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सदाबहार >> कर्बला

कर्बला

प्रेमचंद

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4828
आईएसबीएन :9788171828920

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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।

सातवां दृश्य

(अरब का एक गांव– एक विशाल मंदिर बना हुआ है, तालाब है, जिसके पक्के घाट बने हुए हैं, मनोहर बगीचा, मोर, हिरण, गाय आदि पशु-पक्षी इधर-उधर विचर रहे हैं। साहसराय और उनके बंधु तालाब के किनारे संध्या-हवन, ईश्वर-प्रार्थना कर रहे हैं।)

गाना (स्तुति)

हरि, धर्म प्राण से प्यार हो।
अखिलेष, अनंत विधाता हो, मंगलमय, मोहप्रदाता हो;
भय-भंजन शिव जन-त्राता हो, अविनाशी अद्भुत ज्ञाता हो।
तेरा ही एक सहारा हो;
हरि धर्म प्राण से प्यारा हो।
बल, वीर्य, पराक्रम त्वेष रहे, सद्धर्म धरा पर शेष रहे;
श्रुति-भानु, एकांत-वेश रहे, धन-ज्ञान-कला-युत देश रहे।
सर्वत्र प्रेम की धारा हो;
हरि, धर्म प्राण से प्यारा हो।
भारत तन-मन-धन से सारा हो, उसकी सेवा सब द्वारा हो;
निज मान-सम्मान दुलारा हो, सबकी आंखों का तारा हो।
जीवन-सर्वस्व हमारा हो;
हरि, धर्म प्राण से प्यारा हो।


(साहसराय प्रार्थना करते हैं।)

भगवान्, हमें शक्ति प्रदान कीजिए कि सदैव अपने व्रत का पालन करें। अश्वत्थामा की संतान का, निरंतर सेवामार्ग का अवलंबन करें, उनका रक्त सदैव दोनों की रक्षा में बहता रहे, उनके सिर सदैव न्याय और सत्य पर बलिदान होते रहें। और, प्रभो! वह दिन आए कि हम प्रायश्चित-संस्कार से मुक्त होकर तपोभूमि भारत को पयाम करें, और ऋषियों के सेवा-सत्कार में मग्न होकर अपना जीवन सफल करें। हे नाथ, हमें सद्भुद्धि दीजिए कि निरंतर कर्म-पथ पर स्थिर रहें, और उस कलंक-कालिमा को, जो हमारे आदि पुरुष ने हमारे मुख पर लगा दी है, अपनी सुकीर्ति से धोकर अपना मुख उज्जवल करें। जब हम स्वदेश यात्रा करें, तो हमारे मुख पर आत्मगौरव का प्रकाश हो, हमारे स्वदेश-बंधु सहर्ष हमारा स्वागत करें, और हम वहां पतित बनकर नहीं, समाज के प्रतिष्ठित अंग बनकर जीवन व्यतीत करें।

(सेवक का प्रवेश)

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