मनोरंजक कथाएँ >> सच्चा पाठ सच्चा पाठदिनेश चमोला
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इसमें सच्ची शिक्षा देने वाली कहानी का वर्णन किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
एक बकरी
एक था भोला भाला बीरू। उसके गाँव का नाम था अंगदपुर। वह जितना ईमानदार था
उतना ही सच्चा भी। उसके पिता वर्षों पहले स्वर्ग सिधार गए थे। माँ
मेहनत-मजदूरी कर जीवन के दिन यापन करती।
उसके पिता लकड़हारे का कार्य करते थे। लेकिन बेचारी माँ शरीर से अत्यन्त दुर्बल होने के कारण इस व्यवसाय को चलता न रख सकी। वैसे वह चाहती थी कि वह भी बीरू के पिता का व्यवसाय अपना कर जीवन की गुजर-बसर करे। उसमें ऐसी वरकत थी जो वीरू की माँ को दूसरी जगह नहीं दिखती थी।
लेकिन असमर्थता के कारण उसने गाँव का चरवाहा बनना स्वीकार किया ताकि उन्हीं पहाड़ियों में जाकर बीरू के पिता की याद वह बिसरा सके।
आखिर चरवाहा होकर रह गई बीरू की माँ। बीरू छोटा था। वह भी माँ के साथ जंगल जाया करता । उसे ऊँचे-ऊँचे पर्वत, गहरी-गहरी घाटियाँ व खिलखिलाती प्रकृति बहुत अच्छी लगती। परिश्रम से मिले धन से दोनों को सुख मिलता। जीवन की गाड़ी बहुत अच्छी तरह से चल रही थी। अब बीरू जितना गरीब था उतना ही पढ़ने में सबसे आगे भी था। बीरू की माँ से गाँव की मवेशियाँ इतनी हिल-मिल गई थीं
कि जब भी वह न जाती तो मवेशियाँ खाना छोड़ देतीं। बीरू की माँ ने एक बकरी पाली थी, जिसका नाम था नीरू। वह उसे एक दिन भीषण बाढ़ में बहती मिली थी। बीरू नीरू को इतना अच्छा मानता कि उसे दीदी ही कहा करता। वह भी बीरू से अक्सर खूब उछल-कूद किया करती।
उसके पिता लकड़हारे का कार्य करते थे। लेकिन बेचारी माँ शरीर से अत्यन्त दुर्बल होने के कारण इस व्यवसाय को चलता न रख सकी। वैसे वह चाहती थी कि वह भी बीरू के पिता का व्यवसाय अपना कर जीवन की गुजर-बसर करे। उसमें ऐसी वरकत थी जो वीरू की माँ को दूसरी जगह नहीं दिखती थी।
लेकिन असमर्थता के कारण उसने गाँव का चरवाहा बनना स्वीकार किया ताकि उन्हीं पहाड़ियों में जाकर बीरू के पिता की याद वह बिसरा सके।
आखिर चरवाहा होकर रह गई बीरू की माँ। बीरू छोटा था। वह भी माँ के साथ जंगल जाया करता । उसे ऊँचे-ऊँचे पर्वत, गहरी-गहरी घाटियाँ व खिलखिलाती प्रकृति बहुत अच्छी लगती। परिश्रम से मिले धन से दोनों को सुख मिलता। जीवन की गाड़ी बहुत अच्छी तरह से चल रही थी। अब बीरू जितना गरीब था उतना ही पढ़ने में सबसे आगे भी था। बीरू की माँ से गाँव की मवेशियाँ इतनी हिल-मिल गई थीं
कि जब भी वह न जाती तो मवेशियाँ खाना छोड़ देतीं। बीरू की माँ ने एक बकरी पाली थी, जिसका नाम था नीरू। वह उसे एक दिन भीषण बाढ़ में बहती मिली थी। बीरू नीरू को इतना अच्छा मानता कि उसे दीदी ही कहा करता। वह भी बीरू से अक्सर खूब उछल-कूद किया करती।
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