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पर्यावरण अध्ययन

दयाशंकर त्रिपाठी

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :329
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4522
आईएसबीएन :8120827503

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स्नातक कक्षाओं के लिए पाठ्यक्रम प्रारूप पर आधारित पुस्तक...

Parayawaran Adhayyan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्राक्कथन

पर्यावरण एक बहुआयामी विषय है। आज भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण अध्ययन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। हमारा देश भी इस क्षेत्र में अग्रणी है इसके सार्वभौतिक महत्त्व को देखते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने स्नातक स्तर पर इस पाठ्यक्रम को अनिवार्य कर दिया है। महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ में सत्र 2003-04 से इस पाठ्यक्रम का अध्यापन भी प्रारम्भ हो गया है।
डॉ. त्रिपाठी द्वारा लिखी गयी यह पुस्तक सरल एवं बोधगम्य राष्ट्रभाषा में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पाठयक्रम के अनुसार है जो पर्यावरण के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण कृति है। यह छात्रों के ‘‘पर्यावरण अध्ययन’’ पाठ्यक्रम की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सक्षम है। पुस्तक में विषयानुसार छाया-चित्र, आरेख एवं सारणियों के माध्यम से समझाया गया है। स्नातक स्तरीय छात्रों को ध्यान में रखकर तैयार की गयी इस पुस्तक के लेखक ने विषय सामग्री को सरल व रोचक बनाने का प्रयास किया है।

यह पुस्तक पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधन, पारिस्थितिक तंत्र, जैव-विविधता एवं प्रदूषण की मूल अवधारणों को समझाने में सक्षम है। इसके अध्ययन से पर्यावरणीय ह्नास के मूल कारणों का ज्ञान हो सकेगा, जो पर्यावरण संरक्षण में हितकर सिद्ध होगा। इस पुस्तक के पढ़ने से लेखक के पर्यावरण विषय पर व्यापक अध्ययन का परिचय मिलता है।
आज की आवश्यकता है प्रत्येक व्यक्ति पर्यावरण की जानकारी रखे, इसे क्षतिग्रस्त होने से रक्षा करे तथा इसके उत्थान में भागीदार बने। विभिन्न मानवीय क्रियाकलापों ने पर्यावरण संकट इस प्रकार से उत्पन्न  कर दिया है जिसने सम्पर्ण मानव समाज को इस दिशा में सोचने के लिए बाध्य कर दिया है। आज पर्यावरण व मानव जाति के बिगड़ते संबंधों को सुधारने की आवश्यकता है। यह पुस्तक हिन्दी माध्यम से पर्यावरण शिक्षण के छात्रों एवं अध्यापकों के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। मैं इस कार्य के लिए लेखक को बधाई एवं शुभकामनाएँ देता हूँ।

डॉ. सुरेन्द्र सिंह
कुलपति, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी

आमुख


पर्यावरण की रक्षा करना हम सभी का नैतिक दायित्व है। कल्पना कीजिए कि यदि पर्यावरण पूरी तरह से दूषित हो जाए तो दुनिया का क्या हश्र होगा ? मानव सहित जन्तु व वन्स्पतियाँ जीवित रह पाएँगी ?... अत: पर्यावरण की रक्षा में हम सभी की भागीदारी आवश्यक है। हमारा आज का सम्मिलित प्रयास आने वाले दिनों में निश्चित रूप से प्रभाव दिखाएगा। विज्ञान को सरल भाषा प्रदान करना असंभव नहीं है, परन्तु श्रमसाध्य अवश्य है। पर्यावरण विज्ञान पर जहाँ बड़े-बड़े अध्ययन संस्थानों द्वारा प्रतिदिन नूतन खोज किए जा रहे हैं, वहाँ इस छोटी–सी पुस्तक में उस ज्ञान का अतिसूक्ष्म अंश ही प्रस्तुत किया जा सकता है।

‘पर्यावरण अधययन’ विषय को स्नातक कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य करने का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश भूमण्डलीय पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इससे बिगड़ते पर्यावरण का उद्धार होने के साथ-साथ इसकी सम्पन्नता भी बढ़ेगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित ‘पर्यावरण अध्ययन’ पाठ्यक्रम का प्रभाव विद्यार्थियों के आचरण एवं दैनिक क्रियाकलापों में भी स्पष्टत: परिलक्षित होगा।
इस नवीन एवं अनिवार्य विषय की पाठ्यपुस्तक की आवश्यकता विगत कई वर्षों से महसूस की जा रही थी। इस पुस्तक की पाठ्यसामग्री हिन्दी भाषी छात्रों को ध्यान में रखकर तैयार की गयी है जिससे उन्हें एक स्थान पर पर्याप्त सामग्री मिल जाय एवं इसे समझने में कठिनाई भी न हो। इससे सरल भाषा एवं भारत सरकार के वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा प्रकाशित ‘बृहत’ पारिभाषिक शब्द-संग्रह, विज्ञान खण्ड 1 व 2 के वैज्ञानिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। पाठ्यसामग्री को सुबोध व सुग्राह्य बनाने के लिए विभिन्न स्थानों पर चित्रों, आरेखों एवं सारिणियों का प्रयोग किया गया है।

प्रस्तुत पुस्तक में सात अध्याय हैं जिनमें प्रथम से सप्तम् अध्याय तक क्रमश: पर्यावरणीय अध्ययन की बहुविषयी प्रकति, प्राकृतिक संसाधन, परिस्थितिक तंत्र, जैव-विविधता एवं इसका संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण, सामाजिक समस्याएँ और पर्यावरण तथा मानव जनसंख्या एवं पर्यावरण का वर्णन है। प्रथम अध्याय के सौर मण्डल एवं पृथ्वी के बारे में संक्षिप्त जानकारियों का समावेश किया गया है, जिससे छात्रों को इस आकाशगंगा में अपनी पृथ्वी की, जिसकी हम सभी को रक्षा करनी है, स्थिति का ज्ञान हो सके। पुस्तक के अन्त में उपयोगी एवं प्रयुक्त किए गए हिन्दी व अंग्रेजी शब्दों की सूची तथा संदर्भ एवं अन्य पठनीय ग्रंथों की सूची भी दी गयी है।

इसके अध्ययन से एक तरफ जहाँ स्थानीय व भूमण्डलीय प्राकृतिक संसाधन, विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों एवं जैव विविधताओं के संरक्षण हो सकेगा, वहीं दूसरी तरफ प्रदूषण, सामाजिक पर्यावरणीय समस्याओं एवं जनसंख्या वृद्धि का पर्यावरण पर पड़नेवाले दुष्प्रभावों में कमी हो सकेगी। क्षेत्र-अध्ययनों से विद्यार्थियों को अपने आसपास के पर्यावरण के बारे में समझदारी बढ़ेगी, जो पर्यावरणीय पुनर्स्थापना एवं सम्वर्द्धन में सहायक सिद्ध होगी। इस पुस्तक को पढ़कर कोई भी छात्र, सामान्य अथवा समाजसेवी व्यक्ति पर्यावरण की उन समस्त जानकारियों को प्राप्त कर सकता है जो किसी भी राष्ट्र के हर एक नागरिक के लिए आवश्यक है। प्रस्तुत पुस्तक इस आवश्यकता को पूरा करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

अध्याय 1

पर्यावरण अध्ययन की बहुविषयी प्रकृति 

(Multidisciplinary Nature of Environmental Studies)

सौरमण्डल (Solar System) के नौ ग्रहों में से पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जहाँ जीवन पाया जाता है। यहाँ की वातावरणीय परिस्थितियाँ जीवन-प्रक्रियाओं को संचालित करने के लिए उपयुक्त पायी जाती है। इस विशेषता के लिए पृथ्वी से ‘सूर्य की दूरी’ की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हम पृथ्वी, बुध, शुक्र एवं मंगल ग्रहों की भाँति अधिक गर्म नहीं है, न ही वृहस्पति जैसी गैसीय है और न ही वरुण एवं यम जैसे ग्रहों के समान अघिक ठंडी ही है। यहाँ के वायुमंडल में आक्सीजन पायी जाती है जो सभी जीवों के जीवित रहने के लिए अत्यंत आवश्यक है। पृथ्वी का वायुमण्डल भूसतह को अधिक गर्म होने से बचाता है तथा इसका तापमान नियंत्रित रखता है। इसीलिए विभिन्न ऋतुओं में पृथ्वी के तापमान में अधिक अन्तर नहीं पाया जाता है। पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में जल उपस्थित है जो यहाँ के तापमान को नम बनाए रखता है। इन्हीं कारणों से यहाँ पर जीव-जन्तु व पेड़-पौधे जीवित हैं एवं अपनी जीवनीय गतिविधियों को संचालित करते हुए वंशानुक्रम को आगे बढ़ाते है। पृथ्वी सभी स्थानों पर एक समान नहीं है, कहीं अधिक ठंड पड़ती है तो कही अधिक गर्मी, कहीं अधिक वर्षा होती है तो कहीं अधिक सूखा, कहीं पर्वत हैं तो कहीं पठार व मैदान, कहीं अधिक शुष्कता है तो कहीं प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध है। उदाहरणार्थ, पृथ्वी के धुवों पर अत्यधिक ठंडे वातावरण में भी पेंगुइन, वालरस जैसे प्राणी कुछ अन्य प्रकार की मछलियाँ पायी जाती हैं एवं उस जैसे वातावरण में पोलर बीयर आदि भी पाए जाते हैं।

हमारा सौर मण्डल 

(Our Solar System)


हमारा ग्रह (Planet) अर्थात् हमारी पृथ्वी एक आकाशीय पिण्ड है जो अपने अण्डाकार ग्रहपथ पर सूरज की परिक्रमा करती रहती है। किसी भी ग्रह का अपना प्रकाश नहीं होता। वे सूर्य की किरणों को परावर्तित करने के कारण चमकते हैं।
विभिन्न ग्रह तारों (Stars) की अपेक्षा पृथ्वी से काफी नजदीक होते हैं, इसलिए वे बड़े तो दिखते हैं, परन्तु टिमटिमाते हुए नहीं दिखते। ये ग्रह पश्चिम से पूर्व की दिशा में करते हैं, इसलिए उनका स्थान प्रतिदिन परिवर्तित होता रहता है। हमारे सौरमण्डल में पृथ्वी को मिलाकर कुल नौ ग्रह हैं जो सूर्य से दूरी के बढ़ने के क्रम में रखे गये हैं। इन ग्रहों में प्रथम चार ग्रहों – बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल को आन्तरिक ग्रह तथा बाद के चार ग्रहों – वृहस्पति, शनि, यूरेनस (अरुण) एवं नेप्च्यून (वरुण) को बाह्य ग्रह कहा जाता है। आन्तरिक ग्रहों की संरचना पृथ्वी पृथ्वी जैसी है, जबकि बाह्य ग्रहों का निर्माण हाइड्रोजन व हीलियम गैसों से हुआ है। इन सबसे अधिक दूरी पर स्थित नौवाँ ग्रह प्लेटो (यम) कै आन्तरिक ग्रहों की भाँति ही घना समझा जाता है और इसका भ्रमण पथ सभी ग्रहों में बड़ा है। सूर्य एवं उसके पड़ोसी तारे एक वृत्ताकार पथ पर 250 किमी. प्रति सेकेण्ड की औसत गति से मन्दाकिनी (Galaxy)  के केन्द्र की परिक्रमा करते रहते है। इस गति से एक परिक्रमा पूरी करने में सूर्य को पच्चीस करोड़ वर्ष लगते हैं, जिसे ब्रह्माण्ड वर्ष कहा जाता है।

हमारा सूर्य 

(Our Sun)


हमारी पृथ्वी से सूर्य की दूरी 14.38 करोड़ किमी. (न्यूनतम) है। इसका व्यास (Diameter) 1362000 किमी. है। इसके आन्तरिक भाग का अनुमानित तापमान 1,50,00000 के. (एक करोड़ पचास लाख केल्विन) एवं दीप्तमान स्तर का तापमान 6000 के. है (एक केल्विन बराबर – 2730 सेग्रे.) । सूर्य की रासायनिक संचरचना में हाइड्रोजन 71 प्रतिशत, हीलियम 26.5 एवं अन्य तत्त्व 2.5 प्रतिशत है। इसकी अनुमानित आयु दस अरब वर्ष है जिसमें से यह लगभग पाँच अरब वर्ष आयु व्यतीत कर चुका है। पृथ्वी से सूर्य की औसत दूरी 15.6 करोड़ किमी. को यदि उड़ान के घंटों में परिवर्तित किया जाये तो 1000 किमीं प्रति घंटे की दर से उड़नेवाले एक जेट विमान को यह दूरी को पूरा करने में 17 वर्ष का समय लग जाएगा। सूर्य की त्रिज्या या अर्द्धव्यास (Radius) पृथ्वी की त्रिज्या का लगभग 1000 गुना एवं इसका परिमाण दस लाख गुना है।

सौर मण्डल का नया सदस्य - ‘सेडेना’ 

(New Member of Solar System - SEDANA)


सौर मण्डल के सदस्यों में एक और सदस्य का नाम जुड़ गया है - ‘सेडेना’, जिसकी खोज कुछ दिनों पहले ही हुई है। अभी इस नये सदस्य पर खोज जारी है। इसलिए सेडेना के बारे में यह कह पाना मुश्किल है कि यह ग्रह है अथवा पिण्ड। परन्तु इसे मंगल ग्रह का रिश्तेदार कहा जा सकता है, क्योंकि मंगल के बाद यह ऐसा दूसरा सदस्य है जिसका रंग लाल है। सेडेना अंतरिक्ष में उस भाग में स्थित है जो पूर्ण अंधकारमय होने के साथ – साथ अत्याधिक ठंडा भी है। इससे यह पता चल जाता है कि सेडेना सूर्य से काफी दूर स्थित है। सूर्य से दूर होने के कारण ही इसका तापमान शून्य से लगभग 38 सौ डिग्री सेंटीग्रेड से भी कम है।

सूर्य से सेडेना की दूरी लगभग 2 अरब 37 करोड़ वर्ष (36,50,000 दिन) का समय लगाता है। यही नहीं सेडेना का एक चन्द्रमा भी है जो उसकी परिक्रमा करता रहता है। हालाँकि सेडेना के बारे में अभी अधिक जानकारी नहीं मिल सकी है, परन्तु यह अपने रहस्यमय स्वभाव के कारण उत्सुकता का विषय जरूर बना हुआ है। प्लूटों जो कि सौर मण्डल का सबसे छोटा सदस्य माना जाता है, सेडेना ने उसके इस छोटा होने के रिकार्ड को भी तोड़ दिया गया है। इसका व्यास हमारे चन्द्रमा के लगभग आधा अर्थात् 11 सौ मील है, जबकि चन्द्रमा का व्यास 21 सौ मील के लगभग है। इसी प्रकार यह प्लूटों से भी तीन सौ मील छोटा है। सेडेना का सूर्य परिक्रमा पथ बहुत बड़ा है तथा बर्फीले बादलों से भरा हुआ है। यह ऐसे दुर्गम स्थान पर स्थित है जहां किसी सदस्य के होने की कल्पना भी नहीं कि गयी थी। कुछ-कुछ चमकीले सतह वाले सौर मण्डल के इस ग्रह को धूमकेतुओं के क्षेत्र का वासी कहा जा सकता है, क्योंकि इस क्षेत्र में धूमकेतुओं का जन्म होता है। अपने ऐतिहासिक नाम ‘सेडेना’ के अनुरूप इस मण्डल का नया सदस्य भी कम रहस्यमयी नहीं है।

हमारी पृथ्वी 

(Our Earth)


चट्टानों के अध्ययन के आधार पर पृथ्वी की आयु लगभग 4600 करोड़ वर्ष आँकी गयी है। इसका बाहरी सम्पूर्ण क्षेत्र लगभग 51 करोड़ वर्ग किमी. है, जबकि स्थलीय सतह लगभग 15 करोड़ वर्ग किमी. है। इसकी जलीय सतह का क्षेत्र लगभग 36 करोड़ वर्ग किमी. है। पृथ्वी की परिधि भूमध्य रेखा पर 40037 किमी. एवं ध्रुवीय रेखा पर 40000 किमी. है। भूमध्य रेखा पर इसका व्यास 12754 किमी. तथा अर्द्धव्यास 6377 किमी. आँकी गयी है। सूर्य से इसकी औसत दूरी लगभग 14 करोड़ 94 लाख 7 हजार किमी. है। इसका अपनी धुरी पर परिक्रमण काल 23 घंटा 56 मिनट 4.09 सेकेंड तथा सूर्य के चारो ओर परिभ्रमण काल 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 45.51 सेकेंड है। यह अपने अक्ष पर 230 27’’ झुकी हुई है।...


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