लोगों की राय

अमर चित्र कथा हिन्दी >> न्यायप्रिय बीरबल

न्यायप्रिय बीरबल

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4799
आईएसबीएन :81-7508-483-9

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

134 पाठक हैं

बीरबल शहंशाह अकबर के दरबार में एक रत्न थे। उन्हीं के विषय में प्रस्तुत है यह पुस्तक.....

Nyaya Prya Birbaal-A Hindi Book by Anant Pai

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

न्याय प्रिय बीरबल

बीरबल की विनोद-प्रियता और बुध्दिचातुर्य ने न केवल अकबर, बल्कि मुग़ल साम्राज्य की अधिकांश जनता का मन मोह लिया था। लोकप्रिय तो बीरबल इतने थे। कि अकबर के बाद उन्हीं की गणना होती थी। वे उच्च कोटि के प्रशासक, और तलवार के धनी थे। पर शायद जिस गुण के कारण वे अकबर को परम प्रिय थे, वह गुण था उनका उच्च कोटि का विनोदी होना।
बहुत कम लोगों को पता होगा कि बीरबल एक कुशल कवि भी थे। वे ‘ब्रह्म’ उपनाम से लिखते थे। उनकी कविताओं का संग्रह आज भी भरतपुर-संग्रहालय में सुरक्षित है। वैसे तो बीरबल के नाम से प्रसिध्द थे, परन्तु उनका असली नाम महेशदास था। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यमुना के तट पर बसे त्रिविक्रमपुर (अब तिकवाँपुर के नाम से प्रसिद्ध) एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने अकबर के दरबार के नवरत्नों में स्थान प्राप्त किया था। उनकी इस अद्भुत सफलता के काऱण अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे। और उनके विरुध्द षङ्यंत्र रचते थे। बीरबल सेनानायक के रूप में अफगानिस्तान की लड़ाई में मारे गये। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु ईर्ष्यालु विरोधियों का परिणाम थी।
बीरबल की मृत्यु के समाचार से अकबर को कितना गहरा आघात पहुंचा था। इसका परिणाम है उनके मुँख से कविता के रूप में निकली ये पंक्तियाँ:
दीन जान सब दीन, एक दुरायो दुसह दुःख,
सो अब हम को दीन, कुछ नहीं ऱाख्यो बीरबल।
अकबर के लिए बीरबल सच्चे सखा, सच्चे संगी थे। अकबर के नये धर्म दीन-ए-इलाही के मुख्य 17 अनुयायियों में यदि कोई हिन्दू था, तो वे अकेले बीरबल।

प्रथम पृष्ठ

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book