सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
वलीद– मरवान, मैं तुमसे मिन्नत करता हूं, चुप रहो।
मरवान– हुसैन, मैं खुदा को गवाह करके कहता हूं कि मैं आपका दुश्मन नहीं हूं। मेरी दोस्ताना सलाह यह है कि आप यजीद की बैयत मंजूर कर लीजिए ताकि आपको कोई नुकसान न पहुंचे। आपस का फ़साद मिट जाये और हजारों खुदा के बंदो की जानें बच जाएं। खलीफ़ा आपके बैयत की खबर सुनकर बेहद खुश होंगे, और आपके साथ ऐसे सलूक करेंगे कि खिलाफ़त में कोई आदमी आपकी बराबरी न कर सकेगा। मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि आपकी जागीरें और वजीफ़े दोचंद करा दूंगा और आप मदीने में इज्जत के साथ रसूल के कदमों से लगे हुए दीन और दुनिया में सुर्खरू होकर जिंदगी बसर करेंगे।
हुसैन– बस करो मरवान, मैं तुम्हारी दोस्ताना सलाह सुनने के लिए नहीं आया हूं। तुमने कभी अपनी दोस्ती का सबूत नहीं दिया, और इस मौके पर तुम्हारी सलाह को दोस्ताना न समझकर दगा समझू, तो मेरा दिल और मेरा खुदा मुझसे नाखुश न होगा। आज इस्लाम इतना कमजोर हो गया है कि रसूल का बेटा यजीद को बैयत लेने के लिए मजबूर हो!
मरवान– उनकी बैयत से आपको क्या एतराज है!
हुसैन– इसलिए कि वह शराबी झूठा, दग़ाबाज, हरामकार और जालिम है। वह दीन के आलिमों की तौहीन करता है। जहां जाता है, एक गधे पर एक बंदर को आलिमों के कपड़े पहनकर साथ ले जाता है। मैं ऐसे आदमी की बैयत अख्तियार नहीं कर सकता।
मरवान– या अमीर, आप इनसे बैयत लेंगे या नहीं?
हुसैन– मेरी बैयत किसी के अख्तियार में नहीं है।
मरवान– कसम खुदा की, आप बैयत कबूल किए बिना नहीं जा सकते। मैं तुम्हें यहीं कत्ल कर डालूंगा। (तलवार खींचकर बढ़ता है)
हुसैन– (डपटकर) तू मुझे कत्ल करेगा, तुझमें इतनी हिम्मत नहीं है! दूर रह। एक कदम भी आगे रखा, तो तेरा नापाक सिर जमीन पर होगा।
(अब्बास ३० सशस्त्र आदमियों के साथ तलवार खींचे हुए घुस आते हैं।)
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