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सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
औम– अम्माजान, आप हमारा फैसला कर दीजिए। मैं पहले रण में जाता हूं, पर यह मुझे जाने नहीं देता, कहता है पहले में जाऊंगा। सुबह से यही बहस छिड़ी हुई है, किसी तरह छोड़ता ही नहीं। बताओ, बड़े भाई के होते हुए छोटा भाई शहीद हो, यह कहां का इंसाफ है?
मुहम्मद– तो अम्माजान, यह कहां का इंसाफ है कि बड़ा भाई तो मरने जाये, और छोटा भाई बैठा उसकी लाश पर मातम करे। अम्मा, आप चाहे खुश हों या नाराज, यह तो मुझसे न होगा। शायद इनका यह ख्याल हो कि मैं जब क़ाबिल नहीं हूं। छोटा हूं, क्या जवाब दूं, लेकिन खुदा चाहेगा, तो–
फिर दूध न अपना हमें तुम बख्शियो मादर!
शह के क़दमे-पाक पै सिर देके फिरेंगे,
या रण से सिरे-शिम्रोउमर लेके फिरेंगे।
अम्माजान, आप न मेरी खातिर कीजिए न इनकी, इंसाफ़ से फरमाइये पहले किसको जाने का हक है?
जैनब– अच्छा, तुम लोगों के रण में जाने का यह मतलब था। मैं कुछ और समझ रही थी। प्यारो, तुम्हारी मां ने तुम्हारी दिलेरी पर शक किया, इसे माफ करो। मालूम नहीं, मुझे क्या हो गया था कि मेरे दिल में तुम्हारी तरफ से ऐसे बसबसे पैदा हुए। लो, मैं झगड़ा चुकाए देती हूं। तुम दोनों खुदा का नाम लेकर साथ-साथ सिधारो, और दिखा दो कि तुम किसी शब्बीर की उल्फ़त में कम नहीं हो। मेरी और मेरे खानदान की आबरू तुम्हारे हाथ है।
मैदान में तन-मन के सिपर सीनों को करना।
हर जख्म पै दम उलफ़ते-शब्बीर का भरना,
कुरबान गई जीने से, बेहतर है वह मरना।
दुनिया में भला इज्जते-इस्लाम तो रह जाय,
तुम जीते रहो, या न रहो, नाम तो रह जाय।
नाना की तरह कौन बग़ा करता है देखूं?
सिर कौन हजारों के जुदा करता है देखूं?
हक़ कौन बहुत मां का अदा करता है देखूं?
एक-एक सफ़े-जंग में क्या करता है देखूं?
दिखलाइयों हाथों से सफाई का तमाशा,
मैं परदे से देखूंगी लड़ाई का तमाशा।
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