मनोरंजक कथाएँ >> बात का बतंगड़ बात का बतंगड़सत्यप्रभा पाल
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प्रस्तुत है बाल कहानी बात का बतंगड़
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बात का बतंगड़
सूरज अस्त हो चुका था, मुर्गे-मुर्गियों की बस्ती में अपने-अपने अड्डे पर
जा बैठे थे। सभी अपनी चोचों से अपने परों को कंघी कर पहले फुला रहे थे और
फिर से उन्हें तरतीब से शरीर पर सजा रहे थे। इतने में डाल पर बैठी एक
श्वेत मुर्गी जो बस्ती की सबसे सुन्दर मुर्गी थी, उसका एक पंख नीचे जा
गिरा। वहाँ दूसरी बस्ती की एक मुर्गी अभी भी चुग्गा चुग रही थी। जब पंख
गिरा तो वह चौंक गई और सहसा उसे सूर्यास्त ध्यान आया। तो बेतहाशा अपनी
बस्ती की ओर भागी। जब हाँफती, दौड़ती, घबराती अपनी बस्ती में पहुँची तो
सभी छोटे-बड़े, मोटे-पतले मुर्गे-मुर्गियाँ और चूज़े उसका कुशलक्षम पूछने
एकत्र हो गए और बोले, ‘‘क्या हुआ मौसी ? बताओ न क्या
हुआ
?’’
‘‘अरे, क्या बताऊँ भाई, आज जब मैं अपने भाई की बस्ती में दाना चुग रही थी तो अचानक ऊपर से मुर्गी के पंखों की वर्षा होने लगी।’’ मुर्गी मौसी बड़े हँसोड़ स्वभाव की थी। अत: उसने यह बात चुटकी लेते हुए कही थी। उसने सोचा, सबका अच्छा मनोरंजन होगा, लेकिन थकी हुई इतनी थी कि बात को स्पष्ट करने के पूर्व ही वह गहरी नींद सो गई।
इधर एक मुर्गी जो तीसरी बस्ती से अपनी नानी से मिलने आई थी, डर के मारे दौड़ लगाती अपनी बस्ती पहुँच गई और बोली अपने पड़ोसियों से, ‘‘अरे सुनो, भई न तो नाम पूछना और न ही मैं बताऊँगी, पर हमारी जाति की एक मुर्गी अपने पंख उखाड़-उ-
खाड़ कर फेंक रही है ताकि वह सबसे न्यारी-प्यारी सुन्दर मुर्गी बन जाए।’’
‘‘अरे, क्या बताऊँ भाई, आज जब मैं अपने भाई की बस्ती में दाना चुग रही थी तो अचानक ऊपर से मुर्गी के पंखों की वर्षा होने लगी।’’ मुर्गी मौसी बड़े हँसोड़ स्वभाव की थी। अत: उसने यह बात चुटकी लेते हुए कही थी। उसने सोचा, सबका अच्छा मनोरंजन होगा, लेकिन थकी हुई इतनी थी कि बात को स्पष्ट करने के पूर्व ही वह गहरी नींद सो गई।
इधर एक मुर्गी जो तीसरी बस्ती से अपनी नानी से मिलने आई थी, डर के मारे दौड़ लगाती अपनी बस्ती पहुँच गई और बोली अपने पड़ोसियों से, ‘‘अरे सुनो, भई न तो नाम पूछना और न ही मैं बताऊँगी, पर हमारी जाति की एक मुर्गी अपने पंख उखाड़-उ-
खाड़ कर फेंक रही है ताकि वह सबसे न्यारी-प्यारी सुन्दर मुर्गी बन जाए।’’
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