विविध >> महान योगी श्री अरविन्द महान योगी श्री अरविन्दमनोज दास
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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक, श्री अरविन्द जी का जीवन इतना घटनापूर्ण है कि उस पर विराट जीवनी लिखी जा सकती है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भूमिका
एक बार एक विशिष्ट व्यक्ति ने श्री अरविन्द की जीवनी लिखने का
निश्चय किया। यह बात उन्हें बताई तो उत्तर दिया-मेरी जीवनी कोई क्या
लिखेगा ? उसमें बाह्य दृष्टि से देखने लायक जीवन कुछ नहीं।
पर सरसरी तौर पर देखें तो श्री अरविन्द का जीवन इतना घटनापूर्ण है कि उस पर विराट जीवनी लिखी जा सकती है। (दरअसल उनकी जीवनी लिखने का लोभ संवरण करना कठिन है। अंग्रेजी में पहली जीवनी 1910 में प्रकाशित हुई। अब तक विभिन्न भाषाओं में उनकी अनगिनत जीवनियाँ छप चुकी हैं।) शैशव तथा किशोरावस्था इंग्लैंड में बिता कर जब वे भारत लौटे तब तक वे 20 वर्ष के थे। यह 1893 की बात है। बाद में तेरह साल वे बड़ौदा में रहे। 1906-1909 सिर्फ तीन वर्ष प्रत्यक्ष राजनीति में रहे। इसी में देश भर के लोगों के स्नेह भाजन बन गए। इस की तुलना नहीं की जा सकती। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्मृति चारण करते हुए लिखते है- ‘‘जब मैं 1913 में कलकत्ता आया, अरविन्द तब तक किंवदंती पुरुष हो चुके थे। जिस आनंद तथा उत्साह के साथ लोग उनकी चर्चा करते शायद ही किसी की वैसे करते।’’ इन महान पुरुष के संबंध में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। ज्यादातर उनमें सच हैं।
पर सरसरी तौर पर देखें तो श्री अरविन्द का जीवन इतना घटनापूर्ण है कि उस पर विराट जीवनी लिखी जा सकती है। (दरअसल उनकी जीवनी लिखने का लोभ संवरण करना कठिन है। अंग्रेजी में पहली जीवनी 1910 में प्रकाशित हुई। अब तक विभिन्न भाषाओं में उनकी अनगिनत जीवनियाँ छप चुकी हैं।) शैशव तथा किशोरावस्था इंग्लैंड में बिता कर जब वे भारत लौटे तब तक वे 20 वर्ष के थे। यह 1893 की बात है। बाद में तेरह साल वे बड़ौदा में रहे। 1906-1909 सिर्फ तीन वर्ष प्रत्यक्ष राजनीति में रहे। इसी में देश भर के लोगों के स्नेह भाजन बन गए। इस की तुलना नहीं की जा सकती। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्मृति चारण करते हुए लिखते है- ‘‘जब मैं 1913 में कलकत्ता आया, अरविन्द तब तक किंवदंती पुरुष हो चुके थे। जिस आनंद तथा उत्साह के साथ लोग उनकी चर्चा करते शायद ही किसी की वैसे करते।’’ इन महान पुरुष के संबंध में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। ज्यादातर उनमें सच हैं।
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