकाष्ठा को छू गए अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए उन्होंने जो अमानवीय कृत्य किए है, भारतीयों को जो दर्द दिए हैं, उसकी चीत्कार गगन के शून्य में आज भी गूँज रही है। फिर भी सहिष्णु भारतीय उन्हें सदा श्रेष्ठ पुरुष समझता रहा और आज भी उसका झुकाव उनके देश, उनकी संस्कृति के प्रति अथाह है। हर भारतीय नव युवक का स्वप्न या तो यूनाइटेड किंगडम है या यूनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरीका। इंग्लैण्ड नें जब अपनी स्वार्थ परता को जन्म दिया तो उन्होंने भारतीय को बैद्धिक श्रेष्टता, आत्मिक ज्ञान एवं शिक्षा में गहन रूचि को समझा और उन्हें सम्मानित किया। अंग्रेजों को विश्व के पटल पर इतना ऊँचा पहुँचाने वाला या उसके गुणों को उजागर करने वाला जितना भारत रहा है, शायद कोई अन्य देश नहीं ? वर्षों तक यहाँ रहनेवाला, शासन करने वाला अंग्रेज भारत की प्रभुता, श्रेष्ठता, कलात्मकता, मानव सम्मान, अखण्डता, विभिन्नता के गुणों को भलीभाँति समझता है और भारत को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देश मानता है। वह जानता है कि भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ विश्व समाज का सम्मान है, सम्मिलन है, सद्भाव है और मानव समाज के प्रति बिना भेद-भाव के आदर भाव एवं स्वागत है, जो अन्य देशों में देखने को नहीं मिलता।
अंग्रेजों से सत्ता ग्रहण करने वाले समाज ने भारत को दो भागों में विभाजन देखा है और धर्म के नाम पर एक-दूसरे का निरादर, दंगे और प्रत्यागमन कराया है। विभाजन में हजारों लोगों की जानें गईं। न जाने कितने बच्चे अनाथ हो गए। कितनी बहनों की लाज को, हया, शर्म को ताख में रखकर लूटा गया। लोग बेघरबार हो गए। मजहब न उन्हें अखलाक दे सका, न सम्मान न भाईचारा। धर्मान्धता से प्रेरित होकर उन्होंने सबकुछ गवाँ दिया। मुल्ला-मौलवियों ने मानव को कभी सुख एवं शान्ति से नहीं रहने दिया।
इस्लाम का झूठा स्वरूप उनके सम्ममुख रखकर अनपढ़, अज्ञान जनता को मूर्ख बनाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति की जो सिलसिला आज भी जारी है और कट्टरपंथी मानव समाज को विनाश के कगार पर ले जा रहा है। ओसामा बिन लादेन तथा उसके आतंकवादी संगठन को इस्लाम का मसीहा मानने वाले कुछ अफगानी समस्त देश का तहस-नहस करा रहे हैं। हजारों अफगानी शरणार्थी पाकिस्तान की सीमाओं पर जान लेकर भाग रहे हैं। उनकी धर्मानन्धता ही उन्हें इस घोर आपदा में खींच लाई है। जिसके जिम्मेदार वे नहीं हैं, अपितु कुछ आतंववादी हैं, जो न तो खुद शान्ति से बैठते हैं और न दूसरों को बैठने देना चाहते हैं। उन्हें विश्व शान्ति, विश्व समृद्धता भली नहीं लगती। विनाश उनके सिर पर बैठकर समस्त विश्व को समेट लेना चाहते हैं।
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पाकिस्तान की सीमा पर लाखों अफगानी अपना वतन
छोड़कर आ चुके
हैं और भिखारी बन गए हैं। कुछ देशों द्वारा दिए गए टेन्टों को उन्होंने
पाकिस्तानी सीमा पर लगा लिया है। मानवता की भावना से प्रेरित होकर उन पर
अक्रमण करने वाला कर रहा है, जिससे असहाय एवं प्रबोध शरणार्णी को कम्बलों
का इन्तजाम कर रहा है, जिससे असहाय एवं प्रबोध शरणार्थी को ठण्ड और भूख
प्रताड़ित न कर सके। इस्लाम, जिसने सदा शान्ति एवं सुख का उपदेश दिया है,
कुछ लोगों के उस पर आधिपत्य ने अंधा बहरा बना दिया है। इस्लामी जेहादियों
ने उसके स्वरूप को बदल डाला है और इस्लामी जेहाद के साथ क्रूरता,
अत्याचार, शोषण और तलवार प्रयोग की भीषणता को बल मिला है। इस्लामी तलवार
ने इस अंधानुकरण में लाखों स्त्रियों एवं बच्चों को मौत को पराकाष्ठा पर
पहुँचा दिया है, उसकी इज्जत के साथ खिलवाड़ किया है। क्रूरता के घाट उतार
दिया है। जिसका इतिहास साक्षी है और आज भी इस्लाम धर्म की गलत विवेचना
विश्व समाज को प्रताड़ित कर रही है। कोई अन्य धर्म में चाहे वह
क्रिस्चियन, पारसी, सिख धर्म से युद्ध में भी यह क्रूरता नहीं पनपी और
स्त्रियों और वच्चों के प्रति दया, आदरभाव, सम्मान की भावना सदा बनी रही।
इस्लाम के सुन्दर रूप को कुछ कट्टरपंथियों ने विकृत कर दिया है और उसके
डरावने स्वरूप को विश्व के सम्मुख रखा है, जिसके कारण इस्लामी मजहब के
मानने वाले लोगों के प्रति घृणा का मान पनपता जा रहा है। यदि इस्लाम के
अनुयायियों ने समय रहते इस्लाम के असली स्वरूप को जागृत नहीं किया तो इसका
विकृत रूप इस्लाम को ही क्षति पहुँचा सकता है। और विश्व में सबसे अधिक
विकसित धर्म के सुन्दर स्वरूप को दूषित कर सकता है।
लाखों की तादात में अपना वतन छोड़कर आए शरणार्थियों में आक्रोश है। उनके परिवार दुःसह पीड़ा सहकर पाकिस्तान की शरण में आए हैं। उन्हें अपने घर बार, सम्पदा मवेशियों का त्याग करना पड़ा है। कोई भी अपना घर बार बेबशी में छोड़ता है, स्वेच्छा से नहीं। अपना वतन, उसकी आबोहवा, जमीन, वनस्पति सबका योग ही जीवन को चेतनता, स्वास्थ्य एवं शक्ति प्राप्त करता है। एक देश की आवहवा कितनी भी अच्छी क्यों न हो, दूसरे वतन के रास नहीं आती, जब तक समय काल का संयोग ही उससे रम नहीं जाता। फिर अफगानी तो अपनी जान की रक्षा के लिए पाकिस्तान की शरण में आए हैं, वे भले इन्सान हैं। छल, कपट उन्हें नहीं आता, इसीलिए शक्तिशाली होते हुए भी वे इस छल-कपट की दुनिया में वे आगे न बढ़ सकें। पाकिस्तान ऐसे छोटे देश ने छल कपट का सहारा लेकर उनका अफगानी शासन उनसे छीन लिया है और नार्दन एलायन्स के खिलाफ तालिबान ऐसी मिली-जुली शक्ति मजहब को हथियार बनाकर खड़ी कर दी है। तालिबान को अपने हाथों की कठपुतली बनाकर वहाँ अपना शासन स्थापित कर लिया है।
इस्लाम का विकृत रूप भोले-भाले अफगानियों के सामने रखकर जो चाहा, वह कराया है। आज भी पाकिस्तान ने अपनी मतलबपरस्ती के लिए तालिबान के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया है। अरबों डालर की मदद लेकर अमेरिका ने कपटी पाकिस्तान शासन की सरलता से खरीद लिया है। पाकिस्तान के एअर फोर्स के हाथ में देकर उसने अमेरिका के विमानों का एअर स्ट्राइक का मार्ग प्रशस्त किया कर दिया है। यदि अफगानी लोगों में थोड़ी-सी भी अकल बची है, तो वे पाकिस्तान की नकली तस्वीर, मुतलबपरस्ती का सियासत को भलीभाँति समझ सकते हैं। इस्लाम के नाम पर भोली-भाली अफगानी जनता को भड़काने वाले पाकिस्तान सियासत दाँ उसके देश को तबाह कर, बदनाम कर दुनिया के साथ खेल खेलते रहे हैं। आज भी अपने नकली चेहरे पर छल कपट का इस्लामी मुखोटा लगाए अफगानी समाज को छल रहे हैं। मौलाना बुखारी ने पाकिस्तान के स्वरूप को विश्व के सम्मुख अपनी कल की तकरीर (13.10.2001) में उजागर किया है, जो सत्य से परे नहीं हैं। पाकिस्तानी समाज भी जनरल मुसर्रफ और उसके शासन की चालें भली भाँति समझ चुका है, किन्तु फिर भी उसकी सोचने की शक्ति सीमित है, जिसको मुसलमान इस्लामी जेहाद कहता है, वह केवल इस्लाम तक सीमित नहीं है। यदि इसे इन्सानी जेहाद का नाम दिया जाय और इन्सान को भी कहा जाय जो इन्सान के भले के लिए इन्सान में उठती है तो श्रेयष्कर और उचित होगा। इन्सान को हर्गिज ओसामा बिन लादेन, उसके अतातायी गुटों का साथ नहीं देना चाहिए।
उनके बहशी उन्माद से निर्देशित न होकर सम्पूर्ण मानव समाज के कल्याण की बात सोचना चाहिए, तभी एक सद् विश्व समाज का निर्माण सम्भव है। किसी भी धर्म के सिद्धान्तों का अनुसरण मानव समाज के उत्थान के लिए है न की पालन के लिए। इस्लाम के सुन्दर रूप को लोगों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए विकृत कर दिया है और इस्लाम के विकृत रूप का अन्धानुकरण हो रहा है। क्या इतने बड़े संसार के सबसे बड़े मुस्लिम समाज के में कुछ थोड़े से भी लोग सहमत नहीं हैं, जो आगे आकर इस्लाम का सही रूप विश्व के सम्मुख रख सकें ? और इस्लाम को माने वाली, आदर करने वाली जमूरियत के सामने उज्ज्वल इस्लामी ज्योति को प्रज्जवलित कर सकें ? इसी अन्धानुकरण का फल है कि अफगान ऐसे प्राचीन देश एवं संस्कृति की तबाही हुई है। तहरीक-ए-इन्साफ अध्यक्ष इमरान खान ने अफगानिस्तान पर अमरीकी हमले को इसी कारण कयामत के दिन की संज्ञा दी है। यदि एक सुसंस्कृत मजहब को हवस का शिकार बनाया गया, जैसा कि पाकिस्तानी सरकार कर रही है तो शायद वह दिन बहुत दूर नहीं है, जब इन्सान की तबाही, कयामत का दिन आ सकता है जिसमें केवल मुसलमान या इसाई ही नहीं, संपूर्ण इन्सानी क्षत-विक्षत हो सकता है।
लाखों की तादात में अपना वतन छोड़कर आए शरणार्थियों में आक्रोश है। उनके परिवार दुःसह पीड़ा सहकर पाकिस्तान की शरण में आए हैं। उन्हें अपने घर बार, सम्पदा मवेशियों का त्याग करना पड़ा है। कोई भी अपना घर बार बेबशी में छोड़ता है, स्वेच्छा से नहीं। अपना वतन, उसकी आबोहवा, जमीन, वनस्पति सबका योग ही जीवन को चेतनता, स्वास्थ्य एवं शक्ति प्राप्त करता है। एक देश की आवहवा कितनी भी अच्छी क्यों न हो, दूसरे वतन के रास नहीं आती, जब तक समय काल का संयोग ही उससे रम नहीं जाता। फिर अफगानी तो अपनी जान की रक्षा के लिए पाकिस्तान की शरण में आए हैं, वे भले इन्सान हैं। छल, कपट उन्हें नहीं आता, इसीलिए शक्तिशाली होते हुए भी वे इस छल-कपट की दुनिया में वे आगे न बढ़ सकें। पाकिस्तान ऐसे छोटे देश ने छल कपट का सहारा लेकर उनका अफगानी शासन उनसे छीन लिया है और नार्दन एलायन्स के खिलाफ तालिबान ऐसी मिली-जुली शक्ति मजहब को हथियार बनाकर खड़ी कर दी है। तालिबान को अपने हाथों की कठपुतली बनाकर वहाँ अपना शासन स्थापित कर लिया है।
इस्लाम का विकृत रूप भोले-भाले अफगानियों के सामने रखकर जो चाहा, वह कराया है। आज भी पाकिस्तान ने अपनी मतलबपरस्ती के लिए तालिबान के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया है। अरबों डालर की मदद लेकर अमेरिका ने कपटी पाकिस्तान शासन की सरलता से खरीद लिया है। पाकिस्तान के एअर फोर्स के हाथ में देकर उसने अमेरिका के विमानों का एअर स्ट्राइक का मार्ग प्रशस्त किया कर दिया है। यदि अफगानी लोगों में थोड़ी-सी भी अकल बची है, तो वे पाकिस्तान की नकली तस्वीर, मुतलबपरस्ती का सियासत को भलीभाँति समझ सकते हैं। इस्लाम के नाम पर भोली-भाली अफगानी जनता को भड़काने वाले पाकिस्तान सियासत दाँ उसके देश को तबाह कर, बदनाम कर दुनिया के साथ खेल खेलते रहे हैं। आज भी अपने नकली चेहरे पर छल कपट का इस्लामी मुखोटा लगाए अफगानी समाज को छल रहे हैं। मौलाना बुखारी ने पाकिस्तान के स्वरूप को विश्व के सम्मुख अपनी कल की तकरीर (13.10.2001) में उजागर किया है, जो सत्य से परे नहीं हैं। पाकिस्तानी समाज भी जनरल मुसर्रफ और उसके शासन की चालें भली भाँति समझ चुका है, किन्तु फिर भी उसकी सोचने की शक्ति सीमित है, जिसको मुसलमान इस्लामी जेहाद कहता है, वह केवल इस्लाम तक सीमित नहीं है। यदि इसे इन्सानी जेहाद का नाम दिया जाय और इन्सान को भी कहा जाय जो इन्सान के भले के लिए इन्सान में उठती है तो श्रेयष्कर और उचित होगा। इन्सान को हर्गिज ओसामा बिन लादेन, उसके अतातायी गुटों का साथ नहीं देना चाहिए।
उनके बहशी उन्माद से निर्देशित न होकर सम्पूर्ण मानव समाज के कल्याण की बात सोचना चाहिए, तभी एक सद् विश्व समाज का निर्माण सम्भव है। किसी भी धर्म के सिद्धान्तों का अनुसरण मानव समाज के उत्थान के लिए है न की पालन के लिए। इस्लाम के सुन्दर रूप को लोगों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए विकृत कर दिया है और इस्लाम के विकृत रूप का अन्धानुकरण हो रहा है। क्या इतने बड़े संसार के सबसे बड़े मुस्लिम समाज के में कुछ थोड़े से भी लोग सहमत नहीं हैं, जो आगे आकर इस्लाम का सही रूप विश्व के सम्मुख रख सकें ? और इस्लाम को माने वाली, आदर करने वाली जमूरियत के सामने उज्ज्वल इस्लामी ज्योति को प्रज्जवलित कर सकें ? इसी अन्धानुकरण का फल है कि अफगान ऐसे प्राचीन देश एवं संस्कृति की तबाही हुई है। तहरीक-ए-इन्साफ अध्यक्ष इमरान खान ने अफगानिस्तान पर अमरीकी हमले को इसी कारण कयामत के दिन की संज्ञा दी है। यदि एक सुसंस्कृत मजहब को हवस का शिकार बनाया गया, जैसा कि पाकिस्तानी सरकार कर रही है तो शायद वह दिन बहुत दूर नहीं है, जब इन्सान की तबाही, कयामत का दिन आ सकता है जिसमें केवल मुसलमान या इसाई ही नहीं, संपूर्ण इन्सानी क्षत-विक्षत हो सकता है।
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