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रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


रवि कहानी

एक

रवीन्द्रनाथ को अस्सी साल की लंबी उम्र मिली थी। उनका जीवन दु:ख-सुख से भरा था। उसी केबीच में लिखते-पढ़ते भी रहे। जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में सन् 1861 में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने न सिर्फ अपने परिवार का बल्कि बंगाल और पूरे देश कानाम रोशन किया। उनके पिता और दादा दोनों ही जाने-माने लोग थे। इनके अलावा भी उनके परिवार में ऐसे ही लोग और भी थे। मगर रवीन्द्रनाथ इन सबसे आगे बढ़गए। उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। उनको समझने और जानने के लिए उस समय के इतिहास की जानकारी जरूरी है, इसके अलावा उनके पुरखों केबारे में भी जानने की जरूरत है। जसोर जिले से कलकत्ता आकर उनके एक पुरखे ने किस तरह खूब धन कमाया तथा उनके बाद उनकी आने वाली पीढ़ी ने परिवार कानाम रोशन किया, यह कहानी जितनी रोचक है उतनी ही चौंकाती भी है। रवीन्द्रनाथ की सात पीढ़ी पहले उनके पुरखे पंचानन से यह कहानी शुरू होतीहै।

पंचानन कुशारी जसोर जिले से अपनी किस्मत आजमाने कलकत्ता आए थे। उन दिनों इस देश में अंग्रेजों नेअपना व्यापार शुरू ही किया था।

सन् 1690 ईसवी में जॉब चार्नक नामक एक अंग्रेज इस देश में आए थे। उसके कुछ सालबाद ही जसोर के पीठाभोग नामक गांव से सूतानुटी अंचल में गंगातट पर पूजा-पाठ कराने के लिए कुशारी महोदय का आगमन हुआ। लोग उन्हें ''ठाकुरमहाशय'' कहने लगे, जिस तरह के बाकी दूसरे पुरोहितों को कहते थे। तभी से उनका नाम पंचानन ठाकुर पड़ गया। बाद में उनकी आने वाली पीढ़ी के साथ यहीपदवी जुड़ गई।

पूजा-पाठ करने के साथ-साथ ठाकुर महाशय घाट पर खड़ेजहाजों के कप्तानों के साथ थोड़ा बहुत लेन-देन का कारोबार भी करने लगे।इससे उनकी अच्छी आमदनी होने लगी। कई साल बाद उनके पास खूब पैसा हो गया।

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