पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
"और वह जो निष्काम कर्म का सिद्धान्त है तम्हारा!" अन्त में सदामा बोले. "तुम्हारी अध्यापकों वाली उस कहानी में परिश्रम से पढ़ाने वाले अध्यापक को अन्त में विद्वत्ता के साथ यश और धन भी मिल जाता है।"
इस बार कृष्ण की मुस्कान प्राणों में समा जाने की शक्ति लेकर उनके अधरों पर आयी, "वह अन्त में होता है सुदामा! जब निष्काम उस सीमा पर पहुंच जाता है कि उसका फल किसी तरल पदार्थ के समान, अपने क्षेत्र से बहकर अन्य क्षेत्रों में भी जाने लगता है। उस पर तुम्हारा वश नहीं है। उसी फल के लिए तो कहता हूं, उसे प्रकृति की व्यवस्था पर छोड़ दो।"
सुदामा के मन में आया, पूछे, तो क्या वे भी यदि अपना कार्य करते रहेंगे तो उन्हें वह सब प्राप्त हो जायेगा?... पर कष्ण के चेहरे के भावों की उदात्तता से अभिभत, वे ऐसा स्वार्थ भरा प्रश्न पछ नहीं पाये।...किन्त विपरीत तर्क अभी शान्त नहीं हुए थे। बोले, "एक किसान अपने खेत में हल चलाता है। बीज बोता है। सिंचाई और गोड़ाई करता है। दिन-रात खेतों की रखवाली करता है। पर क्यों नहीं मिलता उसको फल ? क्यों वह निर्धन का निर्धन रह जाता है और दूसरे लोग उसके परिश्रम का फल पाकर धनी हो जाते हैं?"
"ऐसे विवाद करते रहोगे तो सागरतट का सौन्दर्य कैसे देखोगे?" कृष्ण मुस्कराये।
सुदामा को लगा, कृष्ण उनके प्रश्न को टाल रहा है। क्यों? क्या वह मात्र वायवीय प्रश्नों में ही सदामा को बहलाये रखना चाहता है? व्यावहारिक प्रश्नों से कतराना क्या शासन की नीति है?...पर सुदामा कृष्ण को छोड़ेंगे नहीं।
"सागरतट के सौन्दर्य को निहारने से कहीं महत्त्वपूर्ण है कि जीवन और समाज की व्यावहारिक समस्याओं का समाधान कर लिया जाये।...जाने फिर कब तुमसे भेंट हो।" सुदामा भी मुस्कराये।
कृष्ण पुनः गम्भीर हो गये, "ध्यान से निरीक्षण कर, तथ्यों का विश्लेषण करोगे तो बात स्पष्ट हो जायेगी।...किसान अपना सारा परिश्रम अधिक उपज के लिए कर रहा है। बताओ, उसके परिश्रम से उसे अधिक उपज मिली या नहीं? यदि मिली तो उसके कर्म का फल उसे मिल गया। कर्म सिद्धान्त तो गलत प्रमाणित नहीं होता।"
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