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वैवाहिक सुख ज्योतिषीय संदर्भ

मृदुला त्रिवेदी

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :388
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4537
आईएसबीएन :81-208-2754-6

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वैवाहिक सुख हेतु ज्योतिष के ऋषीकल्प मनीषियों द्वारा अर्जित तथा विलुप्तप्राय विपुल ज्ञान सम्पदा की प्रामाणिक प्रस्तुति...

Vaivahik sukh jyotish sandarbh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

विवाहकाल परिज्ञान एक दुष्कर एवं जटिल प्रक्रिया है। इस संदर्भ में द्वितीय एवं सप्तम भाव के अतिरिक्त चतुर्थ एवं नवम भाव की निर्णायक भूमिका, शुक्र के अतिरिक्त राहु एवं चन्द्रमा का महत्त्व एवं अनेक शोधात्मक बिन्दुओं को सूत्रबद्ध करके ‘विवाह कब होगा’ के प्रश्न का सुनिश्चित और सरल उत्तर पाठकों के हितार्थ प्रस्तुत किया गया है। सुख दाम्पत्य हेतु वर कन्या का जन्मांगों के परम्परागत मिलान के अतिरिक्त इस क्षेत्र में किये गये शोधपरक सूत्रों को प्रथम बार उद्घाटित किया गया है।

बाल्यकाल से ही अपने जीवन सहचर के प्रति जिज्ञासा एवं कौतूहल स्वाभाविक है। इस सम्बन्ध में पति का व्यवसाय, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक स्तर, कुटुम्ब एवं पत्नी के सौन्दर्य, वर्ण, गुण-दोष, चारित्रिक गरिमा आयु का अन्तर आदि के ज्ञानार्थ आवश्यक सामग्री सन्निहित की गई। इसी प्रकार कन्या के प्रथम ऋतुकाल को, विवाह से सम्बद्ध मुहुर्त एवं एक से अधिक विवाह की समकालीन, बहुकोणीय, बहुपक्षीय व्याख्या प्रस्तुत की गई है।

प्रस्तुत परिवर्द्धित और परिमार्जित संस्करण में अनेक नवीन अध्यायों तथा सारगर्भित सघन सामग्री का समावेश करके रचना की समग्रता को अधिक उपयोगी रूप में प्रस्तुत किया गया है। ‘मंगली दोष का संत्रास-दाम्पत्य विघटन एवं परिहार’ तथा ‘ज्येष्ठ नक्षत्र में जन्म : संतप्त दाम्पत्य जीवन’ नामक अध्यायों में पाठकों के अनवरत अनुरोध के पश्चात् दुर्लभ सामग्री का समावेश किया गया है। ‘प्रथम रजोदर्शन’ तथा ‘स्फुट संदर्भ-बिन्दु’-अध्याय में शास्त्रसंगत सामग्री में वर्णित परीक्षित प्रचुर सामग्री का भी उपयोग किया गया है। ‘वैवाहिक सुख : ज्योतिषीय संदर्भ’ के 19 अध्यायों में दाम्पत्य जीवन के समस्त पक्षों का विस्तृत और सांगोपांग संपूर्ण विवेचन तथा दाम्पत्य से संदर्भित विषयों के जटिल प्रश्नों का उत्तर यह कृति अवश्य प्रदान करेगी, यह दृढ़ विश्वास है।

वैवाहिक सुख : ज्योतिषीय सन्दर्भ

द्वितीय संस्करणार्थ पुरोवाक्


वर्तमान युग में जब अध्ययन, मनन, चिन्तन कुछ विशिष्ट व्यक्तियों तक ही सीमित होता जा रहा है, वहाँ ज्योतिष जैसे क्लिष्ट विषय पर किसी रचना का पुनर्मुद्रण और द्वितीय संस्करण का प्रकाशन मेरे हृदय को आनन्दित और प्रफुल्लित कर रहा है। कलिकाल के वर्तमान अंश में विकृत व विरूपित स्वरूप में निग्मन होते जा रहे समाज में ‘‘वैवाहिक सुख : ज्योतिषीय संदर्भ’’ रचना की उपयोगिता, लोकप्रियता एवं महत्ता में निरन्तर वृद्धि हुई है। अतएव इसकी प्रचुर प्रशंसा व सफलता को माता सरस्वती के कृपा प्रसाद और आशीर्वाद के रूप में ही ग्रहण किया जाना चाहिए।

‘‘वैवाहिक सुख : ज्योतिषीय संदर्भ’’ का प्रथम संस्करण 1995 में प्रकाशित हुआ था। तीन वर्ष के अल्पकाल में ही, जब इस कृति की मांग में सहसा वृद्धि हुई और प्रकाशक को ज्ञात हुआ कि प्रथम संस्करण की प्रतियाँ शेष नहीं हैं, तो समयाभाव तथा पाठकों के अनवरत अनुरोध के कारण पुनर्मद्रण 1998 में मुद्रित करना प्रकाशक की विवशता बन गई। सम्प्रति वैवाहिक सुख से संबंधित समग्र जिज्ञासा, उत्सुकता और कौतूहल के विस्तृत, सरल, सरस व सघन संज्ञान के शोधात्मक सूत्र के सारस्वत संकल्प एवं जन्मांगों के व्यावहारिक अध्ययन और विश्लेषण के साथ, समस्त पक्षों का परिज्ञान शास्त्रसम्मत, सुव्यवस्थित आकार में समाहित किया गया है।

पाठकों के निरन्तर अनुरोध के कारण ‘‘ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म: संतप्त दाम्पत्य जीवन’’ तथा ‘‘मंगली दोष का संत्रास-दाम्पत्य विघटन एवं परहार’’ नामक दाम्पत्य जीवन से संदर्भित अनेक नवीन स्फुट तथा प्रथम रजोदर्शन में जीवन और अत्यन्त उपयोगी सामग्री के सुयोग के साथ पूर्णत: परिमार्जित व परिवर्द्धित द्वितीय संस्करण पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते समय हमें असीम हर्ष का आभास हो रहा है। यही रचनात्मक संकल्प का पावन पुरस्कार है जो प्रबुद्ध पाठकों के मध्य रचना की लोकप्रियता और विषय ग्राह्यता को सिद्ध कर रहा है।

‘‘वैवाहिक सुख : ज्योतिषीय संदर्भ’’ के लेखन की आवश्यकता का अनुभव हमने उस समय किया, जब वैवाहिक सुख से संदर्भित जितनी भी कृतियाँ उपलब्ध थीं, उन सभी के सारगर्भित सघन तथा आवश्यक सामग्री का अत्यन्त अभाव था। एक पुस्तक में जो सूत्र दिए गये थे उन्हीं को दूसरी पुस्तक में क्रमपरिवर्तन का उद्धत किया गया था। कुछ अति अनावश्यक तथा वर्तमान समय में पूर्णत: अप्रासंगिक को अकारण ही भरा गया था-जैसे 2 वर्ष, 5 वर्ष, 7 वर्ष, 9 वर्ष की आयु में विवाह के योग, तीन सौ हजार पत्नी के योग, इसी तरह के अनर्थक, अनुपयोगी सूत्रों से ये सभी पुस्तकें युक्त थीं, जो उपयोगी सामग्री के अभाव का कारण अत्यन्त विरोधी दिशा निर्दिष्ट कर रही थीं तथा ज्योतिष विज्ञान की श्रेष्ठता को यश के स्थान पर अपयश ही प्रदान करती रही। इसी कारण समग्र आवश्यक विषयों का विवाह संबंधी विस्तृत विवेचन, गंभीर विश्लेषण तथा व्यावहारिक जन्मांगों पर सूत्रों का निरीक्षण तथा अध्ययन करते हुए वैवाहिक सुख के ऊपर इस विशाल वैज्ञानिक, सारगर्भित, उपयोगी तथा ज्ञानवर्द्धक रचना को ‘‘वैवाहिक सुख : ज्योतिषीय संदर्भ’’ का आकार प्रदान किया गया है। अत: ‘‘वैवाहिक सुख : ज्योतिषीय संदर्भ’’ उन समस्त संकल्पों का सारस्वत स्वरूप है जो विवाह संबंधी विषय पर सघन सामग्री के अभाव से अंकुरित हुए थे।

‘‘वैवाहिक सुख : ज्योतिषीय संदर्भ’’ प्रकाशन तथा पुनर्मुद्रण के उपरान्त पाठकीय अग्नि परीक्षा में कंचन सिद्ध हुई-यह मेरा सौभाग्य है। यह कृति दाम्पत्य सुख में उत्पन्न होनेवाले अनेक अवरोधों तथा विसंगितयों को समाधान के प्रकाश से आलोकित करने में सहायक सिद्ध हुई है। अनेक क्षुब्ध दम्पतियों तथा ज्योतिर्विदों को आकांक्षाओं का स्वर्णिम विहान तथा वैवाहिक जीवन से जीवन को उल्लासमय कर देनेवाला मंगल-गान प्राप्त हुआ। अनेक ऋषियों एवं मनीषियों के अपराजेय अलौकिक अक्षयमनीषा को कृपा प्रसाद मानते हुए मैं माँ जगदम्बा के प्रति कृतज्ञ हूँ कि मेरी निष्ठा तथा प्रयास के फलस्वरूप अनेक बालक-बालिकाओं, पति-पत्नी तथा नर-नारियों को विवाह के विषय का समुचित शास्त्र सम्मत वैज्ञानिक आधार प्राप्त हुआ।

पुस्तक के प्रथम संस्करण में अवांछित रूप से कुछ मुद्रण त्रुटियाँ हुई हैं। इससे सुधी पाठकों को हुई असुविधा के लिए मैं व्यक्तिगत रूप से क्षमार्थी हूँ। मैं उन प्रबुद्ध पाठकों के प्रति कृतज्ञता अर्पित कर रही हूँ जिन्होंने चिंतनीय बिन्दुओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया। प्रस्तुत परिवर्द्धित, परिमार्जित तथा संशोधित संस्करण में इन समस्त त्रुटियों का यथाशक्ति का निराकरण कर दिया गया है जिसका श्रेय मेरे प्रिय मेधावी शिष्य श्री दिवाकर सुगड़ा को है जो साधुवाद के पात्र है। इस कृति में ज्योतिष के प्रखर छात्रों हेतु अनेक जन्मांगों पर करने के पश्चात् उनकी प्रामाणिकता का पुन: विस्तार तथा विकास करने की चेष्टा करें।

मेरे पति और गुरु श्री टी.पी. त्रिवेदी का विरक्त वैदुष्य मेरे प्रेरणा-पथ का आलोक स्तम्भ है। उनके अनवरत अप्रतिहत अनुराग तथा सतत सम्पर्क ने मेरी अभिव्यक्ति को निरन्तर समृद्ध किया है। डॉ. बी.पी. रामन, आधुनिक युग के पाराशर तथा वाराह मिहिर के रूप में चिरस्मरणीय रहेंगे। ज्योतिष विज्ञान को सुगम, सरस बनाकर जन-जन तक पहुँचाने का जो दुष्कर दायित्व का निर्वहन उन्होंने किया है उसके लिए भारतवर्ष ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व सदा उनका कृतज्ञ रहेगा। हमें गर्व है कि ऐसे महान ज्योति वैश्विक विख्याति के अक्षर प्रतिमान एवं बहुवस्तुस्पर्शिनी मनीषा के शलाका-पुरुष सर्वसमाहत डॉ. बी.सी. रामन का सघन मार्गदर्शन तथा ज्योतिष में सर्वदा शोधरत रहने के स्नेहाशीष से अभिसिंचित और अभिषिक्त होने का सौभाग्य हमें और हमारी रचनाओं की अमुख के रूप में प्राप्त है।

अपनी पुस्तक के सामर्थ्यवान प्रकाशक मेसर्स मोतीलाल बनारसीदास के सहयोग के प्रति आभार व्यक्त करना मेरा कर्तव्य है। पुस्तक को राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित-प्रचारित करने का सम्पूर्ण श्रेय इनको ही है। ‘‘वैवाहिक सुख : ज्योतिषीय संदर्भ’’ पुस्तक का द्वितीय संस्करण जिस सुरुचिपूर्ण तथा भव्यस्वरूप में प्रकाशित हो रहा है। बनारसी दास के अविचल सहयोग के प्रति आभारी हूँ।
उत्कृष्ट अभिलाषा यह भी है कि मेरी रचना ‘‘वैवाहिक सुख : ज्योतिषीय संदर्भ’’ से संदर्भित आयामों में संभावित दाम्पत्य जीवन के संत्रास को मधुमास में रूपांतरित करती रहे। दाम्पत्य जीवन के जटिल सूत्रों का अध्ययन, मनन, चिंतन का समावेश इस कृति के सारगर्भित, शास्त्रसंगत सरस स्वरूप को व्यावहारिक सैद्धान्तिक और वैज्ञानिक स्तर पर प्रामाणिकता सिद्ध करते हुए प्रबुद्ध तथा श्रेष्ठ पाठकों को सर्वथा शक्ति प्रदान करे-यह मेरी सदाशा है तथा मंगल कामना है।

मुझे तत्वान्वेषी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है। प्रतीक्षा की पृष्ठभूमि में परम प्रभु के पावन प्रसाद को कलरव अनुगुंजित है।

(मृदुला त्रिवेदी)

पुरोवाक्


‘‘फलानि ग्रहचारेण सूचयन्ति मनीषिण:।
को वक्ता तारतम्यस्य तमेवं वेधसं विना।।’’

समस्त सृष्टि मर्यादाओं की दृश्य-अदृश्य अवस्थाओं में आबद्ध है। भूमण्डल से नक्षत्रमण्डल तक इन संकल्पशील शक्तियों का अनिवर्चनीय वर्चस्व है।
सर्जना की आणविक क्षमता से ऊर्जस्वित व्यक्ति सृष्टि की सुन्दरत् अभिव्यक्ति है किन्तु कोई भी अभिव्यक्ति कलात्मक संयम के अभाव से स्वीकार्य नहीं हो सकती और कला का मूल व सूक्ष्मीकरण काम में स्थित है। काम मनुष्यों के जीवन का विलक्षण विस्फोटक विस्तार है। इस उत्तप्त ऊर्जित उत्कर्ष का आकर्षण अप्रतिम है। जीवन-जगत का प्रत्येक स्पन्दन काम की कीर्तित कृपा से कृतार्थ है।
किन्तु किसी भी अभिव्यक्ति की सार्थकता हेतु अनुशासन अपरिहार्य है। सामाजिक सन्दर्भों में विवाह कामाभिव्यक्ति का संयमित संचरण है। नारदपुराण के अनुसार:-

‘‘कुशा द्विजा जलं वह्निर्वेदा भूकालदिक्सुरा:।
साक्ष्ये यत्र विवाहेषु दाम्पत्यं तदुदीरितम्।।’’

अर्थात् कुश, ब्राह्मण, जल, अग्नि, वेद, भूमि, काल, दिशाओं और देवताओं के साक्षित्व में निष्पन्न विवाह वाले वर-वधू के वैवाहिक जीवन को दाम्पत्य संज्ञा से अभिहित किया जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक इस सांस्कृतिक संस्कार के ऐतिहासिक एवं समसामयिक सन्दर्भों का ज्योति ज्योतिषीय विवेचन है।
व्यक्ति और विश्व की वर्तमान बुद्धिमान विषतताओं से मेरा सृजनशील मानस सघन संवेदित है। एक ओर वैज्ञानिक उपलब्धियों के हीरक हस्ताक्षर अवनि से अन्तरिक्ष तक अंकित होते जा रहे है-दूसरी ओर व्यक्ति की विचारात्मक-भावात्मक सत्ता सत्यशील संयुक्त सूर्य की निरन्तर अवहेलना कर रही है। उसकी निष्कलुष प्रसन्नताओं पर आशंकाओं का अभिशाप छा गया है।

इन आशंकाओं का आकार विवाह के सन्दर्भ में अप्रत्याशित और आक्रामक है। भावनाओं के सरोवर सूखते है तो संबंधों के पारिजात प्रभावहीन होने लगते है। वैवाहिक अनिश्चय, वैवाहिक विलम्ब, वैवाहिक कलह तथा वैवाहिक विघटन ने इस वैदिक व्यवस्था को विदीर्ण कर दिया है।
इन सन्दर्भों में ज्योतिष जैसे सर्वहितकारी विज्ञान का उत्तरदायित्व तथा महत्व और प्रखर हो उठा है। आज प्राय: सभी व्यक्ति अपनी प्रिय, सन्तानों के विवाह से पूर्व जन्मचक्र-मिलान आवश्यक समझने लगे है। वैवाहिक विलम्ब या विघटन के समय तो जातक ज्योतिर्विदों की शरण ग्रहण करते हैं।

विभिन्न वैवाहिक त्रासदियों को देखकर मेरा नारी अन्तर आन्दोलित हो उठता है विषाक्त सामाजिक व्यवस्था के प्रति जागृत मेरा आक्रोश समाधान के सकारात्मक बिन्दुओं का अनुसंधान करता है। इस क्रम में मेरा सर्वप्रथम प्रयास-‘वैवाहिक विलम्ब के विविध आयाम एवं मन्त्र’ नामक पुस्तक के रूप में प्रकट हुआ। तीन वर्षों में इस पुस्तक के दो संस्करण समाप्त हो गये। गुणग्राही अनुग्रही पाठकों ने मेरे प्रथम प्रयास को जो विश्वास प्रदान किया, वह अभूतपूर्व है। इस सन्दर्भ में मुझे सहस्त्राधिक पत्र प्राप्त हुए। इन पत्रों में प्राय: एक इच्छा सर्वोपरि थी, वह थी-विवाह के समस्त पक्षों पर एक विस्तृत सुविचारित पुस्तक की। स्वयं मैंने अनुभव किया कि इस प्रथम प्रकाशित पुस्तक में वैवाहिक विलम्ब के विस्तृत विवेचन और उसके उपचार पक्ष पर केन्द्रित होने से विवाह के अनेकानेक आयाम अनुद्घाटित रह गये हैं। मैं इस बिन्दु पर निरन्तर चिन्तन करती रही। अनेक वर्षों का घनीभूत ज्योतिषीय विवेक इस पुस्तक के रूप में सारसंग्राहक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।

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