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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


उसकी आवाज सुनकर अलादीन और उसकी अम्मी घर से बाहर आये। इतनी अच्छी नस्ल के हट्टे-कट्टे घोड़ों को देखकर वे दोनों आश्चर्य में पड़ गये।
अरे वाह चचा जान! कितने बढ़िया घोड़े हैं। ऐसे घोड़े तो मैंने आज तक नहीं देखे।”
“अलादीन बेटे! आज से यह घोड़ा तुम्हारा है। हम दोनों इन्हीं घोड़ों पर घूमने चलेंगे। मेरे ख्याल से तुम चलने के लिये तैयार हो?”
“हाँ चचा जान, मैं बिल्कुल तैयार हूँ। अम्मी ने सफर के लिये खाने-पीने का सामान एक थैले में रख दिया है। आप जरा ठहरिये, मैं वह थैला और उठा लाता हूँ।”
“अरे...बेटा! खाने-पीने के सामान की क्या जरूरत थी, हमारा सफर कोई ज्यादा दिनों का तो है नहीं। बहुत हद है तो हम कल शाम तक वापस लौट आयेंगे। मगर जब भाभी जान ने इतने प्यार से खाने-पीने का सामान बांधा हीं है तो ले आओ।”
अलादीन भागकर अन्दर गया और हाथ में एक थैला लेकर बाहर आया। अब तक सौदागर अपने घोड़े से नीचे उतर आया था। उसने अलादीन के हाथ से थैला ले लिया और उसे घोड़े की जीन से बाँध दिया। इसके बाद उसने अलादीन को सहारा देकर घोड़े पर बैठाया तथा उसकी माँ से इज़ाज़त लेकर अलादीन के साथ घर से चल पड़ा।
उन दोनों के चलते ही अलादीन की अम्मी ने हाथ उठाकर अल्लाह से उन दोनों की सलामती की दुआ माँगी।

लेकिन!
वह सौदागर की आँखों में उभरी मक्कारीभरी. उस चमक को नहीं देख पायी, जिसमें न जाने कितने शैतान छिपे हुए थे।
काश!
काश!
अलादीन की माँ उसकी मक्कारी को जान पाती कि वह शैतान सौदागर जो कि वास्तव में एक जादूगर था, उसके जिगर के टुकड़े को मौत के मुंह में लेकर जा रहा है।
अपने जिगर के टुकड़े अलादीन को अपनी आँखों से ओझल होते देख वह घर के अन्दर चली गयी।
सफर के दैरान कई घंटे चलने के बाद सौदागर और अलादीन एक बहुत ही घने तथा बियाबाने जंगल में पहुँचे। वह जंगल बहुत ही भयानक था तथा जंगली जानवरों से भरा पड़ा था। लेकिन यह एक ताज्जुब की बात थी कि किसी भी जानवंर ने उन पर हमला करने की कोई कोशिश नहीं की थी।
बल्कि अलादीन ने देखा कि जैसे ही कोई जानवर उनके पास आता उसका चचा मन-ही-मन न जाने क्या बुदबुदाता कि वह जानवर दुम दबाकर भांगता नजर आता था।

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