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अमर चित्र कथा हिन्दी >> छत्रपति शिवाजी

छत्रपति शिवाजी

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4792
आईएसबीएन :81-7508-493-6

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शिवाजी ने अपनी आकांक्षा को कैसे सिद्ध किया इसकी सचित्र कथा यहाँ प्रस्तुत की गई है

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

छत्रपति शिवाजी

सत्रहवीं शताब्दीं में भारत के उत्तरी तथा मध्यवर्ती भागों में मुगलों का बोलबाला था। दक्षिण में बीजापुर के आदिलशाह जैसे नरेशों और जंजीरा के नवाब जैसे छोटे शासकों के बीच लड़ाइयाँ चला करती थीं। और जैसा कि हमेशा होता है, इन दोनों के बीच जनता गेहूं के घुन की तरह पिसती थी। अधिकारी तथा लड़ाकू खान और सरदार सभी उसे सताते थे। शताब्दियों से विदेशी शासकों की गुलामी करके राजपूतों जैसी वीर जातियाँ भी अपना हौसला गवाँ चुकी थीं। उसमें से अनेक तो ऊँचे ओहदे पा कर अपने विदेशी स्वामियों के हाथ की कठपुतली बन कर रह गये थे। कोई नर-पुंगव ही जनसाधारण को इन परिस्थितियों से त्राण दिला सकता था।

इस संकट की घ़ड़ी में शिवाजी का जन्म हुआ। उनके पिता अप्रतिम शूरवीर थे तथा माता अत्यंत बुद्धिमान एवं ममतामयी। शिवाजी के चरित्र पर माता-पिता तथा उनके गुरु, दादोजी कोंडदेव का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन से ही वे उस युग के वातावरण और घटनाओँ को भली प्रकार समझने लगे थे। शासक वर्ग की करतूतों पर वे झल्लाते थे और बेचैन हो जाते थे। उनके बाल-हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्वलित हो गयी थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन किया। अवस्था बढ़ने के साथ विदेशी शासन की बेड़ियाँ तोड़ फेंकने का उनका संकल्प प्रबलतर होता गया।
शिवाजी ने इस आकांक्षा को कैसे सिद्ध किया-इसकी सचित्र कथा यहाँ प्रस्तुत है।

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