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खिलखिलाहट

काका हाथरसी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4744
आईएसबीएन :81-288-0612-2

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काका हाथरसी के द्वारा लिखी गयी व्यंग्यपूर्ण कविताएँ.....

Khikhilahat

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


बहुत दिनों से इच्छा थी कि अपने कवि-साथियों को एक बार फिर एक स्थल पर एकत्र किया जाए। कविसम्मेलनों में व्यस्त रहने के कारण सब एक मंच पर एकत्र हो सकें, यह तो संभव नहीं था किंतु अपनी सिद्ध-प्रसिद्ध रचनाओं के साथ उन्हें एक पुस्तक में संगृहीत किया जाए, यह विचार बार-बार कुलबुलाने लगा।

अपना विचार हमने प्रिय डा. गिरिराजशरण अग्रवाल के सामने रखा। फिर तो हम दोनों जुट गए। जिस समय सारा मौसम उदास-उदास था, हम आपके लिए खिलखिलाने की सामग्री जुटा रहे थे, मनहूसियत मिटाने का सुअवसर ला रहे थे। अब यह अवसर आ गया है। लीजिए स्वीकार कीजिए हास्य-व्यंग्य के सिद्ध-प्रसिद्ध साथियों की खिलखिलाती रचनाओं का संकलन-खिलखिलाहट।
खिल-खिल खिल-खिल हो रही, श्री यमुना के कूल
अलि अवगुंठन खिल गए, कली बन गईं फूल
कली बन गईं फूल, हास्य की अद्भुत माया
रंजोग़म हो ध्वस्त, मस्त हो जाती काया
संगृहीत कवि मीत, मंच पर जब-जब गाएँ
हाथ मिलाने स्वयं दूर-दर्शन जी आएँ

-काका हाथरसी


डा.अजय चौधरी

डर था उसका


लुट जाने का डर था उसका
आबादी में घर था उसका
उस बस्ती में जीना कैसा
मरना भी दूभर था उसका
दिल की बातें खाक समझता
दिल भी तो पत्थर था उसका
उड़ने में ही था जो बाधक
अपना घायल पर था उसका
रहता था वो डरा-डरा सा
कहने को तो घर था उसका

अंबर कब था


अपने ग़म से हटकर कब था
वो इन्साँ पैग़ंबर कब था
जिसके बूढ़े सर पर पत्थर
बचपन उसका पत्थर कब था
कातिल की आँखों में रहता
रोती माँ का मंज़र कब था
प्यास समझता क्या औरों की
प्यासा रहा समंदर कब था
रोज बनानी थी छत उसको
उसके सर पर अंबर कब था

-रामबाग कालोनी, विजनौर (उ.प्र.)


अनिल धमाका

एकता


हमने पूछा-
‘अनेकता में एकता’
आप नारा लगाते हैं,
कृपया बताएँ इसके क्रियान्वयन-हेतु
आपने अब तक क्या किया ?’
वे बोले-
‘अभी तो इसके प्रथम चरण से गुज़र रहे हैं,
सर्वप्रथम अनेकता लाने का
प्रयास कर रहे हैं।

पैदावार


हमसे पूछा गया
‘किन्हीं दो फ़सलों के नाम बताएँ
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लगातार
बढ़ रही हो जिनकी पैदावार।’
हमने कहा-‘भ्रष्टाचार व आतंकवाद।’

झूठ



मंत्री जी से पूछा गया-
‘अपने जीवन का
कोई महत्त्वपूर्ण झूठ बताइए।’
वो बोले-
‘मेरे भाषणों की
प्रतियाँ ले जाइए।’

-बैंक ऑफ इंडिया, हरदोई (उ.प्र.)



अल्हड़ बीकानेरी

दाता एक राम



साधू, संत, फकीर, औलिया, दानवीर, भिखमंगे
दो रोटी के लिए रात-दिन नाचें होकर नंगे
        घाट-घाट घूमे, निहारी सारी दुनिया
        दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !
राजा, रंक, सेठ, संन्यासी, बूढ़े और नवासे
सब कुर्सी के लिए फेंकते उल्टे-सीधे पासे
        द्रौपदी अकेली, जुआरी सारी दुनिया
        दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !
कहीं न बुझती प्यास प्यार की, प्राण कंठ में अटके
घर की गोरी क्लब में नाचे, पिया सड़क पर भटके
        शादीशुदा होके, कुँआरी सारी दुनिया
        दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !
पंचतत्व की बीन सुरीली, मनवा एक सँपेरा
जब टेरा, पापी मनवा ने, राग स्वार्थ का टेरा
        संबंधी हैं साँप, पिटारी सारी दुनिया
        दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !

कुत्ते तभी भौंकते हैं




रामू जेठ बहू से बोले, मत हो बेटी बोर
कुत्ते तभी भौंकते हैं जब दिखें गली में चोर
        वफ़ादार होते हैं कुत्ते, नर हैं नमक हराम
        मिली जिसे कुत्ते की उपमा, चमका उसका नाम
        दिल्ली क्या, पूरी दुनिया में मचा हुआ है शोर
हैं कुत्ते की दुम जैसे ही, टेढ़े सभी सवाल
जो जबाव दे सके, कौन है वह माई का लाल
देख रहे टकटकी लगा, सब स्वीडन की ओर
        प्रजातंत्र का प्रहरी कुत्ता, करता नहीं शिकार
        रूखा-सूखा टुकड़ा खाकर लेटे पाँव पसार
        बँगलों के बुलडॉग यहाँ सब देखे आदमख़ोर
कुत्ते के बजाय कुरते का बैरी, यह नाचीज़
मुहावरों के मर्मज्ञों को, इतनी नहीं तमीज़
पढ़ने को नित नई पोथियाँ, रहे ढोर के ढोर
        दिल्ली के कुछ लोगों पर था चोरी का आरोप
        खोजी कुत्ता लगा सूँघने अचकन पगड़ी टोप
        जकड़ लिया कुत्ते ने मंत्री की धोती का छोर
तो शामी केंचुआ कह उठा, ‘हूँ अजगर’ का बाप
ऐसी पटकी दी पिल्ले ने, चित्त हुआ चुपचाप
साँपों का कर चुके सफाया हरियाणा के मोर।
-श्याम निकुंज
9-सी,पाकेट-बी,मयूर विहार,फेज-II,
दिल्ली 110091



अशोक चक्रधर

चालीसवाँ राष्ट्रीय भ्रष्टाचार महोत्सव



पिछले दिनों
चालीसवाँ राष्ट्रीय भ्रष्टाचार महोत्सव मनाया गया।
सभी सरकारी संस्थानों को बुलाया गया।
भेजी गई सभी को निमंत्रण-पत्रावली
साथ मे प्रतियोगिता की नियमावली।
लिखा था-
प्रिय भ्रष्टोदय,
आप तो जानते हैं
भ्रष्टाचार हमारे देश की
पावन-पवित्र सांस्कृतिक विरासत है
हमारी जीवन-पद्धति है
हमारी मजबूरी है, हमारी आदत है।
आप अपने विभागीय भ्रष्टाचार का
सर्वोत्कृष्ट नमूना दिखाइए
और उपाधियाँ तथा पदक-पुरस्कार पाइए।
व्यक्तिगत उपाधियाँ हैं-
भ्रष्टशिरोमणि, भ्रष्टविभूषण
भ्रष्टभूषण और भ्रष्टरत्न
और यदि सफल हुए आपके विभागीय प्रयत्न
तो कोई भी पदक, जैसे-
स्वर्ण गिद्ध, रजत बगुला
या कांस्य कउआ दिया जाएगा।
सांत्वना पुरस्कार में
प्रमाण-पत्र और
भ्रष्टाचार प्रतीक पेय ह्वस्की का
एक-एक पउवा दिया जाएगा।
प्रविष्टियाँ भरिए
और न्यूनतम योग्यताएँ पूरी करते हों तो
प्रदर्शन अथवा प्रतियोगिता खंड में स्थान चुनिए।
कुछ तुले, कुछ अनतुले भ्रष्टाचारी
कुछ कुख्यात निलंबित अधिकारी
जूरी के सदस्य बनाए गए,
मोटी रकम देकर बुलाए गए।
मुर्ग तंदूरी, शराब अंगूरी
और विलास की सारी चीज़ें जरूरी
जुटाई गईं
और निर्णायक मंडल
यानी कि जूरी को दिलाई गईं।
एक हाथ से मुर्गे की टाँग चबाते हुए
और दूसरे से चाबी का छल्ला घुमाते हुए
जूरी का एक सदस्य बोला-
‘मिस्टर भोला !
यू नो
हम ऐसे करेंगे या वैसे करेंगे
बट बाइ द वे
भ्रष्टाचार नापने का पैमाना क्या है
हम फ़ैसला कैसे करेंगे ?

मिस्टर भोला ने सिर हिलाया
और हाथों को घूरते हुए फरमाया-
‘चाबी के छल्ले को टेंट में रखिए
और मुर्गे की टाँग को प्लेट में रखिए
फिर सुनिए मिस्टर मुरारका
भ्रष्टाचार होता है चार प्रकार का।
पहला-नज़राना !
यानी नज़र करना, लुभाना
यह काम होने से पहले दिया जाने वाला ऑफर है
और पूरी तरह से
देनेवाले की श्रद्धा और इच्छा पर निर्भर है।
दूसरा-शुकराना!
इसके बारे में क्या बताना !
यह काम होने के बाद बतौर शुक्रिया दिया जाता है
लेने वाले को
आकस्मिक प्राप्ति के कारण बड़ा मजा आता है।
तीसरा-हकराना, यानी हक जताना
-हक बनता है जनाब
बँधा-बँधाया हिसाब
आपसी सैटिलमेंट
कहीं दस परसेंट, कहीं पंद्रह परसेंट
कहीं बीस परसेंट ! पेमेंट से पहले पेमेंट।
चौथा जबराना।
यानी जबर्दस्ती पाना
यह देनेवाले की नहीं
लेनेवाले की
इच्छा, क्षमता और शक्ति पर डिपेंड करता है
मना करने वाला मरता है।
इसमें लेनेवाले के पास पूरा अधिकार है
दुत्कार है, फुंकार है, फटकार है।
दूसरी ओर न चीत्कार, न हाहाकार
केवल मौन स्वीकार होता है
देने वाला अकेले में रोता है।
तो यही भ्रष्टाचार का सर्वोत्कृष्ट प्रकार है
जो भ्रष्टाचारी इसे न कर पाए उसे धिक्कार है।
नजराना का एक पाइंट
शुकराना के दो, हकराना के तीन
और जबराना के चार
हम भ्रष्टाचार को अंक देंगे इस प्रकार।’

रात्रि का समय
जब बारह पर आ गई सुई
तो प्रतियोगिता शुरू हुई।
सर्वप्रथम जंगल विभाग आया
जंगल अधिकारी ने बताया-
    ‘इस प्रतियोगिता के
सारे फर्नीचर के लिए
चार हजार चार सौ बीस पेड़ कटवाए जा चुके हैं
और एक-एक डबल बैड, एक-एक सोफा-सैट
जूरी के हर सदस्य के घर, पहले ही भिजवाए जा चुके हैं
हमारी ओर से भ्रष्टाचार का यही नमूना है,
आप सुबह जब जंगल जाएँगे
तो स्वयं देखेंगे
जंगल का एक हिस्सा अब बिलकुल सूना है।’

अगला प्रतियोगी पी.डब्लू.डी. का
उसने बताया अपना तरीका-
    ‘हम लैंड-फिलिंग या अर्थ-फिलिंग करते हैं।
    यानी ज़मीन के निचले हिस्सों को
    ऊँचा करने के लिए मिट्टी भरते हैं।
    हर बरसात में मिट्टी बह जाती है,
    और समस्या वहीं-की-वहीं रह जाती है।
    जिस टीले से हम मिट्टी लाते हैं
    या कागजों पर लाया जाना दिखाते हैं
    यदि सचमुच हमने उतनी मिट्टी को डलवाया होता
    तो आपने उस टीले की जगह पृथ्वी में
अमरीका तक का आरपार गड्ढा पाया होता।
लेकिन टीला ज्यों-का-त्यों खड़ा है।
उतना ही ऊँचा, उतना ही बड़ा है
मिट्टी डली भी और नहीं भी
ऐसा नमूना नहीं देखा होगा कहीं भी।’

क्यू तोड़कर अचानक
अंदर घुस आए एक अध्यापक-
    ‘हुजूर
    मुझे आने नहीं दे रहे थे
    शिक्षा का भ्रष्टाचार बताने नहीं दे रहे थे
    प्रभो !’
एक जूरी मेंबर बोला-‘चुप रहो
    चार ट्यूशन क्या कर लिए
    कि भ्रष्टाचारी समझने लगे
    प्रतियोगिता में शरीक होने का दम भरने लगे !
    तुम क्वालिफाई ही नहीं करते
    बाहर जाओ-
    नेक्स्ट, अगले को बुलाओ।’

अब आया पुलिस का एक दरोगा
बोला-
    ‘हम न हों तो भ्रष्टाचार कहाँ होगा ?
    जिसे चाहें पकड़ लेते हैं, जिसे चाहें रगड़ देते हैं
हथकड़ी नहीं डलवानी दो हज़ार ला,
जूते भी नहीं खाने दो हज़ार ला,
पकड़वाने के पैसे, छुड़वाने के पैसे
ऐसे भी पैसे, वैसे भी पैसे
बिना पैसे हम हिलें कैसे ?
जमानत, तफ़्तीश, इनवेस्टीगेशन
इनक्वायरी, तलाशी या ऐसी सिचुएशन
अपनी तो चाँदी है,
क्योंकि स्थितियाँ बाँदी हैं
डंके का ज़ोर हैं
हम अपराध मिटाते नहीं हैं
अपराधों की फ़सल की देखभाल करते हैं
वर्दी और डंडे से कमाल करते हैं।’

फिर आए क्रमश:
एक्साइज वाले, इनकम टैक्स वाले,
स्लमवाले, कस्टमवाले,
डी.डी.ए.वाले
टी.ए.डी.ए.वाले
रेलवाले, खेलवाले
हैल्थवाले, वैल्थवाले,
रक्षावाले, शिक्षावाले,
कृषिवाले, खाद्यवाले,
ट्रांसपोर्टवाले, एअरपोर्टवाले
सभी ने बताए अपने-अपने घोटाले।

प्रतियोगिता पूरी हुई
तो जूरी के एक सदस्य ने कहा-
    ‘देखो भाई,
स्वर्ण गिद्ध तो पुलिस विभाग को जा रहा है
रजत बगुले के लिए
पी.डब्लू.डी
डी.डी.ए.के बराबर आ रहा है
और ऐसा लगता है हमको
काँस्य कउआ मिलेगा एक्साइज या कस्टम को।’

निर्णय-प्रक्रिया चल ही रही थी कि
अचानक मेज फोड़कर
धुएँ के बादल अपने चारों ओर छोड़कर
श्वेत धवल खादी में लक-दक
टोपीधारी गरिमा-महिमा उत्पादक
एक विराट व्यक्तित्व प्रकट हुआ
चारों ओर रोशनी और धुआँ।
जैसे गीता में श्रीकृष्ण ने
अपना विराट स्वरूप दिखाया
और महत्त्व बताया था
कुछ-कुछ वैसा ही था नज़ारा

विराट नेताजी ने मेघ-मंद्र स्वर में उचारा-
‘मेरे हज़ारों मुँह, हजारों हाथ हैं
हज़ारों पेट हैं, हज़ारों ही लात हैं।
नैनं छिंदति पुलिसा-वुलिसा
नैनं दहति संसदा !
नाना विधानि रुपाणि
नाना हथकंडानि च।
ये सब भ्रष्टाचारी मेरे ही स्वरूप हैं
मैं एक हूँ, लेकिन करोड़ों रूप हैं।
अहमपि नजरानम् अहमपि शुकरानम्
अहमपि हकरानम् च जबरानम् सर्वमन्यते।
भ्रष्टाचारी मजिस्ट्रेट
रिश्वतख़ोर थानेदार
इंजीनियर, ओवरसियर
रिश्तेदार-नातेदार
मुझसे ही पैदा हुए, मुझमें ही समाएँगे
पुरस्कार ये सारे मेरे हैं, मेरे ही पास आएँगे।’
   

                   


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