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आधुनिक औद्योगिक एवं संगठनात्मक मनोविज्ञान

मुहम्मद सुलेमान, विनय कुमार चौधरी

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :480
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4578
आईएसबीएन :81-208-2718-x

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आधुनिक औद्योगिक एवं संगठनात्मक मनोविज्ञान

Aadhunik Auddhogik Evam Sangathanatamak Manovigyan a hindi book by Muhammad Suleman, Vinay Kumar Chaudhari -आधुनिक औद्योगिक एवं संगठनात्मक मनोविज्ञान - मुहम्मद सुलेमान, विनय कुमार चौधरी

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तुत पुस्तक में 25 अध्याय है जिनमें कई महत्वपूर्ण विषयों जैसे नैदानिक वर्गीकरण एवं मूल्यांकन, असामान्य व्यवहार के वर्तमान सिद्धान्त के मॉडल, असामान्य व्यवहार के कारण, स्वप्न, चिंता, विकृति मनोविच्छेदी प्रकृति, मनोदैहिक विकृति, व्यक्तित्व विकृति, द्रव्य-संबंद्ध विकृति, मनोदशा विकृति,मनोविदालिता, व्यामोही विकृति. मानसिक मंदन, मनश्चिकित्सा जैसे महत्वपूर्ण विषयों को सम्मिलित किया गया है।

लेखक की ओर से


तीन वर्षों के सतत एवं अथक परिश्रम के बाद यह पुस्तक पाठकों के हाथों तक पहुँचाने के प्रयास में सफल होना हमें अतीव प्रसन्नता दे रहा है किन्तु सफल होने का दावा हम तब ही करेंगे जब सुधी पाठकों द्वारा इस पुस्तक को इसके गुणों के आधार पर अपनाया जाएगा साथ ही साथ, हमारा ध्यान उन त्रुटियों की ओर आकृष्ट किया जाएगा जो पुस्तक रचना के क्रम में हमें दृष्टिगोचर नहीं हुई हों।
प्रस्तुत पुस्तक की रचना हमने बी.ए. (ऑनर्स) एम.ए. तथा विभिन्न प्रतियोगिताओं की तैयारी करने वाले छात्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किया है और हमारा प्रयास रहा है कि औद्योगिक मनोविज्ञान के क्षेत्रों की व्यापकता को पूर्णतः स्वीकारते हुए उन्हें छात्रों की सुविधानुसार समेट कर प्रस्तुत किया जाए। इसमें हम कहाँ तक सफल हो चुके हैं इसका निर्णय पाठकगण करेंगे।
विगत् तीन दशकों में MBA की पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी है जिन्हें संगठनात्मक मनोविज्ञान का गहन अध्ययन करना होता है। उन छात्रों में हिन्दी भाषी छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है। अतः उनकी आवश्यकताओं को देखते हुए हमने इस पुस्तक के अन्तिम कुछ अध्याय संगठनात्मक मनोविज्ञान के दिये हैं।
इस पुस्तक की रचना प्रक्रिया में जिन पुस्तकों तथा जर्नल्स की सहायता ली गई है उनके लेखकों के प्रति हम हृदय से आभारी हैं। हमने प्रयास किया है कि विलय की नवीनतम अभिधारणाओं को पुस्तक में स्थान मिले और इस दशक में हुए उन अध्ययनों को जिन पर हम पहुँच सके थे, इसमें सम्मिलित भी किया गया है। मनोविज्ञान दिनानुदिन विकसित होता हुआ विज्ञान है, और औद्योगिक तथा संगठनात्मक मनोविज्ञान में अदृनिश शोध कार्य चल रहे हैं। जितने शोध परिणाम हम तक पहुँच सके हमने समुचित स्थलों पर उन्हें दिया है ताकि छात्रगण नवीन अभिधारणाओं से अधिक-से-अधिक अवगत् हो सकें।
हम अपने प्रकाशक मोतीलाल बनारसीदास और विशेष कर उनके पटना स्थित प्रबंधक श्री कमला प्रसाद सिंह जी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं जो सम्पूर्ण रचना काल में प्रेरित करते रहे हैं और अत्यंत कम समय में उन्होंने हमारे सारे प्रयास को पुस्तक रूप दे दिया।
अपनी तरफ से हमने पूरा प्रयास किया है कि पुस्तक में कोई कमी या त्रुटि न रहने पाए किन्तु इसकी संभावना को हम स्वीकार नहीं कर सकते। अतः पाठकों से हमारा विनम्र अनुरोध है कि यदि उनका ध्यान किसी कमी या त्रुटि पर जाए तो वे हमें अवश्य बताने का कष्ट करें ताकि पुस्तक के अगले संस्करण में हम उसे दूर कर सकें।
अंत में हम अपने उन सभी मित्रों, सहयोगियों तथा छात्र-छात्राओं के प्रति अपना आभार प्रकट करना चाहेंगे जो इस पुस्तक की रचना के लिए हमें प्रेरित करते रहे हैं।
पाठकों द्वारा इस पुस्तक का अपनाया जाना ही उसकी सफलता का मापदण्ड होगा।

अध्याय 1
परिभाषा


औद्योगिक मनोविज्ञान की विशिष्ट परिभाषाओं तक पहुँचने के पहले यह जान लेना अभीष्ट है कि जिस संज्ञा शब्द ‘उद्योग’ की विश्लेषण ‘औद्योगिक’ है, उसका अर्थ क्या है ? दो पदों उत् एवं योग से मिलकर बने इस शब्द ‘उद्योग’ का शाब्दिक अर्थ होना चाहिए था ‘जोड़ना’ किन्तु उत् उपसर्ग के लग जाने से योग शब्द में एक विश्ष्टिता आ जाएगी जो हमें उद्योग का अर्थ ‘जोड़ना’ मात्र बता कर संतुष्ट नहीं कर पाएगी। इस शब्द के अर्थ को समझने के लिए हमें मानव जाति के इतिहास के पहले पन्ने तक जाना होगा। सृष्टि के प्रारम्भ में जब प्राणी ने धरती पर आँखें खोली होंगी और अपने को जीवित एवं सुरक्षित रखने के लिए जो कुछ भी प्रयास किया होगा वह उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयास रहा होगा, और आवश्यकता, साधन एवं साध्य का यही ‘योग’ उद्योग है। मानव जाति के समूहों के सामाजिक तथा सभ्यता की ओर बढ़ते हुए चरणों ने ‘उद्योग’ शब्द के अर्थ को सतत् विशिष्ट एवं विस्तृत किया है। इतिहास के बदलते हुए पन्नों के साथ मानव जाति को पग-पग पर अनेकानेक असंभावित, जटिल एवं मारक परिस्थितियों की दुरूहता को झेलना पड़ा है और झेलने के उस प्रयास में उससे सतत् उद्योगरत रहना पड़ा है। मानव जाति का उद्योग शुरू के दिनों में उसकी आजीविका एवं सुरक्षा के लिए था, फिर सत्ता के लिए आवश्यक बना और आधुनिक काल में उद्योग मानव की समृद्धि के लिए आवश्यक बन बैठा है। यदि हम विचार करें तो पाएँगे कि आज उद्योग जीवनका, समृद्धि एवं सत्ता तीनों के लिए आवश्यक बन चुका है।
उद्योग के शाब्दिक अर्थों की इस पृष्ठभूमि में अब यदि हम औद्योगिक मनोविज्ञान की परिभाषा देना चाहेंगे तो सरल शब्दों में यही कहेंगे कि औद्योगिक मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह व्यावहारिक शाखा है जो किसी भी औद्योगिक संस्थान में कार्यरत् व्यक्तियों के व्यवहारों का वैज्ञानिक अध्ययन करती है। यहाँ इतना स्पष्ट करना उचित होगा कि उन व्यक्तियों के व्यवहारों का अध्ययन उत्पादन तथा कार्यपटुता के विशेष संदर्भ में किया जाता है। यदि कुछ और विशेष कहना चाहें तो हम यह भी कह सकते हैं कि औद्योगिक मनोविज्ञान औद्योगिक संस्थाओं में कार्यरत व्यक्तियों की समस्याओं तथा उनकी अभियोजन शैली का अध्ययन कार्यक्षेत्र तथा प्रयोगशाला में भी करता है। टिफिन एवं मैकक़ॉर्मिक (1971) का कहना है, ‘‘औद्योगिक मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहारों का अध्ययन जीवन के उन क्षेत्रों में करता है जो वस्तु-उत्पादन, वितरण, उपभोग तथा सभ्यता की सेवा से जुड़े हुए हैं।’’1
1.Industrial Psychology is concerned with the study of human behaviour in those aspects of life that are related to production, distribution and use of good and services of the civilization.’’—Tiffin & McCormick
संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि औद्योगिक मनोविज्ञान उद्योग तथा संस्थानों में कार्यरत व्यक्तियों की अनेकानेक समस्याओं के अध्ययन के लिए मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों प्रणालियों को अपनाता है। ब्लम (Blum, 1949) का कहना है, ‘‘औद्योगिक मनोविज्ञान व्यवसाय एवं उद्योगों के अन्तर्गत मानव सम्बन्धों से सम्बद्ध समस्याओं को समझाने के लिए मनोवैज्ञानिक तथ्यों तथा सिद्धान्तों का अनुकूलन अथवा व्याप्ति मात्र है।’’1 हैरेल (1976) में औद्योगिक मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए कहा है कि औद्योगिक मनोविज्ञान व्यवसाय तथा औद्योगिक संस्थानो में कार्यरत् व्यक्तियों का अध्ययन करता है, यह उनकी योग्यता, पात्रता आदि का अध्ययन तो करता ही है कार्य के प्रति उनकी प्रवृत्ति तथा कौशल के संदर्भ में प्रशिक्षण के सिद्धांतों तथा अभ्यास अथवा प्रयोग का भी अध्ययन करता है। आज के युग में प्रबंध प्रशिक्षण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बन गया है। कार्यक्षेत्र के भौतिक पहलुओं का अध्ययन यथा प्रकाश-संयोजन, ताप आदि का कार्यकर्ताओं की उत्पादन-क्षमता तथा उनकी सुरक्षा का प्रभाव, आदि भी औद्योगिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत है। हैरेल (1976) का कहना है, ‘‘औद्योगिक मनोविज्ञान अनेक विषयों का जटिल अध्ययन है किन्तु यह मुख्यतः व्यक्ति का अध्ययन कार्य परिवेश में करता है चाहे वह स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में हो अथवा समूह में।

2
व्यावसायिक मनोविज्ञान
(Occupational Psychology)


औद्योगिक मनोविज्ञान ने विगत तीन दशकों में व्यावसायिक मनोविज्ञान का रूप से लिया है। उद्योग में मनोविज्ञान के पदार्पण ने उसके हर क्षेत्र, हर पहलू को विश्लेषित कर यह प्रमाणित कर दिया है कि किस प्रकार एक उद्योग संस्थान के विभिन्न क्षेत्रों के कर्मचारी उस उद्योग की नीति कि एक डोर से बंध कर अलग-अलग अपना कार्य करते हुए, संगठित होकर प्रयास के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सम्मिलित प्रयास करते रहते हैं। इसीलिए औद्योगिक मनोविज्ञान को संगठनात्मक मनोविज्ञान कहा गया है। बिना संगठन के एक छोटे से समूह को भी लक्ष्य-प्राप्ति में कठिनाइयाँ पेश आ सकती है, तब एक उद्योग में चाहे वह लघु हो, मध्यम हो या बड़ा उद्योग हो संगठन का होना कितना आवश्यक है यह आसानी से समझा जा सकता है।
जीवन के किसी भी पहलू में व्यावहारिक दृष्टिकोण को अपनाने को आज व्यवसाय का नाम दिया जाने लगा है। यदि कोई व्यक्ति बहुत सोच विचार कर अपने वैयक्तिक अथवा पारिवारिक जीवन की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करता है, या दूसरे शब्दों में हम कहें कि वह लाभ और हानि को ध्यान में रखकर अपना छोटे-सा-छोटा कदम भी उठाता है तो लोग उसे व्यावसायिक बुद्धि वाला व्यक्ति कहते हैं। यद्यपि उनके इस कथन में उपहास तथा नकारात्मकता का पुट आता है फिर भी हम जानते हैं कि ऐसे व्यक्ति ही सफल की श्रेणी में आते हैं। तब उद्योग संस्थाओं में जहाँ विभिन्न पृष्ठभूमि के, विभिन्न योग्यता एवं क्षमता वाले व्यक्ति विभिन्न स्तरों पर एक ही लक्ष्य की प्राप्ति के लिए क्रियाशील हों वहाँ व्यावसायिकता के व्यावहारिक ज्ञान तथा क्रियान्वयन के बिना सफलता मिल पाना कितना कठिन होगा यह सोचने की बात है।
1. ‘‘Industrial Psychology is simply the application or extension of Psychological facts and principles to the problems concerning relations human relation in business and industry,’’—Blum. 1949.
2. ‘‘Industrial Psychology is a complicated study of a number of things, but it is always primarily the study of people as individuals or in groups—in the work situation’’—Harrell.T.W.,1976.
औद्योगिक मनोवैज्ञानिकों ने इस दृष्टिकोण से उद्योग संगठनों में व्यावसायिक संबंधों को बढ़ाने के महत्त्व को समझा। व्यावसायिक संबंध से हमारा तात्पर्य यहाँ उद्योग संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों, प्रबंधकों तथा नीति-निर्धारकों के पारस्परिक अन्तर-संबंधों के सकारात्मक स्वरूप से है जिसके अभाव में उद्योग संस्थानों की लक्ष्य-प्राप्ति कि दिशा में सही कदम नहीं उठ सकते।
औद्योगिक मनोविज्ञान में व्यवसाय (occupation) का अर्थ क्या है इसे जानने के लिए हमें दो शब्दों की व्याख्या कर उन्हें समझ लेना आवश्यक है। वे शब्द हैं ‘पद’ (position) तथा ‘कार्य’ (Job)। ‘‘पद उन कार्यों का एक समूह है जो एक व्यक्ति के द्वारा संपादित होता है। किसी संस्थान या दफ्तर में जितने कर्मचारी होते हैं उतने ही पद होते हैं।’’1
‘‘किसी संयत्र, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, शैक्षिक संस्थान अथवा अन्य संगठनों के अन्तर्गत समान पदों के एक समूह को कार्य कहते हैं। एक कार्य में एक या एक से अधिक कई व्यक्ति एक साथ नियोजित रह सकते हैं।’’2
‘‘विभिन्न प्रतिष्ठानों के अन्तर्गत समान कार्यों (Job) का समूह ही व्यवसाय (occupation) है।’’3
उपर्युक्त परिभाषाओं के अलोक में हम यह कह सकते हैं कि पद, कार्य तथा व्यवसाय का सम्मिलित तथा संगठित स्वरूप ही व्यावसायिक मनोविज्ञान है। इस विज्ञान का यह संगठित रूप ही औद्योगिक लक्ष्य की प्राप्ति का आधार है तथा कर्मचारियों की संतुष्टि का स्रोत भी।

कार्मिक मनोविज्ञान
(Personnel Psychology)


औद्योगिक मनोविज्ञान के बदलते हुए स्वरूप ने उद्योग संस्थानों तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के समुचित संचालन में कर्मचारियों (personnel) के महत्त्व को उजागर किया तथा उद्योगपतियों एवं शीर्ष प्रबंधकों ने कर्मचारी-परक नीतियों को अपनाने का फैसला किया। इस नीति परिवर्तन ने उद्योगों के विकास में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और उद्योग संस्थानों के वातावरण में वांछित परिवर्तन होने लगे। कर्मचारियों में उद्योग संस्थान के साथ तादात्म्य बढ़ने लगा जिसका धनात्मक प्रभाव उनके मनोबल पर पड़ा और संस्थानों की उत्पादन क्षमता बढ़ने लगी। एक संतुष्ट कर्मचारी उद्योग संस्थान के लिए कितनी बड़ी नेमत है इस तथ्य को स्पष्ट रूप से महसूस किया जाने लगा। और मनोवैज्ञानिकों के एक समूह ने औद्योगिक मनोविज्ञान को एक नया नाम दिया—‘कार्मिक मनोविज्ञान’ (personnel psychology)। इसके अन्तर्गत कर्मचारी के चयन से लेकर उसका प्रशिक्षण, स्थान निरूपण, प्रेरण, मनोबल, कार्य संतुष्टि आदि के विश्लेषणात्मक अध्ययन किए जाने लगे।
1. ‘‘A position is a group of tasks performed by one person. There are always as many positions as there are workers in a plant or office.’’
2. ‘‘A job is a group similar position in a single plant, business establishment, educational institution or other organization. There may be one or many persons employed in the same job.’’
3. ‘‘An occupation is a group of similar jobs found in several establishment.—Harrell. T.W., 1976.
आर्थर एस.रेबर. (Arthur S.Reber, 1995) ने कार्मिक मनोविज्ञान की परिभाषा देते हुए कहा, ‘‘औद्योगिक अथवा संगठनात्मक मनोविज्ञान के उस अंग का नाम कार्मिक मनोविज्ञान है जो कर्मचारियों के चुनाव, निरीक्षण, मूल्यांकन, तथा कार्यों से संबद्ध अनेक तत्त्वों—यथा, मनोबल, व्यक्तिगत, संतुष्टि, प्रबंधन-कर्मचारी-संबंध, परामर्श आदि के अध्ययन से ताल्लुक रखता है।’’1
कार्मिक मनोविज्ञान की दूसरी परिभाषा जे.पी. चैपलिन (1975) ने दी है। उसकी मान्यता है कि ‘व्यावहारिक मनोविज्ञान की वह शाखा कार्मिक मनोविज्ञान है जो रोजगार की प्रक्रिया, चयन प्रणाली, कर्मचारियों के नियोजन, स्थानान्तरण, प्रोन्नति, पुरस्कार तथा कुछ मामलों में सीमित परामर्श एवं उपचार की गवेषणा करती है।’’2
औद्योगिक मनोविज्ञान का संक्षिप्त इतिहास तथा क्षेत्र
मानव जीवन की जटिलताओं तथा मानव मन की दिनानुदिन बढ़ती हुई ग्रंथियों ने व्यक्ति के जीवन के हर पहलू में मनोविज्ञान के क्षेत्र की व्यापकता को बढ़ाया है और औद्योगिक मनोविज्ञान ने घुटनों के बल चलना शुरू किया था तब इसका क्षेत्र इतना विस्तृत नहीं था जितना आज है। तब मनुष्य की अपेक्षा मशीन को उपयोग में अधिक महत्व दिया जाता था। मशीनें महंगी होती थीं और उन पर काम करने वाले सस्ते मिला करते थे। उद्योगपतियों की नीतियाँ भी स्वार्थपूर्ण हुआ करती थीं कम-से-कम खर्चे से अधिक-से-अधिक लाभ उनका एक मात्र ध्येय होता था और अधिक लाभ के बिना अधिक उत्पादन का श्रेय मशीनों को मिला करता था मनुष्य को नहीं। फलतः उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों में असंतोष बढ़ने लगा जिसका प्रत्यक्ष ऋणात्मक प्रभाव उत्पादन पर देखा जाने लगा। प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब विभिन्न औद्योगिक संस्थानों में उत्पादन कार्यक्षमता तथा कामगारों से संबंधित समस्याएँ बढ़ने लगीं तब औद्योगिक मनोवैज्ञानिकों की सलाह और सेवाओं के लिए उद्योगपतियों में तत्परता जगने लगी। इस समय औद्योगिक मनोविज्ञान को एक विशिष्ट एवं सम्मानपूर्ण अस्तित्व मिला। हालाँकि इसके पूर्व सन् 1901 ई. में अमेरिका में और उसके शीघ्र ही इंगलैंड में औद्योगिक मनोविज्ञान का जन्म हो चुका था। इस सदी के प्रथम चतुर्थांश में औद्योगिक मनोविज्ञान की प्रगति बहुत तीव्र गति से हुई। सन् 1913 में ह्यूगो मंस्टरबर्ग (Hugo MunsterBerg) द्वारा लिखित औद्योगिक मनोविज्ञान की प्रथम पुस्तक The Psychology of Industrial Efficiency प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में लेखक ने औद्योगिक संस्थानों की विभिन्न समस्याओं को वर्णित करते हुए मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर उनका विश्लेषण किया था। प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों में ग्रेट ब्रिटेन’ में थकान शोध परिषद्’। Fatigue Research Board) की स्थापना की गयी जिसके कार्यकलापों में काम के घंटों; कार्य परिस्थितियों, थकान तथा ऊब से संबंधित समस्याओं, दुर्घटना
1. ‘‘Personnel Psychology is a general label for that aspect of industrial/organisational psychology concerned with A—the selecting, supervising and evaluation of personnel, and B—a variety of job related factors such as morale, personal satisfaction management worker—relation, counselling and so forth.’’ Reber, Arthur S. 1995.
2. ‘‘Personnel Psychology is that branch of applied psychology which investigates employment procedures, selection techniques, placement transfer, promotion, rewards of work and which in some cases may include limited guidance and therapy.’’—Chaplin. J.P. 1975.
तथा सुरक्षा आदि अनेक तत्वों को शोध एवं विश्लेषण के लिए शामिल किया गया था। विज्ञापन एवं विपणन ने भी औद्योगिक मनोविज्ञान का ध्यान आकर्षित किया और उसके शीघ्र बाद ही कार्यकर्त्ता-चयन, प्रशिक्षण एवं व्यावसायिक मार्गदर्शन संस्थानों से संबंधित शोधकार्य शुरू हो गए।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद औद्योगिक संस्थानों में बढ़ती हुई मानव समस्याओं ने औद्योगिक मनोविज्ञान का ध्यान आकर्षित किया और सन् 1925 ई. तक औद्योगिक मनोविज्ञान की सीमा रेखा में समाज मनोविज्ञान का पदार्पण हो गया और औद्योगिक संस्थानों में समूह व्यवहार, प्रेरणा के सिद्धान्त, विचारों के संप्रेषण, अन्तर्वैक्तिक संबंध आदि पर शोध किये जाने लगे। सन् 1927 में हॉर्थन समूह (Hawthorne Group) द्वारा प्रो. एल्टन मेयो (Elton Mayo) के दिग्दर्शन में रोथिल्सबर्गर (Roethilsberger) डिक्सन (Dickson), ह्वाइटहेड (Whitehead) तथा होमेन्स (Homans) के द्वारा वेस्टर्न इलेक्ट्रिक कंपनी में किए गए अध्ययनों ने औद्योगिक मनोविज्ञान के विकास को एक नयी दिशा तथा ठोस आधार प्रदान किया। इन अध्ययनों ने औद्योगिक मनोविज्ञान के दृष्टिकोण को आर्थिक से बदलकर सामाजिक कर दिया तथा उद्योपतियों की नीतियों को कार्यपरक न रहने देकर कार्यकर्ता-परक बनाने का प्रयास किया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ग्रेट ब्रिटेन की चिकित्सा शोध समिति (Medical Research Council) व्यावहारिक मनोविज्ञान शोध शाखा ने औद्योगिक संस्थानों की अनेक समस्याओं का शोधपूर्ण अध्ययन कर उनके समाधान प्रस्तुत किए। सन् 1945 के लगभग इंजीनियरिंग मनोविज्ञान, जिसे Human Engineering के नाम से भी जाना जाता था, औद्योगिक मनोविज्ञान का एक अंग बन गया और इंजीनियर्स तथा मनोवैज्ञानिकों ने मिलकर मानव-मशीन समस्याओं का हल प्राप्त करने का प्रयत्न शुरू किया। मानव-मशीन समस्याओं के अध्ययन ने औद्योगिक मनोविज्ञान के क्षेत्र को और विस्तृत किया।
औद्योगिक मनोविज्ञान के आर्थिक से सामाजिक हुए स्वरूप एवं पहले की अपेक्षा अधिक वैज्ञानिक एवं सम्मान जनक स्थान ने उद्योगों में रत कार्यकर्ताओं के महत्त्व पर अधिक जोर दिया और बताया कि उत्पादों एवं वितरण के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग उद्योग कार्यकर्ता ही होते हैं मशीन नहीं। इस सदी के पांचवे तथा छठे दशकों में औद्योगिक मनोविज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत मानव संबंधों तथा सामाजिक समस्याओं से संबंधित अनेक शोध हुए जिनमें निरीक्षण संबंधी समस्याएँ, समूह संचालक शक्ति का, समूह अन्तर्प्रक्रिया, नेतृत्व तथा नेतृत्व-प्रशिक्षण, कार्यकर्ताओं की मनोवृत्ति, मनोबल, कार्य संतुष्टि तथा विचारों के पारस्परिक आदान-प्रदान की प्रक्रियाओं आदि पर किए गए कार्य सर्वोपरि थे।
इस सदी के छठे दशक तक आते-आते औद्योगिक मनोविज्ञान अपना स्वरूप काफी हद तक बदल चुका था। उद्योगपतियों, उद्योगों में सेवारत् प्रबंधक तथा औद्योगिक मनोवैज्ञानिक ने अब तक अच्छी तरह समझ लिया था कि औद्योगिक संस्थान अथवा व्यावसायिक संस्थान किसी एक व्यक्ति या चन्द व्यक्तियों के समूह के एकतरफा निर्णय से नहीं चल सकते। उन क्षेत्रों में उद्योगपतियों, प्रबंधक, निरीक्षक, श्रमिक वर्ग तथा उपभोक्ता समूह के पारस्परिक संबंधों के एक संगठित स्वरूप को पहचाना जा चुका था जिसके अभाव में कोई भी उद्योग या व्यवसाय प्रतिष्ठान अपने उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर सकता और यही कारण था कि सन् 1961 में लीविट (Leavitt) ने कहा कि समय आ गया है कि औद्योगिक मनोविज्ञान को अब संगठनात्मक मनोविज्ञान कहना शुरू कर दिया जाए, और उसके कुछ ही समय बाद औद्योगिक मनोविज्ञान की सीमारेखा में संगठनात्मक मनोविज्ञान का प्रवेश होने लगा तथा औद्योगिक परिस्थितियों में संगठन के तत्वों के समावेश पर जोर दिया जाने लगा। सम्प्रति संगठनात्मक मनोविज्ञान कर्मचारियों के मनोविज्ञान पर विशेष कर मानव, कार्य तथा उत्पादन के संदर्भ में, अधिक जोर दे रहा है। अतः गिलमर (Gilmer, 1971) ने ठीक ही कहा है, ‘‘शुरू में औद्योगिक मनोविज्ञान मानव तथा संस्थानों में ही उलझा रहा किन्तु आज के औद्योगिक मनोविज्ञान का विकास औद्योगिक समस्याओं के विभिन्न पहलुओं के अध्ययन से जुड़ा हुआ है।’’


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