मनोरंजक कथाएँ >> अपने राजा स्वयं बनो अपने राजा स्वयं बनोआनन्द कुमार
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इसमें रोचक पाँच बाल कहानियों का वर्णन किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
1
द्वेष से आत्मनाश
भवसागर में जैसे सागर है, ठीक उसी तरह सागर में भारण्ड नाम का एक पक्षी
रहता था। जिस प्रकार भारत की भूमि एक होते हुए
हिन्दुस्तान-पाकिस्तान नामक दो राज्यों में बँट गई है, ठीक उसी तरह भारण्ड
के एक पेट था, परन्तु सिर दो थे। दोनों सिरों के अलग-अलग मस्तिष्क और मुँह
थे।
अब इस विचित्र पक्षी की कथा को ध्यान से पढ़िये और जो कुछ पढ़िये उसको ध्यान में रखिये। एक दिन भारण्ड समुद्र में नहा रहा था। उसका एक मुँह पूर्व दिशा की ओर था, और दूसरा पश्चिम दिशा की ओर। संयोग से पूर्व वाले मुँह की ओर एक छोटा-सा फल समुद्र में बहता हुआ आया। उसने उसको जीभ में रखकर खाया तो बड़ा मीठा लगा फल विष्णु भगवान के बगीचे के अतिरिक्त और कहीं नहीं हो सकता।
दूसरा मुँह इसको सुनकर बहुत बिगड़ा और बोला-रे दुष्ट, तू बड़ा स्वार्थी है। तूने मुझे उसका आधा हिस्सा क्यों नहीं दिया ?
पहला बोला-भाई, जीभ से चखने पर ही तो मुझे उसके स्वाद का पता चला उसके बाद मैं तुम्हें कैसे देता ? यदि तुम उसे खाना चाहते थे तो पहले ही कहते और सच बात तो यह है कि चाहें मैं खाऊँ या तुम खाओ, एक ही बात है उसके खाने से मेरा लाभ होगा। इसलिए इस विषय में तू-तू मैं-मैं व्यर्थ है। हमारा तुम्हारा तो एक ही घर और एक ही स्वार्थ है; फिर अपने-पराये का भेद-भाव क्यों खड़ा करते हो ?’’
अब इस विचित्र पक्षी की कथा को ध्यान से पढ़िये और जो कुछ पढ़िये उसको ध्यान में रखिये। एक दिन भारण्ड समुद्र में नहा रहा था। उसका एक मुँह पूर्व दिशा की ओर था, और दूसरा पश्चिम दिशा की ओर। संयोग से पूर्व वाले मुँह की ओर एक छोटा-सा फल समुद्र में बहता हुआ आया। उसने उसको जीभ में रखकर खाया तो बड़ा मीठा लगा फल विष्णु भगवान के बगीचे के अतिरिक्त और कहीं नहीं हो सकता।
दूसरा मुँह इसको सुनकर बहुत बिगड़ा और बोला-रे दुष्ट, तू बड़ा स्वार्थी है। तूने मुझे उसका आधा हिस्सा क्यों नहीं दिया ?
पहला बोला-भाई, जीभ से चखने पर ही तो मुझे उसके स्वाद का पता चला उसके बाद मैं तुम्हें कैसे देता ? यदि तुम उसे खाना चाहते थे तो पहले ही कहते और सच बात तो यह है कि चाहें मैं खाऊँ या तुम खाओ, एक ही बात है उसके खाने से मेरा लाभ होगा। इसलिए इस विषय में तू-तू मैं-मैं व्यर्थ है। हमारा तुम्हारा तो एक ही घर और एक ही स्वार्थ है; फिर अपने-पराये का भेद-भाव क्यों खड़ा करते हो ?’’
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विनामूल्य पूर्वावलोकन
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