विविध >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधरी
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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक
पांच
5 जून 1920 को इंग्लैंड के बंदरगाह पर उनका जहाज पहुंचा। उन्हें लेने के लिएउनके साथी पियर्सन आए थे। लंदन पहुंचने के बाद रोटेनस्टाइन वगैरह उनके कुछ खास दोस्त उनसे मिलने आए।
भोजसभा, पार्टियों वगैरह का भी सिलसिलाचलता रहा, लेकिन रवीन्द्रनाथ को लगा कि उनके दोस्तों के व्यवहार में थोड़ाबदलाव आ गया है। दरअसल राजभक्त अंग्रेज रवीन्द्रनाथ के ''सर'' की उपाधिलौटाने से खुश नहीं थे।
इंग्लैंड से रवीन्द्रनाथ फ्रांस गये।वहां पर काह्न नाम से एक बेहद अमीर कवि के वे अतिथि हुए। वहां पर सिलवां लेवी आंरि बेगम, ले ब्रन, कंतेस द नोआई जैसे नामी लोग उनसे आकर मिले। उसकेबाद नीदरलैंड से बुलावा पाकर कवि वहां करीब पंद्रह दिन रहे। द हेग, ऐमस्टरडम, रोटेरडम आदि जगहों में उन्होंने भाषण दिया। इसके बाद बेल्लियमकी राजधानी ब्रुसेल्स में अपना भाषण देकर वे पेरिस लौट आए।
यूरोप से कवि अमरीका आए। लेकिन उनके बारे में किसी को वहां न खुशी थी न आग्रहथा। ब्रुकलिन, न्यूयार्क और हार्वर्ड में उनका भाषण जरूर हुआ, मगर आयोजकों और श्रोताओं में उनके प्रति उत्साह नजर नहीं आया। शायद इसके पीछे उनके''सर'' की उपाधि वापस लौटाने का कारण रहा होगा। मगर वहां की ''पोयट्री सोसाइटी'' द्वारा उनके सम्मान का आयोजन किया गया। इसकी आयोजिका श्रीमतीमूडी थी।
अमरीका में लेनार्ड अलम्हर्स्ट नामक एक अंग्रेज युवक सेपरिचय हुआ। यह बाद में और गहरा हुआ। रवीन्द्रनाथ के ग्राम सुधार कार्यक्रमों से वे प्रभावित थे। उन्होंने अपनी पत्नी की सहायता से, जो भीसंभव था, उन्हें धन देने का वादा किया। यह वादा उन्होंने जीवन भर निभाया भी। श्री निकेतन का पूरा खर्चा उन दोनों पति-पत्नी ने मरते दम तक उठाया।
अमरीका से इंग्लैंड। वहां से हवाई जहाज से पेरिस। यह रवीन्द्रनाथ का पहला हवाईसफर था। पेरिस में रहने के दौरान उनका रोम्यां रोला से परिचय हुआ, बाद में गहरी दोस्ती। इसी तरह उनका परिचय अपने काम के प्रति बेहद लगनशील तथा भावुकव्यक्ति पेट्रिक गेडिस के साथ भी हुआ।
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