लोगों की राय

सदाबहार >> कर्बला

कर्बला

प्रेमचंद

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4828
आईएसबीएन :9788171828920

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

448 पाठक हैं

मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।


अब्बास–

गश आता है हमें प्यास के मारे,
उलफ़त हमें ले आई है फिर पास तुम्हारे।
इन सूखे हुए होठों से होठों को मिला के,
कुछ मशक में पानी हो, तो भाई पिला दो।
लेटे हुए हो रेत में क्यों मुंह को छिपाए?
ग़ाफिल हो बिरादर तुम्हें किस तरह जगाएं?
खुश हूंगा में, आगे जो अलम लेके बढ़ोगे,
क्या भाई के पीछे न नमाज आज पढ़ोगे?


लड़ते-लड़ते शाम हो गई, हाथ नहीं उठते। आखिरी नमाज पढ़ लूं। काश नमाज पढ़ते हुए सिर कट जाता, तो कितना अच्छा होता!

[हुसैन नमाज में झुक जाते है, अशअस पीछे आकर उनके कंधे पर तलवार मारता है। क़ीस दूसरे कंधे पर तलवार चलाता है। हुसैन उठते हैं, फिर गिर पड़ते हैं, फौज़ में सन्नाटा छा जाता है। सबके सब आकर उन्हें घेर लेते हैं।]

शिमर– खलीफा यजीद ने हुसैन का सिर मांगा था, कौन है यह फख हासिल करना चाहता है?

[एक सिपाही आगे बढ़कर तलवार चलाता है। मुसलिम की छोटी लड़की दौड़ी हुई खेमे से आती है, और हुसैन की पीठ पर हाथ रख देती है।]

नसीमा– ओ खबीस, क्या तू मेरे चचा का कत्ल करेगा?

[तलवार नसीमा के दोनों हाथों पर पड़ती है, और हाथ कट जाते हैं।]

[शीस तलवार लेकर आगे बढ़ता है, हुसैन का मुंह देखते ही तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ती हैं।]

शिमर– क्यों, तलवार क्यों डाल दी?

शीस– उन्होंने जब आंखें खोलकर मुझे देखा, तो मालूम हुआ कि रसूल की आंखें हैं। मेरे होश उड़ गए।

कीस– मैं जाता हूं।

[तलवार लेकर जाता है, तलवार हाथ से गिर पड़ती हैं और उल्टे कदम कांपता हुआ लौट आता है।]

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book