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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


सुरंग में कैद होने के बाद अलादीन अपने धोखेबाज चचा के बारे में सोचने लगा कि कैसे उसने उससे प्यार का नाटक किया। उसकी अम्मी को भी अपनी बातों के जाल में फंसाया, किस प्रकार उसे ऊंचे-ऊंचे सपने दिखाये और आज यहाँ इस सुरंग में उसे कैद कर दिया।
उसे पक्का यकीन हो गया कि वह आदमी उसका चचा नहीं है, वह तो कोई धोखेबाज जादूगर है। अगर सचमुच वह उसका संगा चचा होता तो इस तरह उसे गुफा में कैद करके कभी नहीं जाता। अब तो शायद उसे इसी गुफा में एड़ियां रगड़-रगड़कर मर जाना होगा और उसकी कब्र भी यहीं बन जायेगी। उसे कोई कफन देने वाला भी नसीब न होगा। ऐसे ही सोचता हुआ वह गुफा से बाहर निकलकर उस बाग में आ गया जहाँ पानी का सोता'फूट रहा था। यहाँ आकर उसकी घबराहट थोड़ी कम हुई। बाग की खूबसूरती पहले की तरह ही थीं और उसमें लगे फल-फूल भी पहले की तरह अपनी खूबसूरती बिखेर, रहे थे। 
अलादीन सोचते-सोचते एक पेड़ के नीचे बैठ गया। वह बहुत दुःखी और परेशान था। अब उसे वहाँ कुछ डर भी लग रहा था। वह अब अपनी दुःखियारी अम्मी के बारे में सोच रहा था। वह सोच रहा था कि जिन्दगी में शायद वह फिर कभी अपनी अम्मी से नहीं मिल पायेगा।
इसी तरह की अनेक बातें बार-बार उसके दिमाग में उठ रही थीं। उसी प्रकार सोचते-सोचते उसे काफी समय हो गया। अब उसे भूख भी लगने लगी थी।
अलादीन ने वहीं के एक पेड़ से फल तोड़कर खाये तथा सामने बह रहे सोते से पानी पिया। मीठे फल खाकर और ठंडा पानी पीकर अलादीन को कुछ तसल्ली हुई। वैसे यह जगह अनेक हीरे-मोतियों से भरी पड़ी थी, लेकिन आज ये अलादीन के लिये पत्थरों से ज्यादा कुछ नहीं थे, क्योंकि ये अलादीन को न तो बाहर निकाल सकते थे और न ही खाना दे सकते थे।
सुरंग में कैद हुए अलादीन को काफी दिन हो गये। वह पेड़ से फल तोड़कर खा लेता और सोते का पानी पी लेता। इसी तरह वह अपना पेट भर रहा था। लेकिन फल खा लेने भर से भला क्या होता? वह दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा था। दिन भर वह पत्थरों पर बैठकर अपनी किस्मत को रोता रहता था। उसे अपनी अम्मी और अपने संगी-साथी बहुत याद आते थे। वह उस दिन को कोसता, जब कि उस लालची और पाखण्डी आदमी से मिला था, जिसने उसे अपना चाचा बताया था। वह सोचा करता था कि उसके घर न पहुँचने पर उसकी अम्मी कितना परेशान हो रही होंगी। वे तो जीते-जी मर गयी होंगी। ऐसा सोचकर वह और ज्यादा परेशान हो जाता था, लेकिन वह कर ही क्या सकता था, क्योंकि गुफा से बाहर निकलने का दरवाजा बंद हो चुका था।

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