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हास्य-व्यंग्य >> चौपाल के मखौल

चौपाल के मखौल

शमीम शर्मा

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :308
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4730
आईएसबीएन :81-8143-432-3

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इस पुस्तक का उद्देश्य आपके तनावभरे जीवन में हँसी की हिलोरें पैदा करना है।

Chaupal Ke Makhaul

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

चौपाल के मखौल’ की खासियत या है अक इसमें बहोत सहज अर हलकी-फुलकी हिंदी-हरियाणवी मैं जो सामग्री छपी है, वा सचमुच ही धरती से जुड़ी होई है।
‘चौपाल के मखौल’ मैं हसी-मसखरी के जो लटके पैदा होए हैं उन नैं पढ़ कै कोए भी हांस्से बिना नहीं रह सकता।
ठेठ हरियाणवी मैं लिखे ये मखौल एक तैं एक निराले हैं अर इनमैं कोए मिलावट नहीं है।
ये मखौल पढ़कै हंसते-हंसते पेट मैं बल पड़ ज्यांगे अर सुवाद सा आ ज्यैगा।
एक बर की बात है अक सुरजा अपणी बहू नैं लेण ससुराल जा रह्या था। चाल्लण के टैम पर सास्सू उसतैं जवाहरी के नाम के 50 रुपिये देण लाग्गी तो सुरजा बोल्या- ले ले बेट्टा, घणे कोनीं। सुरजा फेर नाट ग्या। धोरै खड़ी उसकी साली बोल्ली- ले ले नैं जीज्जा, घणे कित हैं, फेर तीन दर्जन तो केले ही ल्याया था। साली की या सलाह सुणते ही सुरजा अग बबूला होते होए बोल्या- मैं आड़ै केले बेच्चण कोनी आया था, मैं तो बहू लेण आया था।

 

मन की बात

एक बार बरसात के दिनों में कॉलेज में इंग्लिश के पीरियड में मेरी पैण्ट के पौंचे में एक मकौड़ा घुस गया था तो साथ वाली लड़की के पूछने पर बताते समय मेरी हँसी छूट पड़ी थी। मुझे हँसता हुआ देखकर मेरी इंग्लिश की प्राध्यापिका ने मुझे खड़ा करके हँसने की वजह पूछने के बजाए खूब लताड़ा तो मुझे बहुत झुंझलाहट हुई थी कि हँसने पर भी इतनी झाड़ मिली मुझे। आज जब मैं स्वयं एक कॉलेज में पढ़ाती हूँ तो हँसते हुए विद्यार्थी को धमकाने की बजाय उसे खड़ा करके उससे पूरी क्लास को उसके हँसने की वज़ह सुनवा देती हूँ ताकि दूसरे लोग भी हँस सकें और मैं भी।
एक बार घर में कोई समारोह था। पूरा परिवार घर में जमा था। हम कई हमउम्र लड़कियाँ एक कमरे में आपस में बातचीत करते हुए ज़ोर-ज़ोर से हँस रही थीं तो मेरी एक नज़दीकी रिश्तेदार बुजुर्ग महिला ने डाँटते हुए हमें कहा—क्या बदतमीज़ी है ? आराम से नहीं हँस सकती हो ? लड़कियों की तरह हँसो। आज तक मेरी समझ में यह बात नहीं आई कि लड़कियाँ खुलकर क्यों न हँसें। क्या हँसी का भी कोई लिंग होता है ?

‘चौपाल के मखौल’ का नया संस्करण आपके हाथ में है मैंने इसे संवर्धित करने का भी प्रयास किया है। हँसी-ठट्टों के बिना जीवन है भी क्या ? महज एक गणित जहाँ सारा दिन घटा-जोड़ रहता है, या फिर एक समाजशास्त्र जहाँ सारा दिन मन समाज की अच्छी-बुरी रस्मों में ही उलझा रहता है। दरअसल यह किताब एक चौपाल न होकर आपके पास रची-बसी जीवन की चौपाल है जहाँ मसखरियों और चुहलबाजियों में कहीं प्यार और सहकार व्यक्त हुआ है तो कहीं खट्टे-मीठे ताने-उलाहने। चौपाल स्थाई दस्तक है आपकी चौखट पर। जब आप चाहें मुलाकात होगी आपसे और इस मुलाकात में गजब भर ठहाके लगेंगे। ठहाके यानी उन्मुक्त हँसी। मुस्कराना अपनी जगह ठीक है पर ठहाकों में एक संगीत है, एक लय है और एक रिश्ता भी। रिश्ता कि ठहाके सुनकर, सुननेवाला और निकट आकर आपसे और बातें सुनना चाहता है। ठहाका तो पास लाने का बुलावा है और बहाना भी। ठहाके आपको इतना मस्त कर देते हैं कि आपको पता भी नहीं चलता कि कब में से ताली बज गई है। आप प्रयास करके भी कई बार ताली नहीं बजा सकते पर ज़ोर से हँसते समय खुद-ब-खुद बजती हैं तालियाँ। तालियाँ कुदरत का दिया वह तबला है जिसे बच्चे-बूढ़े-जवान जब चाहें, जहाँ चाहें बजा सकते हैं किन्तु हँसते समय जब ताली बजती है तो लगता है आपने ताली नहीं बजाई, कोई आपसे ताली बजवा गया।

हम झूठ-मूठ की हँसी हँस सकते हैं, बनावटी मुस्करा सकते हैं पर ठहाके तो दिल में ही उगते हैं, दिल से ही बरसते हैं और दिल में ही बहते हैं। यानी कि ठहाके आदमी की आवाज न होकर दिल की आवाज़ हैं। हृदय से हँसते समय जैसे वक्त तो रुक ही जाता है, मन महक उठता है और हम एक नई उर्जा से भर जाते हैं, नए आनन्द से हमारा मन सराबोर हो उठता है, चिन्ता-फिक्र तो जैसे उस पल छूमंतर हो जाते हैं, हास्य हमें निश्छल व हल्का कर देता है। क्या आपने हँसते हुए आदमी को क्या किसी का खून करते हुए देखा है ? चलो छोड़ो खून तो बड़ी बात है। क्या आपने हँसते हुए आदमी को गाली देते सुना है ? हँसता हुआ व्यक्ति कभी गाली दे ही नहीं सकता। शुद्ध हँसी से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। कुछ लोग हैं तो अपनी आदत या हालात के कारण कभी हँस नहीं पाते हैं और ऐसे भी हैं जो हर हालात में ठहाके लगाकर हँस सकते हैं। ऐसे ही लोगों की हँसी बरसों कानों में गूँजती रहती है।

कुछ रिश्ते, रिवाज और परम्परागत चीज़ें मानो खो सी गई हैं। उन्हें मैंने ‘ढूँढ़ते रह जाओगे’ में अपने पति श्री भारतभूषण प्रधान के साथ मिलकर ढूँढ़ने का प्रयास किया है। आप पढ़ेंगे तो मन ही मन आपको लगेगा सचमुच काफी कुछ खो गया है और साथ ही आपके मन में भी खोई हुई चीज़ों की एक सूची बनने लगेगी। अगर ऐसा हुआ तो यह हमारे प्रति आपका जुड़ाव होगा।

‘चौपाल के मखौल’ के दूसरे संस्करण के प्रकाशन का श्रेय उन पाठकों को है जिन्होंने मुझसे बार-बार आग्रह किया कि ‘चौपाल के मखौल’ का भाग दो प्रकाशित करें और यह जिम्मा उठाया है श्री अरुण माहेश्वरी ने। अरुण जी की आभारी हूँ और पाठकों के प्रेम की कर्ज़दार हूँ। प्रूफ रीडिंग में विशेष सहयोग दिया है मेरी मित्र डॉ. मधुबाला ने जिनकी आँख से कोई अशुद्ध शब्द बच ही नहीं सकता।

 

        या तो दीवाना हँसे या तू जिसे तौफ़ीक दे
        वरना इस दुनिया में आकर मुस्कराता कौन है।

 

शमीम शर्मा

 

ढूँढ़ते रह जाओगे

 

साग में तोरी                    कोरड़ा होली का
घराँ में बोरी                    माल मोली का
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओगे।

लुगाइयाँ या घाघरा                आग चूल्हे की
खिचड़ी या बाजरा                संटी दूल्हे की
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओगे

गाबरुआँ का हांगा                सिरसम का साग
सवारी का टाँगा                सिर पै पाग
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओगे।

दूध दही की हांडी                आँगण मैं ऊखल
भाई-भतीज गुहांडी                कूण मैं मूसल
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओगे।

बास्योड़ा का खाणा                घराँ मैं लस्सी
मेले में जाड़ा                    लत्ते टाँगण की रस्सी
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओगे।

जोड़ी बैलों की                    गन्ने की पोरियाँ
रागणी छैलाँ की                माँ की लोरियाँ
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओगे।

हटड़ी हर आला                    काँसी की थाली
बुड़कलाँ की माला                सुसराल मैं साली
ढूँढ़ते रह जाओ                    ढूँढ़ते रह जाओ

घराँ में पोली                    घर मैं खूँटी
लट्ठमार होली                    गली मैं टूटी
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

ब्याह में खोड़िया                ताबे का लोटा
बालकों की पोड़िया                तुड़ी का कोठा
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

बधाई की भेल्ली                कुंडी का सोटा
गांम में हेल्ली                    टाब्बर मोटा
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

कलम सांठी की                लकड़ी की टाल
खरीज गाँठीकी                    सुख मैं बीत्या साल
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

पहलवान्नाँ का लंगोट                घराँ मैं बुढ्ढे
हनुमान जी का रोच                बैठकां मैं मुढ्ढे
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

घूँघट आली लुगाई                किसान का हल
गांम में दाई                    मेहनत का फल
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ
गली में नाण                    चूड़ी भरी कलाई
ब्याह में बाण                    ब्याह में शहनाई
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

रौनक मेलां की                    पित्तरां का मान
बीन सपेलां की                    गीता का ग्यान
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

लालटेन का चानणा                मुलतानी अर गेरू
बनछटियाँ का बालणा                बलद का रेहडू
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

जंग में नगाड़ा                    लकड़ी का ईधन
गाँव में अखाड़ा                    भाप का ईंधन
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

काबुआ कांसी का                गाता होया गाँव
काढ्ढा खासी का                बरगद की छाँव
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

         खांड का कसार            पीले चावल बरातियाँ के
     टींट का अचार               दाल-भात भातियाँ के
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

दातन नीम का                 गुड़ की गुड़ियाणी
छौंक हींग का                    सास बहू स्याणी
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

काज्जल कौंचे की                बाईस्कोप के तमास्से
शुद्धताई चौंके की                दीवाली के खील पतासे
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

बासी रोटी अर अचार                कमोई अर करवे
गली में घूमते लुहार                चाय-पानी के बरवे
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

टोपी वाला नेता                बिना हवाले का लीडर
गैर राजनीति अभिनेता            मतदाता नीडर
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

बिना लट्ठ के चुनाव                बिना नोट के वोट
चुनावाँ मैं नेता के ताव            नेता बिना खोट
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

बीजणाँ नौ डाँडी का                ड्योटी की सौड़
दूध-दही घी हांडी का                दूल्हे का मोड़
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

उपलाँ का हारा                    गुड़ की सुहाली
अर साडू प्यारा                    खेत में हाली
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

बोरला नान्नी का                सवा मन का चूरमा
गंडासा सान्नी का                घर में बनाया सूरमा
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

पाणी भरे देग                    सेवियाँ की खीर
भाण-बेटियाँ के नेग                घूँघट आली बीर
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

गोज्जे दूध के                    घराँ मैं चूल्हा
चरखे सूत के                    घोड़ी पै दूल्हा
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

गर्मियाँ में राबड़ी                रसोई मैं लोट्टा
खेताँ में छाबड़ी                    न्हाणघर मैं सोट्टा
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

पहंडे पै टोकणी                    घूँघट मैं गोरियाँ
चूल्हे आगै फूँकणी                पनघट पै छोरियाँ
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

हारे में बलती आग                हाथ में झोला
ब्याह में पेट्ठे का साग            खीर का कचोला
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

सकट चौथ के तिल                रसोई मैं सिलबट्टा
कीड़नाल के बिल                छोरियाँ कै दुपट्टा
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

हाथ का बँटा बाण                पड़ौसियाँ कै खट्टा
नवाबांआली शान                घर में पीढ़ा-पट्टा
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

कोट्टे मैं न्यार                    गुलगुला बरसात का
भाइयाँ का प्यार                चूरमा संक्रान्त का
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

मूच्छाँ की आन                दूध पै मलाई
बुजरगाँ की शान                लोगाँ के समाई
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

ताऊ का साफा                    साम्मण की पींग
अखबारी लिफाफा                घराँ मैं हींग
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

पानी भरणिए कहार                तीज्जाँ पै सेवियाँ
सास बहू का प्यार                कहानियाँ मैं देवियाँ
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

तीज्जां की कोथली                नानी की कहानी
रुपये-पौसां की पोटली                जौं की धानी
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

गली में आंकल                    ताऊ का हुक्का
दरवाज्याँ पै सांकल                ब्याह का रुक्का
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

घर मैं पीतल                    भजनी अर ढोलक
गली में पीपल                    मिट्टी की गोलक
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

दीवार मैं आला                    पीले चावलाँ का न्यौता
पाजामे मैं नाला                सात पोतियाँ पै पोत्ता
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

बाठक में खाट                    बलदाँ के गले मैं घण्टी
ताखड़ी अर बाट                देवर भाभी की सण्टी
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

बर्तना पै कली                    लुहार की धोकनी
गुड़ की डली                    पीतल की टोकनी
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

गांम मैं पनघट                    देवरां के घेवर
मदारी का जमघट                सासुआँ के तेवर
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

घी का माट                    ब्याह के बनवारे
भूने होए टाट                    सुहागी मैं छुहारे
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

मूंज की खाट                    सीठणे लुगाइयाँ के
धड़-सेर के बाट                नखरे हलवाइयाँ के
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

बटेऊआं की शान                बान अर हलदान
बहुआं की आन                    गोरवे पै परात
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

ब्याह मैं मेल                    बटेऊ की नीम झड़ाई
गाम्माँ के खेल                    सालियाँ की जूत्ता लुकाई
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

पील गर्मियाँ मैं                गुल्ली डण्डे का खेल
गूँद सदियाँ मैं                    गुड़ की सेल
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

चौखट पै बन्दनवार                नट-नटणी के खेल
गीत-त्योहार-बार                भाई बिरादरी मैं मेल
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

दातून नीम की                    खेतां मैं कोल्हू
चुटकी अफीम की                नाम्माँ मैं मोलू
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

धोण-धड़ी के बाट                बुढ़िया का दाम्मण
मूंज-जेवड़ी की खाट                फेराँ पै बाम्मण
ढूँढ़ते रह जाओगे।                ढूँढ़ते रह जाओ

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