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सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
साद– या हजरत, मेरे पास बड़ी जरखे़ज और आबाद जागीरें हैं, जो जब्त कर ली जायेंगी, और मेरी औलाद उनसे महरूम रह जायेगी।
हुसैन– मैं हिजाज, मैं तुम्हें उनसे ज्यादा जरखेज और आबाद जागीरें दूंगा। इसका इतमीनान रखो कि मेरी ज़ात से तुम्हें कोई नुकसान न पहुंचेगा।
साद– या हज़रत, आप पर मेरी जान निसार हो, मेरे साथ २२ हज़ार सवार और पैदल हैं। जियाद ने उनके सरदारों से बड़े-बड़े वादे कर रखे हैं, मैं अगर आपकी तरफ आ भी जाऊं, तो वे आपसे जरूर जंग करेंगे। इसीलिए मुनासिब यही है कि आप जो शर्त पसंद फरमाएं, मैं जियाद को लिख भेजूं। मैं अपने खत के सुलह पर जोर दूंगा, और मुझे यकीन है कि जियाद मेरी तजवीज मंजूर कर लेगा।
हुसैन– खुदा तुम्हें इसका सबाब आक़बत में देगा। मेरी पहली शर्त है कि मुझे मक्का लौटने दिया जाये, अगर यह न मंजूर हो, तो सरहदों की तरफ जाकर अमन से जिंदगी बसर करने को राजी हूं, अगर यह भी मंजूर न हो, तो मुझे यजीद ही के पास जाने दिया जाये, और सबसे बड़ी शर्त यह है कि जब तक मैं यहां हूं, मुझे दरिया से पानी लेने की पूरी आजादी हासिल हो। मैं यजीद की बैयत किसी हालत से न कबूल करूंगा, और अगर तुमने मेरी बापसी की यह शर्त कायम न की, तो हम यहां शहीद हो जाना ही पंसद करेंगे। लेकिन अगर यह मंशा है कि मुझे कत्ल ही कर दिया जाये, तो मैं अपनी जान को गिरां से गिरां कीमत पर बेचूंगा।
साद– हजरत, आपकी शर्तें बहुत माकूल हैं।
हुसैन– मैं तुम्हारे जवाब का कब तक इंतजार करूं?
साद– सुबह, आफ़ताब की रोशनी के साथ मेरा कासिद आपकी खिदमत में हाजिर होगा।
[दोनों आदमी अपनी-अपनी फौज़ की तरफ लौटते हैं।]
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