लोगों की राय

श्रंगार - प्रेम >> प्रेम न बाड़ी ऊपजै

प्रेम न बाड़ी ऊपजै

मिथिलेश्वर

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 430
आईएसबीएन :81-263-1069-3

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

135 पाठक हैं

प्रेम जैसे अत्यन्त नाजुक और संवेदनशील विषय को कथा का आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास...

Prem na Badi Oopjai - A Hindi Book by - Mithileshwar प्रेम न बाड़ी ऊपजै - मिथिलेश्वर

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अखिल भारतीय मुक्तिबोध पुस्कार, सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार, यशपाल पुरस्कार, अमृत पुरस्कार तथा साहित्य मार्तण्ड उपाधि से सम्मानित मिथिलेश्वर का प्रेम जैसे अत्यन्त नाजुक और संवेदनशील विषय को कथा का आधार बनाकर बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में इस उपन्यास ‘प्रेम न बाड़ी ऊपजै’ को लिखने-रचने का एक विशेष अर्थ है। प्रतिष्ठित कथाकार मिथिलेश्वर ने अपने इस नये उपन्यास के जरिये भावना और संवेदना को एक विराट् फलक पर यथार्थ से जोड़ने की गम्भीर कोशिश की है।

यह उपन्यास इस बात का भी खरा प्रमाण है कि मिथिलेश्वर ने गहरी मानवीय अनुभूतियों को बेजोड़ मार्मिक अभिव्यक्ति दी है - अपने रूमानी रूप में और प्रासंगिक यथार्थ के धरातल पर भी। सहज संप्रेख्णीयता, जीवन-सौन्दर्य, अनुभवों की विविधता और विस्तार, भाषा की ताजगी तथा गहरे सामाजिक यथार्थ के बहुआयामी संवेदनात्मक चित्र उनके इस उपन्यास में मौजूद हैं

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book