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औषध दर्शन

आचार्य बालकृष्ण

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :76
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4318
आईएसबीएन :81-89235-04-4

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परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज के अनुभूत चमत्कारिक प्रयोगों सहित

Ausadh Darshan a hindi book by Aacharya Balkrishna - औषध दर्शन -आचार्य बालकृष्ण

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

वैदिक वन्दना

ओउम् इन्द्र क्रतुनं आभर पिता पुत्रेभ्यो यथा।
शिक्षाणो अस्मिन् पुरुहूत यामनि ज्योतिरशीमहि।।
(अथर्व0-का020/ सूक्त 79/1)


हे प्रभो ! जैसे पिता अपनी संतान को अपना समस्त ऐश्वर्य प्रदान कर देता है। हे दयालु पिता ! हम सब को भी आप सम्पूर्ण ऐश्वर्य एवं ब्रह्मतेज से तेजस्वी-वर्चस्वी बना दो। प्रभो ! हमें ऐसा सद्विविवेक, सुस्वास्थ्य व सद्ज्ञान दो; जिससे हम सब जीव आनन्दमय जीवन यापन करते हुए आपकी निर्मल पावन ज्योति को अपने हृदय मंदिर में देख सकें। हे ईश ! अब तो हमारे मन में ऐसा दिव्य प्रकाश कर दो; जिसमें सारा रोग-शोक, संताप व अज्ञान अंधेरा मिट जाए, सर्वत्र तुम्हारा ही दर्शन हो। हे प्रभो ! असत् से हटाकर हमें सत् की ओर ले चलो और हे करूणामय ! हमें जन्म-मृत्यु वेफ पाशों से छुड़ाकर कैवल्यानन्द (मोक्ष) अमृत का पान कराओ।


असतो मा सदगमय,
तमसो मा ज्योतिर्गमय,
मृत्योर्मा अमृतं गमय।

 

श्री मुक्तानन्दजी महाराज

 

आयुर्वेद क्या है ?

 

 

आयुर्वेद केवल औषध विज्ञान ही नहीं, अपितु जागरुकतापूर्वक जीवन जीने का सिद्धान्त भी है। इसलिए महर्षि चरक कहते हैं-

 

त्र्योपष्टम्भा आहार-निद्रा-ब्रह्मचर्यमिति।

 

हमारे आहार एवं विचार का दर्पण है-हमारा शरीर। अतः जीवन में चिन्मय अर्थात् चैतन्य से पूर्ण स्वास्थ्य के लिए अपनी मूल प्रकृति ब्रह्मचर्य (सर्वविध संयम) का पालन करते हुए सदा स्वस्थ्य व आनन्दमय जीवन जीएँ।

 

आपके रोग के कारण कहीं ये तो नहीं ?

 

 

1.भूख न होने पर भी खाना तथा बिना चबाये जल्दी-जल्दी खाना।
2. भूख से अधिक खाना तथा बार-बार खाना।
3. प्रकृति के प्रतिकूल आहार का सेवन।
4. रसना के वशीभूत होकर चटपटे पदार्थ, चाय, काफी, चीनी, ब्रेड, पावरोटी तथा संश्लेषित आहार आदि का अत्यधिक सेवन करना।
5. उत्तेजना, शोक, क्रोध, चिन्ता, घृणा, तथा तनाव की स्थिति में भोजन करना।
6. रात्रि को देर से सोना तथा प्रातः देर से उठना।
7. शारीरिक श्रम का अभाव तथा असंयमित जीवन।
8. मास, मदिरा व तम्बाकू आदि अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करना।
रोगी होकर औषध सेवन करने के लिए आप जितनी जागरुकता दिखाते हैं, यदि आप उसका दशांश भी स्वस्थ रहने के प्रति जागरुक बन जाएं तो यह निश्चित है कि रोग से पीड़ित न होना पड़ेगा।

 

-वैद्यराज आचार्य बालकृष्ण जी महाराज


आयुर्वेद की ऋषि परम्परा में नई क्रान्ति के सूत्रधार

 


वर्तमान समय में अनेक रोग इस प्रकार के है, जिसके निवारण के लिए एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति सफल नहीं हैं। वैज्ञानिक अन्वेषणों के अनन्तर भी बहुत से रोगों की चिकित्सा अब तक फलीभूत नहीं हो सकी और असाध्य समझी जाती है अभी तक जो चिकित्सा विधाएँ प्रचलित हो सकी हैं, वे केवल ब्राह्म लक्षणों वेदना आदि का उपशमन मात्र करती है रोग को मूल से विनष्ट नहीं करती हैं। ये लक्षण शान्त होने के पश्चात पुनः जागृत हो जाते हैं। रूमेटिक, संधिशोथ, गठिया (आमवात व सन्धिवात), माइग्रेन, सर्वाइकल स्पोंटोलाइटिस, श्वास, अस्थमा, कैंसर आदि रोग इसी कोटि में रखे जाते हैं। स्नायुगत रोग, व अपस्मार आदि मस्तिष्कजन्य रोग भी इसी प्रकार के होते हैं।

इन असाध्य समझे जाने वाले रोगों की आधुनिकता चिकित्सा पद्धति में सफल चिकित्सा न होने पर भी प्राचीन ऋषियों ने इन रोगों की सफल चिकित्सा का विधान किया था। उन ऋषियों की परम्परा में शास्त्रों के गहन अध्ययन व प्रभु की अपार कृपा से आयुर्वेद के उद्धार, विकास व शोध कार्यों में सम्पूर्ण रूप से समर्पित हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में गंगा नहर की शाखा पर कृपालु बाग आश्रम के दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित ब्रह्मकल्प चिकित्सालय है। चिकित्सालय के साथ ही औषध निर्माणशाला (दिव्य फार्मेसी) है जहाँ शुद्धरूप से औषधियों का निर्माण होता है एवं एक विस्तृत वनस्पति वाटिका है, जिसमें चिकित्सा उपयोगी जड़ी-बूटियों को उगाया जाता है अनेक दुर्लभ वनस्पतियों का अन्वेषण कर यत्नपूर्वक बोया गया है। निकट भविष्य में चिकित्सालय, औषधि वाटिका एवं निर्माणशाला को भव्य व विशाल स्वरूप प्रदान किया जा रहा है। आश्रम द्वारा संचालित मुख्य सेवा प्रकल्पों में यौगिक सेवा प्रकल्प का कार्यभार जहाँ तपोनिष्ठ योगिराज परम पूज्य स्वामी श्री रामदेव जी महाराज के सबल कन्धों पर है, वहीं आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं अनुसंधान का महत् कार्य आचार्य श्री बालकृष्ण जी महाराज के पावन सान्निध्य में निष्पन्न हो रहा है। यहाँ आयुर्वेदिक औषधि के साथ योग की वैज्ञानिक क्रियाओं आसन प्राणायाम तथा एक्यूप्रेशर का भी रोगी की आवश्यकता के अनुसार प्रयोगात्मक प्रशिक्षण दिया जाता है।

अहर्निश सेवा द्वारा कोटि-कोटि जनों के तन-मन के रोगों व पीड़ाओं का हरण करते हुए, उनको स्वस्थ व आनन्दित निरामय जीवन जीने की कला का बोध कराने वाले परम श्रद्धेय वन्दनीय आचार्य श्री बालकृष्ण जी महाराज विश्व क्षितिज पर आयुर्वैदिक चिकित्सा जगत् के देदीप्यमान नक्षत्र हैं। उन्होंने तपः, साधना व निरन्तर अनुसंधान करके हिमालय की पवित्र जड़ी-बूटियों द्वारा विश्व में पहली बार उच्च रक्तचाप जैसे जटिल रोगों के स्थायी उपचार की खोज की। शोक संतप्त मानव की पीड़ा का शमन चिकित्सा के माध्यम से करके प्राचीन ऋषियों के इस वचन को सार्थक कर रहे हैं-
‘‘कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामर्तिनाशनम्।’’ श्रद्धेय आचार्य जी से वर्ष भर में जटिल रोगों से पीड़ित लगभग एक से डेढ़ लाख व्यक्ति आश्रम में आकर आरोग्य लाभ प्राप्त करते हैं जबकि इससे अधिक व्यक्ति आश्रम में निर्मित औषधियाँ पत्राचारादि के माध्यम से मंगवाकर रोगों से मुक्त हो स्वास्थ्य लाभ करते हैं।

पूज्य आचार्य जी यहाँ आयुर्वेद चिकित्सा कार्य में अपना सम्पूर्ण समय समर्पित करके लाखों लोगों को साध्य-असाध्य रोगों से मुक्त करने में लगे हुए हैं, वहीं रोगियों के प्रति उनके करुणा से परिपूर्ण हृदय व विनम्र व्यवहार एवं अत्यधिक स्नेह भरे तथा सहानुभूति पूर्ण स्वभाव ने असंख्य लोगों को साकारात्मक चिंतन व दिव्य संवेदनाओं से जोड़कर आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने का मार्ग भी प्रशस्त किया है। आचार्य जी ने अपने साथ लगभग दो दर्जन सुयोग्य चिकित्सकों की एक सशक्त टीम गठित कर चिकित्सा सेवा का एक एक बृहत्तर कार्य प्रारम्भ किया है।
जिससे सम्पूर्ण भारत वर्ष में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के अनेकों देशों के प्रबुद्ध प्रतिष्ठित व्यक्तियों, चिकित्सकों को लेकर जन सामान्य तक लाभ उठा रहा है।

भारत वर्ष के सुप्रसिद्ध चिकित्सा प्रतिष्ठानों के वरिष्ठ चिकित्सक तक यहाँ चिकित्सा के लिए स्वयं उपस्थित होते हैं। साथ ही जिस असाध्य रोग की आधुनिक जगत् में कोई कारगर चिकित्सा नहीं, ऐसे रोगियों को ‘दिव्य रोग मन्दिर’ के लिए रैफर करते हैं।
चिकित्सक के लिए वेद में कहा गया-‘‘अयं मे हस्तो भगवान्, अयं मे हस्तो भगवत्तरः’’ उन पर पूरी तरह चरितार्थ होता है। अनेक असाध्य रोगी यहाँ की चिकित्सा सुविधा से लाभान्वित होकर उनके प्रति कृतज्ञता व आदर प्रकाशित करते हैं। मानव मात्र के कल्याण में सर्वात्मना समर्पित ऐसे महान् संत को हमारा शत्-शत् वन्दन है।

 

डॉ० बी.डी.शर्मा
(पूर्व प्रमुख राष्ट्रीय पादप अनुवंशकी संसाधन ब्यूरो फागली, शिमला)
श्री जीवराज भाई पटेल (सूरत)
श्री उपेन्द्र भाई ठक्कर (अहमदाबाद)
व आचार्य जी के उपकारों से उपकृत समस्त भक्तगण।

 

भोगों को भोगने से सुख, संतुष्टि व शान्ति पाने का उपाय वैसे ही व्यर्थ होगा, जैसे कोई व्यक्ति अग्नि में घी आहूत करके उसके शान्त होने का विचार करे।

 

-परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज


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