भाषा एवं साहित्य >> बीसवीं सदी का हिन्दी साहित्य बीसवीं सदी का हिन्दी साहित्यविश्वनाथ तिवारी
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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘साहित्य भूषण’ एवं ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मानित श्री विश्वनाश तिवारी द्वारा बीसवीं सदी के हिन्दी साहित्य की अत्यन्त सारगर्भित विवेचना
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बीसवीं सदी अनेक दृष्टियों से उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण रही है। इस सदी में जहाँ भारत में स्वाधीनता संघर्ष और स्वाधीनता प्राप्ति जैसी महान घटनाएं हुई, वहीं संसार के इतिहास में ऐसी अनेक हलचलें हुई जो आगे भी मानव-नियति को प्रभावित करेंगी। इस सदी में दो विश्व युद्ध हुए, शीत युद्ध के बादल मंडराएं, विश्व शांति की चिंता गहरी हुई। विज्ञान और तकनीकी इसी सदी में चरम सीमा पर पहुँची, भूमण्डलीयकरण, आर्थिक उदारीकरण और सूचना-क्रान्ति की आंधी आई। आधुनिकता, उत्तर-आधुनिकता और उत्तर-संरचनावाद जैसे बौद्धिक विमर्श हुए। विश्व की और देश की इन तमाम घटनाओ, विमर्शो, विचारधाराओं का असर हिन्दी साहित्य पर पड़ा। इस दौर में यदि अनेक रचना-आन्दोलन जन्में, विकसित हुए और परिणति पर पहुँचे तो ऐसे भी दौर आये जिनमें कुछ आन्दोलन अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए।
इन्हीं सब प्रश्नों को लेकर प्रस्तुत पुस्तक में अधिकारी विद्वानों द्वारा विभिन्न विधाओं के माध्यम से बीसवीं सदी के हिन्दी साहित्य के अत्यन्त सारगर्भित विवेचना की गयी है।
आशा है, अपने समय और साहित्य की हलचलों से परिचित होने में यह पुस्तक आम पाठकों, विद्यार्थियों, शोध-छात्रों और प्रबुद्ध-जनों की सहायता करेगी। इस महत्वपूर्ण सुसम्पादित पुस्तक को प्रकाशित करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।
इन्हीं सब प्रश्नों को लेकर प्रस्तुत पुस्तक में अधिकारी विद्वानों द्वारा विभिन्न विधाओं के माध्यम से बीसवीं सदी के हिन्दी साहित्य के अत्यन्त सारगर्भित विवेचना की गयी है।
आशा है, अपने समय और साहित्य की हलचलों से परिचित होने में यह पुस्तक आम पाठकों, विद्यार्थियों, शोध-छात्रों और प्रबुद्ध-जनों की सहायता करेगी। इस महत्वपूर्ण सुसम्पादित पुस्तक को प्रकाशित करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।
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