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हास्य-व्यंग्य >> जाने क्या टपके

जाने क्या टपके

अशोक चक्रधर

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4729
आईएसबीएन :81-7182-955-4

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छंद और गति तत्व अशोक चक्रधर की शक्ति हैं। अपनी इस शक्ति को वे निज नाट्य-कौशल से द्विगुणित करना भी जानते हैं। इस पुस्तक की रचनाओं के बारे में वे कहते हैं-कभी कामों ने हमें लपका कभी हमने काम लपके, नजरें, ऊपर.. हाथ ऊपर जाने क्या टपके !

Jane Kya Tapke

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आकाशवाणी और दूरदर्शन में
जिनके लिए मैंने
दत्तचित्त होकर काम किया
ऐसे अपने प्रिय
कमल दत्त
कमलिनी दत्त
कुबेर दत्त
और
शरद दत्त
को
सादर सप्रेम भेंट

छोटी सी आशा’ की कविताएं


(धारावाहिक ‘छोटी सी आशा’ पहले तमिल भाषा में बन चुका था। श्री के. बालाचन्दर भावनाओं का उद्रेक पहचानते हैं। तमिल में यह धारावाहिक जब बहुत लोकप्रिय हुआ तो उनके पुत्र कैलासम् ने इसे हिन्दी में बनाया। प्रिय राधवेश की ओर से मुझे अभिनय के साथ कविता लेखन का प्रस्ताव मिला। मूल कविताएँ तमिल के यशस्वी गीतकार वाली ने लिखी थीं। उनकी कविताओं ने प्रस्थान बिन्दु का कार्य किया और परिणाम में प्राप्त हुईं प्रस्तुत कविताएं। इनमें कहीं वाली की कविताओं का भावानुवाद है तो कहीं उत्तर-भारतीय दर्शक की मानसिकता और भाषा-संस्कार के अनुरूप नवीन उद्भावनाएं हैं। बहरहाल, अभिनय करने और इन कविताओं को रचने में ख़ूब आनंद आया। त्रिपाठी के चरित्र को अभिनीत करना चुनौती का कार्य था क्योंकि उन्होंने अपने बेटे की शहादत की ख़बर अपनी पत्नी से पूरे एक साल तक छिपाई। दुख पीकर सुख बांटने वाला चरित्र किसे अच्छा नहीं लगेगा। प्रस्तुत सभी कविताएं त्रिपाठी मास्टर ने अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग चरित्रों को सुनाईं।)

होटल में लफड़ा


जागो जागो हिन्दुस्तानी,
करता ये मालिक मनमानी।
प्लेट में पूरी
अभी बची हुई है
और भाजी के लिए मना जी !
वा....जी !

हम ग्राहक, तू है दुकान...
पर हे ईश्वर करुणानिधान !
कुछ अक़्ल भेज दो भेजे में
इस चूज़े के लिए,
अरे हम बने तुम बने
इक दूजे के लिए।

भाजी पर कंट्रोल करेगा,
हमसे टालमटोल करेगा
देश का पैसा गोल करेगा,
इधर हार्ट में होल करेगा
तो देश का बच्चा बच्चा बच्चू,
चेहरे पर तारकोल करेगा।
सुनो साथियो !
इस पाजी ने मेरी प्लेट में
भाजी की कम मात्रा की थी,
नमक टैक्स जब लगा
तो अपने गांधी जी ने
डांडी जी की यात्री की थी।

पैसा पूरा, प्याली खाली,
हमने भी सौगंध उठा ली-
यह बेदर्दी नहीं चलेगी,
अंधेरगर्दी नहीं चलेगी।
जनशोषण करने वालों को
बेनकाब कर
अपना आईना दिखलाओ,
आओ आओ,
ज़ालिम से मिलकर टकराओ।

पल दो पल का है ये जीवन
तुम जीते जी सिर न झुकाओ,
अत्याचारी से भिड़ जाओ।

नेता इससे मिले हुए
वोटर के आगे झूठ गा रहे,
भ्रष्टाचार और बेईमानी
दोनों मिलकर ड्यूट गा रहे।
घोटालों के महल हवेली,
भारत मां असहाय अकेली !
तड़प रही है भूखी प्यासी,
अब हम सारे भारतवासी,
जब साथ खड़े हो जाएंगे,
तो एक नया इतिहास बनाएंगे।
भारत मां के सपूतो
इस मिट्टी के माधो,
अब चुप्पी मत साधो !

क्रांति का बिगुल बजाओ,
मेरी आवाज़ सुनो,
टकराने का अंदाज़ चुनो।
अगर तुम्हें अपना ज़मीर
ज़रा भी प्यारा है,
तो हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में
संघर्ष हमारा नारा है।

भोजन प्रशंसा


बागेश्वरी, हृदयेश्वरी, प्राणेश्वरी।
मेरी प्रिये !
तारीफ़ के वे शब्द
लाऊं कहां से तेरे लिये ?
जिनमें हृदय की बात हो,
बिन कलम, बिना दवात हो।

मन-प्राण-जीवन संगिनी,
अर्द्धांगिनी,
....न न न न न....पूर्णांगिनी।
खाकर ये पूरी और हलुआ,
मस्त ललुआ !

(थाली के व्यंजन गिनते हुए)
एक, दो, तीन, चार, पांच, छः, सात
बज उठी सतरंगिनी,
सतव्यंजनी-सी रागिनी।

तेरी अंगुलियां...
भव्य हैं तेरी अंगुलियां
दिव्य हैं तेरी अंगुलियां।
कोमल कमल के नाल सी,
हर पल सक्रिय
मैं आलसी।
तो...
तेरी अंगुलियां,
स्वाद का जादू बरसता,
नाचतीं मेरी अंतड़ियां।

खन खनन बरतन
किचिन में जब करें,
तो सुरों के झरने झरें।
हृदय बहता,
लगे जैसे जुबिन मेहता,
बजाए साज़ अनगिन,
ताक धिन धिन
ताक धिन धिन
ताक धिन धिन
एक आर्केस्ट्रा...
वहाँ भाजी नहीं ऐक्स्ट्रा !

यहां थाली
मसालों की महक-सी
ज्यों ही उठाती है,
लकप कर भूख
प्यारे पेट में बाजे बजाती है,
ये जिव्हा लार की गंगो-जमुन
मुख में बहाती है,
मधुर स्वादिष्ट मोहक
इंद्रधनुषों को सजाती है,
चटोरी चेतना थाली कटोरी देखकर
कविता बनाती है।
कि पूरी चंद्रमा सी
और इडली पूर्णमासी।
मन-प्रिया सी दाल वासंती,
लगे, चटनी अमृतवंती।

यही ऋषिगण कहा करते,
यही है सार वेदों का,
हमारे कॉन्स्टीट्यूशन के
सारे अनुच्छेदों का,
कि यदि स्वादिष्ट भोजन
मिले घर में,
इस उदर में
ही बना है
मोक्ष का वह द्वार,
जिसमें है महा उद्धार।
हे बागेश्वरी !
हृदयेश्वरी !!
प्राणेशवरी !!!
तेरे लिए मेरे हृदय में प्यार,
अपरंपार !

मनोहर को विवाह-प्रेरणा


रुक रुक ओ टेनिस के बल्ले,
जीवन चलता नहीं इकल्ले !

अरे अनाड़ी,
चला रहा तू बहुत दिनों से
बिना धुरी के अपनी गाड़ी !

ओ मगरुरी !
गांठ बांध ले,
इस जीवन में गांठ बांधना
शादी करना
बहुत ज़रूरी।

ये जीवन तो है टैस्ट मैच,
जिसमें कि चाहिए
बैस्ट मैच।
पहली बॉल किसी कारण से
यदि नौ बॉल हो गई प्यारे !
मत घबरा रे !

ओ गुड़ गोबर !
बचा हुआ है पूरा ओवर।
बॉल दूसरी मार लपक के,
विकिट गिरा दे
पलक झपक के।
प्यारे बच्चे !
माना तूने प्रथम प्रेम में
खाए गच्चे।
तो इससे क्या !
कभी नहीं करवाएगा ब्या ?

अरे निखट्टू !
बिना डोर के बौड़म लट्टू !
लट्टू हो जा किसी और पर
शीघ्र छांट ले दूजी कन्या,
मां खुश होगी
जब आएगी उसके घर में
एक लाड़ली जीवन धन्या।

अरे अभागे !
बतला क्यों शादी से भागे ?
एकाकी रस्ता शूलों का,
शादी है बंधन फूलों का।

सिर्फ़ एक सुर से
राग नहीं बनता,
सिर्फ़ एक पेड़ से
बाग नहीं बनता।
स्त्री-पुरुष ब्रह्म की माया
इन दोनों में जीवन समाया।
सुख ले मूरख !
स्त्री-पुरुष परस्पर पूरक।
अकल के ढक्कन !
पास रखा है तेरे मक्खन।
खुद को छोड़ ज़रा सा ढीला,
कर ले माखन चोरी लीला।
छोरी भी है, डोरी भी है
कह दे तो पंडित बुलवाऊं,
तेरी सप्तपदी फिरवाऊं ?

अरे मवाली !
मेरे उपदेशों को सुनकर
अंदर से मत देना गाली।

इस बात में बड़ा मर्म है, कि गृहस्थ ही
सबसे बड़ा धर्म है।
ये बताने के लिए
तेरी मां से
रिश्वत नहीं खाई है,
और न ये समझना
कि इस रिटार्यड अध्यापक ने
अपनी ओर से बनाई है।
ये बात है बहुत पुरानी,
जिसको कह गए हैं
बडे-बड़े संत
बड़े-बड़े ज्ञानी।
ओ अज्ञानी !
बहुत बुरा होगा अगर तूने
मेरी बात नहीं मानी !
चांद उधर पूनम का देखा
इधर मचलने लगे जवानी,
चांद अगर सिर पर चढ़ जाए
हाय बुढ़ापे तेरी निशानी !

मुरझाए फूलों के गमले !
भाग न मुझसे थोड़ा थम ले !
बुन ले थोड़े ख्बाव रुपहले,
ब्याह रचा ले
गंजा हो जाने से पहले।

बहन जी ! निराश न हों
ये एक दिन
अपना इरादा ज़रूर बदलेगा,
ज़रूर बदलेगा।
जैसे चींटियां चट्टान पर
छोड़ जाती हैं लीक,
जैसे कुएं की रस्सी
पत्थर को कर लेती है
अपने लिए ठीक !
ऐसे ही
इसका अटल निर्णय भी बदलेगा
कविताएं सुन-सुन कर
पत्थर दिल ज़रूर पिघलेगा।
डॉण्ट वरी !





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