भाषा एवं साहित्य >> लघुसिद्धान्तकौमुदी लघुसिद्धान्तकौमुदीश्रीधरानन्दशास्त्री
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एक व्याकरण ग्रन्थ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्राक्कथन
यों तो सभी वाङ्मय माननीय हैं। सभी के अपने विशिष्ट गुण हैं। सभी ने अपने
उपकार से मानव-समाज को ही नहीं किन्तु अन्य प्राणियों को स्वस्थ, सुखी तथा
अन्धकार से न्यूनाधिक दूर उठाया है। पर संस्कृत की ओर ध्यान जाने पर तो
बरबस मन-मयूर प्रफुल्ल हो नृत्य करने लगता है। ऐसी भावना जागरित
हो
उठती है कि मानों आनन्द-सरिता में प्रवाहित हो रहा हूँ। यह निश्चय
प्रादुर्भूत होता है कि उत्कृष्ट मनुष्य जीवन का सर्वस्व प्राप्तव्य अब
यहीं मिलेगा, यह संकेत मिलता है कि अब इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नही,
यहाँ तो शाश्वत शान्ति भी पाई जा सकती है। सचमुच
‘अध्यात्मविद्या
विद्यानाम्’ इस स्तुति का सत्य अनुभव इसी के अन्तस्तल में
सुनिहित
है। दूसरे तो प्रपञ्च के झंझावात में जीवन को छोड़कर न जाने
किधर
लिए जा रहे हैं। यह मार्ग भी बुद्धि के मत में सतत नीचे गिरने वाली भूमि
के आकाश के समान अनन्त है।
अस्तु, उस वाङ्मय का सुन्दर गोपुर महषि पाणिनि का, जो तक्षशिला पंचनद के रत्न थे, तपःफल व्याकरण है । कठिन और दुरूह शब्दस्तोम में प्रवेश करने की यह अनुपम कुञ्जिका है। उसके वस्तुतः अधिगत होने पर संस्कृत के शब्द-विश्व के ऊपर सदातन अप्रकंपनीय वह आधिपत्य स्थापित हो जाता है जो कभी भगाया नहीं जा सकता।
उसकी प्रथम पुस्तक लघुकौमुदी है। उसको विद्वन्मान्य वरदराज ने, जो महापण्डित भट्टोजिदीक्षित के शिष्य थे, बनाया है। उनका एक व्याकरण ग्रन्थ मध्यकौमुदी भी है। लघुकौमुदी का परिमाण 32 बत्तीस अक्षर के छन्द अनुष्टुप् की संख्या से 1500 है। ...
अस्तु, उस वाङ्मय का सुन्दर गोपुर महषि पाणिनि का, जो तक्षशिला पंचनद के रत्न थे, तपःफल व्याकरण है । कठिन और दुरूह शब्दस्तोम में प्रवेश करने की यह अनुपम कुञ्जिका है। उसके वस्तुतः अधिगत होने पर संस्कृत के शब्द-विश्व के ऊपर सदातन अप्रकंपनीय वह आधिपत्य स्थापित हो जाता है जो कभी भगाया नहीं जा सकता।
उसकी प्रथम पुस्तक लघुकौमुदी है। उसको विद्वन्मान्य वरदराज ने, जो महापण्डित भट्टोजिदीक्षित के शिष्य थे, बनाया है। उनका एक व्याकरण ग्रन्थ मध्यकौमुदी भी है। लघुकौमुदी का परिमाण 32 बत्तीस अक्षर के छन्द अनुष्टुप् की संख्या से 1500 है। ...
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