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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


कैदखाने में!
अलादीन की सारी रात गुजर गयी। वह पूरी रात शहजादी को याद करके आंसू बहाता रहा।
सुबह का सूरज जब निकलने लगा तो अलादीन ने सोचा-'जब मरना ही है तो इस तरह रो-रोकर मरने से क्या फायदा, खुशी-खुशी अल्लाह को याद करके ही क्यों न मरू! खुदा के खेल भी निराले हैं। पहले उसने मुझे यतीम और आवारा किया। फिर धन-दौलत तथा.खूबसूरत बीवी दी और अब खुदा ही मुझे रुला रहा है, शायद यह भी अल्लाह ही की मर्जी है।
आखिर में अलादीन ने फैसला किया-‘कि हँसते-हँसते मौत को गले लगायेगा। दुनिया को छोड़कर अब उसे सुकून से मौत के मुंह में जाना चाहिये। शायद मेरी किस्मत में यहीं लिखा है।' इतना सोंचकर अलादीन ने सुकून की सांस ली और अल्लाह को याद करने लगा। उसने अल्लाह से दुआ की, कि मरने के बाद वह उसकी रुह को सुकून दे।
उधर अलादीन को मौत की सज़ा होने की खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गयी। लोगों को बादशाह के फैसले पर बड़ा ताज्जुब हुआ। पैसे कों पानी की तरह बहाने वाला अलादीन सारे शहर में मशहूर था। शहर की आम, जनता की पूरी हमदर्दी अलादीन के साथ थी। कोई नहीं चाहता था कि उनका चहेता अलादीन हाथी के पैरों से कुचला जाये। बादशाह का यह फैसला किसी के गले नहीं उतर रहा था।
शहर के सभी खास-खास आदमियों ने ये फैसला किया कि अलादीन को मरने नहीं देना चाहिये। एक अच्छे इन्सान की जान लेना कोई इन्साफ नहीं था। बादशाह को अलादीन के साथ नर्मी से पेश आना चाहिये था। फिर सभी ने यह फैसला किया कि सुबह होते ही महल के सामने इकट्ठा हुआ जाये, और अगर बादशाह ने अलादीन को नहीं छोड़ा तो शहर की ईंट-से-ईंट बजा दी जाये।
सुबह होने तक पूरी जनता महल के सामने वाले मैदान में जमा हो गयी। उनकी गिनती हजारों में थी। सभी ने आवाज-से आवाज मिलाकर एक ही. बात कहनी शुरू कर दी-“यह इन्साफ नहीं, बेइन्साफी है।”
"अलादीन को छोड़ दिया जाये।”
“अगर उसे नहीं छोड़ा गया तो हम विद्रोह करेंगे।”
“बादशाह इन्साफ करो।”
"हम बेइन्साफी नहीं सहेंगे।”
"बादशाह का फैसला गलत है।”
"बादशाह अपना फैसला बदलो।”
लोगों की तादात लगातार बढ़ती ही जा रही थी। उनके नारों से आसमान गूंजने लगा था। प्रदर्शनकारियों की तादात देखकर लगता था कि पूरा शहर वहाँ उमड़ आया है। नारों की आवाज लगातार तेज होती जा रही थी।

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