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रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


इधर देश की राजनीतिक समस्या बढ़ती जा रही थी। कवि से चुप बैठते नहीं बना। हिन्दू-मुसलमानों केबीच दंगे बढ़ने लगे। रवीन्द्रनाथ ने ''प्रवासी'' में ''रोग और निदान'' नामक एक लेख में लिखा - ''आज हिन्दू मुसलमान को प्रेम की नजरों से देखना पसंदनहीं कर रहा है, उधर मुसलमान भी हिन्दुओं पर भरोसा करने से हिचक रहे हैं। यह जो एक दूसरे के प्रति अनादर और अविश्वास पैदा हुआ है, यही हमारे जीवनका सबसे बड़ा संकट बन गया है।'' रवीन्द्रनाथ ने सवाल किया, 'स्वदेश को किसके हाथों से आजाद कराना है?' देश के भीतर भी तरह-तरह के झगड़े-झंझट चलरहे थे। रवीन्द्रनाथ ने इस माहौल से अपने को दूर ही रखा।

वे गांवों को सुधारने के काम में जुट गए। शिलाईदह उनकी प्रधान कर्मभूमि बनीं।उन्होंने लिखा है - ''मैं इन दिनों गांव समाज की बेहतरी के लिए जुटा हुआ हूं। अपनी जमींदारी को मैं गांव सुधार के उदाहरण के रूप में दिखाना चाहताहूं। मैंने अपना काम शुरू कर दिया है।'' ऐसा ही था भी। वे गांव के लोगों के साथ सड़क बनाने, तालाब ठीक करने, जंगल साफ करने आदि तरह-तरह के कामोंमें जुट गए। उन्होंने एक पत्र में लिखा - ''मैं गांवों में सचमुच के स्वराज की स्थापना करना चाहता हूं। जो पूरे देश में होना चाहिए, उसी का एकढांचा यहां तैयार कर रहा हूं।''

रवीन्द्रनाथ जब गांव सुधार केकाम में जुटे थे, उन्होंने अखबारों में पढ़ा कि सन् 1907 के दिसम्बर में सूरत कांग्रेस में काफी गड़बड़ी होने के कारण महासभा रद्द करनी पड़ी।रवीन्द्रनाथ सूरत का समाचार पढ़कर बहुत परेशान हुए। उन्होंने दोनों गुटों की बातें जानकर ''प्रवासी'' पत्रिका में 'यज्ञभंग' नाम से एक लेख लिखा।मध्यपंथियों और चरमपंथियों के आपसी झगड़े की उन्होंने निंदा की। उन्होंने लिखा कि सभा या जुलूस से ज्यादा जनता को जोड़ना जरूरी है। दोनों ही गुटोंके गुस्से के कारण 1910 को पाबना में होने वाले बंगीय प्रादेशिक सम्मेलन के सभापति पद को लेकर झगड़ा और बढ़ गया। लोगों के काफी कहने पर आखिरकाररवीन्द्रनाथ सभापति बनने को तैयार हुए। इस सम्मेलन में रवीन्द्रनाथ ने बांग्ला में अपना भाषण पढ़ा। अब तक जितने भी सभापति हुए थे, सब अपना भाषणअंग्रेजी में पढ़ते आए थे। हालांकि इस सम्मेलन में लोगों को उनका भाषण खास पसंद नहीं आया, क्योंकि उस भाषण में उन्होंने कई चीजों के प्रति अपनाविरोध प्रकट किया था।

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