आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
शारीरिक स्वास्थ्य की अवनति या बीमारियों की चढ़ाई अपने आप नहीं होती, वरन् उसका कारण भी अपनी भूल है। आहार में असावधानी, प्राकृतिक नियमों की उपेक्षा, शक्तियों का अधिक खर्च, स्वास्थ्य-नाश के यह प्रधान हेतु हैं। जो लोग तंदुरुस्ती पर अधिक ध्यान देते हैं, स्वास्थ्य के नियमों का ठीक तरह पालन करते हैं, वे मजबूत और निरोग बने रहते हैं। योरोप, अमेरिका के निवासियों के शरीर कितने स्वस्थ एवं सुदृढ़ होते हैं। हमारी तरह वे भाग्य का रोना नहीं रोते, वरन् आहार-विहार के नियमों का सख्ती के साथ पालन करते हैं। बुद्धि और विवेक का उपयोग निरोगता के लिए करते हैं, जिससे वे न तो बहुत जल्द बीमार पड़ते हैं, न दुर्बल होते हैं और न अल्पायु में मृत्यु के ग्रास बन जाते हैं। हमारे देश में ही देखिए-उच्च वर्ण वालों की अपेक्षा नीच वर्ण के लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से अधिक गिरे हुए होते हैं, इसका कारण ईश्वर की अकृपा नहीं, वरन् अज्ञानता और उपेक्षा है। अपने प्रयत्नों से आप पुनः अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं और लापरवाही पर ही आरूढ़ रहें तो शरीर को इससे भी बुरी हालत में लगा सकते हैं, कुँजी अपने भीतर है, स्वास्थ्य के आप खुद मुख्तार हैं। कोई दूसरा क्या हस्तक्षेप कर सकता है? वैद्य-डॉक्टर सलाह दे सकते हैं, दवा दे सकते हैं, परंतु निरोगता की चाबी उन बेचारों के पास थोड़े ही है। वह तो अपने अंदर से ढूँढ निकालनी पड़ेगी।
धन-उपार्जन, विद्याध्ययन और बुद्धि-वृद्धि यह तीनों संपदाएँ घोर परिश्रम, निरंतर प्रयत्न, सच्ची लगन और साहसपूर्ण उत्साह द्वारा प्राप्त होती हैं। जो लोग आज आपको अमीर दिखाई पड़ते हैं, वे यों ही अनायास नहीं बन गये हैं, उन्होंने जाँफिशानी से मेहनत की है, दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा है। जिन्हें आप विद्वान् देख रहे हैं, उन्होंने वर्षों सर खपाया है, मुददतों पुस्तकें रटी हैं, खेल-तमाशों से, यात्रा-विहार से, मनोरंजनों से अपने को बचाकर पढ़ने की धुन में लगे रहते हैं। जिन्हें आप बुद्धिमान् देख रहे हैं उन्होंने बुद्धिमानों की संगतियाँ की हैं, ठोकरें खाई हैं, बुद्धि को घोड़े की तरह चारों ओर दौड़ाया है, समस्याओं को सुलझाने में गंभीर मनन किया है, ज्ञान लाभ के लिए कष्टकर कार्यों को अपनाया है। यदि वे लोग ऐसा न करते तो उनका धनवान्, विद्वान्, बुद्धिमान् बनना संभव न था। उद्योगी पुरुष सिंह लक्ष्मी को पाते हैं और कायर पुरुष दैव-दैव पुकारते रहते हैं। यदि आप संपदाएँ प्राप्त करना चाहते हैं तो वे उपहार की तरह किसी बाहर के आदमी से न मिलेंगी, वरन् अपनी योग्यता और क्रियाशीलता द्वारा उन्हें प्राप्त करना पड़ेगा।
मित्रता, प्रतिष्ठा, प्रशंसा से लदा हुआ जिन्हें आप देखते हैं, जिनके बहत से मित्र, भक्त, प्रशंसक पाते हैं, उनकी मानसिक दशा का निरीक्षण कीजिए। आप पायेंगे कि उनमें बहुत से ऐसे गुण हैं, जिनके कारण लोगों का मन उनकी ओर आकर्षित होता है, उनमें बहुत-सी ऐसी विशेषताएँ हैं, जिनसे लोग लाभ उठाते हैं। उन्हें मुफ्त के माल की तरह प्रतिष्ठा एवं प्रशंसा नहीं मिलती, वरन् उसके अनुरूप अपने आपको बनाने के पश्चात् उसके अधिकारी हुए हैं। गंधरहित पुष्प के पास भौंरो नहीं आते। अपने चारों ओर भ्रमरों को मधुर स्वर के साथ गूंजते-फिरते देखने का सौभाग्य उन्हीं पुष्पों को प्राप्त होता है, जो अपने अंदर मनमोहिनी सुगंध छिपाये बैठे हैं। कमल के फूल पर यदि भौरों के झुंड मंडराते रहते हैं तो यह भौंरों की कृपा नहीं, कमल की विशेषता है। बिना विशेषता वाला कनेर-पुष्प बेचारा अकेला एक कोने में ही पड़ा रहता है।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न