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सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
छठा दृश्य
[दोपहर का समय। हुसैन अपने खेमे में खड़े है, जैनब, कुलसूम, सकीना, शहरबानू, सब उन्हें घेरे खड़े हैं।]
हुसैन– जैनब, अब्बास के बाद अली अकबर दिल को तस्कीन देता था। अब किसे देखकर दिल को ढाढ़स दूं? हाय! मेरा जवान बेटा प्यासा तड़प-तड़पकर मर गया! किस शान से मैदान की तरफ़ गया था। कितना हंसमुख, कितना हिम्मत का धनी! जैनब, मैंने उसे कभी उदास नहीं देखा, हमेशा मुस्कुराता रहता था। ऐ आंखों! अगर रोई, तो तुम्हें निकालकर फेंक दूंगा। खुदा की मर्जी में रोना कैसा! मालूम होता है, सारी कुदरत मुझे तबाह करने पर तुली हुई है। यह धूप कि उसकी तरफ ताकने ही से आंखें जलने लगती है! यह जलता हुआ बालू, ये लू के झूलसाने वाले झोंके, और यह प्यास! यों जिंदा जलना तीरों और भालों के जख्मों से कहीं ज्यादा सख्त है।
[अली असगर आता है, और बेहोश होकर गिर पड़ता है।]
शहरबानू– हाय, मेरे बच्चे को क्या हुआ!
हुसैन– (असगर को गोद में उठाकर) आह! यह फूल पानी के बग़ैर मुर्झाया जा रहा है। खुदा, इस रंज में अगर मेरी जबान से तेरी शान में कोई बेअदबी हो जाये, तो माफ कीजिए, मैं अपने होश में नहीं हूं। एक कटोरे पानी के लिए इस वक्त मैं जन्नत के हाथ धोने को तैयार हूं।
[असगर को गोद में लिए खेमे से बाहर आकर।]
ऐ जालिम क़ौम, अगर तुम्हारे खयाल में गुनहगार हूं, तो इस बच्चे ने तो कोई खता नहीं की है, इसे एक घूंट पानी पिला दो। मैं तुम्हारी नबी को नेवासा हूं, अगर इसमें तुम्हें शक है, तो काबा का बेकस मुसाफिर तो हूं। इससे भी अगर तुम्हें ताम्मुल हो, तो मुसलमान तो हूं। यह भी नहीं, तो अल्लाह का एक नाचीज बंदा तो हूं। क्या मेरे मरते हुए बच्चे पर तुम्हें इतना रहम भी नहीं आता?
तुम आन के चिल्लू से इसे आब पिला दो।
मरता है यह, मरते हुए बच्चे को जिला दो,
लिल्लाह, कलेजे की मेरी आग बुझा दो।
जब मुंह मेरा तकता है यह हसरत की नजर से,
ऐ जालिमो, उठता है धुआं मेरे जिगर से।
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