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स्वराज्य की कहानी 2

ज्ञानेश्वर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4608
आईएसबीएन :81-237-2069-6

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बनारस की सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ रही थी। बहुत बड़ा जुलूस गांधी जी की जय वंदे मातरम् के नारे लगाता हुआ गुजर रहा था। लोगों में बेहद जोश था।...

Swarajay Ki Kahani 2 A Hindi Book by Sumangal Prakash

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

वंदे मातरम

बनारस की सड़कों पर भीड़ उमड़ प़ड़ रही थी। बहुत बड़ा जुलूस ‘गाँधी जी की जय’ और वंदे मातरम् के नारे लगाता हुआ गुजर रहा था। लोगों में बेहद जोश था सन् 1919 के जलियाँवाला बाग वाले हत्याकाण्ड और पंजाब में हुए जुल्मों के दिल दहला देने वाले पूरे समाचार लोगों के बीच साल-डेढ़ साल बाद फैल पाए थे। जिनसे जनता बेहद भड़क उठी थी। हजारों कंठों से निकलते वे नारे आसमान को कँपा रहे थे। अचानक पुलिस उन पर टूट पड़ी। धर पकड़ शुरू हो गयी । भीड़ में तेरह-चौदह साल का एक लड़का भी था। जो बड़े जोश के साथ ‘वंदे मातरम्’ का नारा लगा रहा था। पुलिस ने उसको भी पकड़ लिया।

यह घटना 1921 की है जब गाँधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन जोर पकड़ रहा था।
जिस लड़के का जिक्र यहाँ किया गया है उसका नाम था चन्द्रशेखर। मैजिस्ट्रेट के सामने जब उसे पेश किया गया और उसका नाम पूछा गया तो उसने गर्व से सिर उठाकर कहा, ‘‘आजाद’’। उसे कोडे़ लगाने की सजा दी गयी ।

जेल में उस लड़के को नंगा करके कोड़े लगाये जाने लगे। पहले को़डे़ की ही चोट से वह तिलमिला उठा। लेकिन उसी दम चिल्ला उठा,‘‘ वंदे मातरम् !’’

कोडे़ पर कोड़े पड़ते चले गये । हर कोड़े के बाद वह लड़का और भी जोर से चिल्लाता गया,‘‘ वंदे मातरम् !’’ यहाँ तक की मार खाते-खाते वह बेहोश हो गया। कोड़ों की उस मार ने सचमुच उस लडके को आजाद कर दिया। तब से उसे कड़ी से कड़ी यातना का भी डर नहीं रहा।

यही वीर बालक आगे चलकर चन्द्रशेखर आजाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इनकी बहादुरी की बातें आगे बताएँगे।
स्वराज की कहानी के पहले भाग में बताया जा चुका है कि 1905 के बंग-भंग के बाद देश में जबर्दस्त जागृति फैल गयी थी। ऐसे नेताओं की, जो अंग्रेज सरकार का समर्थन करते थे, ताकत घटती जा रही थी। क्रान्तिकारियों की गुपचुप की जाने वाली कार्रवाइयाँ बढती जा रही थीं। वे चुन-चुन कर ऐसे अंग्रेज अफसरों की हत्या कर ड़ालते थे।

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