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निष्फल प्रेम

शेक्सपियर

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4834
आईएसबीएन :9789350642870

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Love’s Labour Lost का हिन्दी रूपान्तर....

Nishfal Prem - A Hindi Book by Shakespeare

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

विश्व साहित्य के गौरव, अंग्रेज़ी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 ई. को इंग्लैंड के स्ट्रैटफोर्ड-ऑन-एवोन नामक स्थान में हुआ। उनके पिता एक किसान थे और उन्होंने कोई बहुत उच्च शिक्षा भी प्राप्त नहीं की। इसके अतिरिक्त शेक्सपियर के बचपन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। 1582 ई. में उनका विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐन हैथवे से हुआ। 1587 ई. में शेक्सपियर लंदन की एक नाटक कम्पनी में काम करने लगे। वहाँ उन्होंने अनेक नाटक लिखे जिनसे उन्होंने धन और यश दोनों कमाए। 1616 ई. में उनका स्वर्गवास हुआ।

प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया है, जो इस सीरीज़ में पाठकों को उपलब्ध कराये जा रह हैं।

शेक्सपियर संक्षिप्त परिचय

विश्व साहित्य के गौरव, अंग्रेज़ी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 ई. में स्ट्रैटफोर्ड आन ऐवोन नामक स्थान में हुआ। उसकी बाल्यावस्था के विषय में बहुत कम ज्ञात है। उसका पिता एक किसान का पुत्र था, जिसने अपने पुत्र की शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध भी नहीं किया। 1582 ई. में शेक्सपियर का विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐनहैथवे से हुआ और सम्भवतः उसका पारिवारिक जीवन सन्तोषजनक नहीं था। महारानी एलिज़ाबेथ के शासनकाल में 1587 ई. में शेक्सपियर लन्दन जाकर नाटक-कम्पनियों में काम करने लगा। हमारे जायसी, सूर और तुलसी का प्रायः समकालीन यह कवि यहीं आकर यशस्वी हुआ और उसने अपने नाटक लिखे, जिनसे उसने धन और यश दोनों कमाए। 1612 ई. में उसने लिखना छोड़ दिया और अपने जन्मस्थान को लौट गया और शेष जीवन उसने समृद्धि तथा सम्मान से बिताया। 1616 ई. में उसका स्वर्गवास हुआ।

इस महान नाटककार ने जीवन के इतने पहलुओं को इतनी गहराई से चित्रित किया है कि वह विश्व-साहित्य में अपना सानी सहज ही नहीं पाता। मारलो तथा बेन जानसन जैसे उसके समकालीन कवि उसका उपहास करते रहे, किन्तु वे तो लुप्तप्राय हो गए, और यह कविकुल दिवाकर आज भी देदीप्यमान है।

शेक्सपियर ने लगभग 36 नाटक लिखे हैं, कविताएँ अलग। उसके कुछ प्रसिद्ध नाटक हैं-जूलियस सीज़र, ऑथेलो, मैकबैथ, हैमलेट, सम्राट् लियर, रोमियो जूलियट (दुःखान्त), वेनिस का सौदागर, बारहवीं रात, तिल का ताड़ (मच एडू अबाउट नथिंग), तूफान (सुखान्त)। इनके अतिरिक्त ऐतिहासिक नाटक हैं तथा प्रहसन भी हैं। प्रायः उसके सभी नाटक प्रसिद्ध है।

शेक्सपियर ने मानव-जीवन की शाश्वत भावनाओं को बड़े ही कुशल कलाकार की भाँति चित्रित किया है। उसके पात्र आज भी जीवित दिखाई देते हैं। जिस भाषा में शेक्सपियर के नाटकों का अनुवाद नहीं है वह उन्नत भाषाओं में कभी नहीं गिनी जा सकती।

भूमिका

निष्फल प्रेम नामक रचना को शेक्सपियर ने कॉमेडी (सुखान्त) नाटक के रूप में लिखा था। इसका कारण था कि इसमें व्यंग्य और हास्य की प्रधानता है, किन्तु वैसे यह सुखान्त नाटक नहीं है। यह तो गीतात्मक फन्तासिया माना गया है। इस नाटक का रचनाकाल सन्देह से पूर्ण है। 1588 से 1596 के बीच यह किसी समय लिखा गया, किन्तु अपनी शैली के दृष्टिकोण के आधार पर यह शेक्सपियर की एक प्रारम्भिक रचना है। इसमें रीतिकाव्य की भाँति शब्द- चमत्कार इतना अधिक है कि भावपक्ष के दृष्टिकोण से यह एक बहुत ही साधारण नाटक है। इसमें मजा़क से अधिक व्यंग्य है और अन्त में हमें एक प्रकार का नीतिपरक परिणाम प्राप्त होता है, किन्तु पात्र कोई भी हाथ नहीं आता। जिस उदात्त भावगरिमा का नाम शेक्सपियर है, वह तो यहाँ नहीं है, किन्तु एक बात अवश्य यहाँ भी है कि स्त्री और पुरुष के पारस्परिक सम्बन्धों की समानता पर यहाँ लेखक ने ज़ोर दिया है। इसलिए यह नाटक अपना महत्त्व रखता है। शेक्सपियर ने कल्पनालोक को व्यापक प्रसार देने की चेष्टा की है, किन्तु वह उसमें सफल नहीं हो सका है, क्योंकि उसने जिस शैली को पकड़ा है, वह बहुत पैनी नहीं है, न गहरी। ‘एक स्वप्न’ में उसने जो सौन्दर्य दिया है, वह यहाँ नहीं है, न है यहाँ वह सफल प्रकृति-चित्रण ही, जो हमें जैसा तुम चाहो में मिल जाता है।

यहाँ कुछ ऐसी बातें हैं जिनका अर्थ हमारे समाज में अपना कोई महत्त्व नहीं रखता, जैसे हमारे यहाँ तो भारतीय परम्परा में ‘सींग’ का महत्त्व नहीं, परन्तु यूरोप में व्यभिचारिणी स्त्री के सिर पर सींग होना एक प्रचलित मज़ाक माना जाता था। और इस नाटक में इस बात का आवश्यकता से अधिक उल्लेख है। पाश्चात्य संगीत के क्षेत्र से भी भारतीय पाठक का परिचय नहीं है। इसलिए ही जहाँ तक वर्णन का विषय है, वह बहुत उत्कृष्ट कोटि का नहीं हुआ है। फिर भी मध्यकाल को देखते हुए कवि ने समाज के उन लोगों पर गहरी चोट की है, जो विलास में डूबे रहकर भी विद्वत्ता का ढोंग करते हुए दार्शनिक बनते थे। पाण्डित्य पर तो शेक्सपियर ने बहुत ही कड़ा हमला किया है, और उनकी शास्त्रीयता का खोखलापन दिखाया है। नारी के प्रति शेक्सपियर की दृष्टि यहाँ काफी सन्तुलित है, और उसने स्त्री के आत्मसम्मान की रक्षा की है। हम कह सकते हैं कि शेक्सपियर ने अपनी रचनाओं में अपने को अपने पात्रों के माध्यम से ही व्यक्त किया है।

किन्तु जब शेक्सपियर ने यह नाटक लिखा था तब चातुर्य का प्राबल्य था। इस दृष्टि से देखा जाए कि शेक्सपियर ‘यूनिवर्सिटी विट’ नहीं था, तब तो भाषा पर उसके अगाध पाण्डित्य को देखकर आश्चर्य होता है, परन्तु वह जितना महान कलाकार था, उसको देखते हुए खेद होता है कि परम्परा में बँधकर उसने भले ही समसामयिक प्रतिद्वन्द्वियों या पुरानी रुचि के दर्शकों को अपने से प्रभावित कर लिया हो, परन्तु विश्व-साहित्य की दृष्टि से वह यहाँ आ नहीं सका है।

गीतों से भी कोमल भावना और संवेदना के स्थान पर बाह्य चित्रण अधिक है और हिन्दी में उनका हमारी भाषा के भीतर नियोजन ठीक नहीं बैठता। फिर भी हमने उसकी आत्मा को प्रतिबिम्बित करने की चेष्टा की है।

इस नाटक में दरबारीपन बहुत है। तत्कालीन घटनाओं के प्रति इसमें व्यंग्य भी है, क्योंकि जिन चार व्यक्तियों का इसमें चित्रण है, वैसे ही व्यक्ति तब उल्लेखनीय भी थे। नेवैरे, बैरोने, ड्यूमेन, लौंगेविले के रूप में नेवैरे का हैनरी, मार्शल डिबिरौन, डकडि लौंगेबिले और डक ड्यूमेन ही सम्भवतः वर्णित हैं, क्योंकि वे लोग उस समय यशःप्राप्त थे। इसी प्रकार अन्य पात्र भी हैं।

सम्भवतः यह शेक्सपियर की एक मौलिक रचना है, क्योंकि इसका कोई स्रोत नहीं मिला है।

इस नाटक का अनुवाद करना किसी हिन्दी के रीतिकालीन कवि की रचना का अनुवाद करने से भी अधिक कठिन कार्य प्रमाणित हुआ। इसमें मानवीय सार्वभौम भावपक्ष तो कम है, उल्टे लैटिन और अंग्रेज़ी का शब्द-चातुर्य ही नहीं, स्थानीय रीति-रिवाज और सन्दर्भ भी इतने संश्लिष्ट हैं कि अनुवाद में हिन्दी के पाठक को रस आना कठिन है। हमने फिर भी बड़े ही श्रम से उसका निर्वाह करने की चेष्टा की है, और जहाँ असम्भव-सा लगा है, भावार्थ करके नीचे मूल को समझाया है। कभी-कभी मुझे लगा है कि मैंने अनुवाद तो कर दिया है, किन्तु यदि यह नाटक खेला जाएगा तो उस समय फुटनोट के अभाव में भारतीय दर्शक इसे कैसे समझ सकेगा ? किन्तु ऐसे स्थल बहुत थोड़े हैं और यदि अभिनय के समय हटा दिए जाएँ तो हानि नहीं होगी, क्योंकि उन उक्तिचातुर्य-प्रदर्शन के भागों में कथात्मकता नहीं है। उक्तिचातुर्य में कवि ने अश्लीलता को भी नहीं छोड़ा है। जहाँ तक बन सका है मैंने उसे बुझा देने की ही चेष्टा की है। शेक्सपियर का वास्तविक परिचय पाने के लिए अन्य नाटकों के साथ इस रचना का भी अध्ययन करना साहित्य के विद्यार्थी के लिए अत्यन्त ही आवश्यक है।

- रांगेय राघव

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