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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


वह मिठाई का टुकड़ा जरा ऊँचा रखकर दिखाती है, ताकि बालक उसे लेने के लिए पैरों के बल खड़ा हो जाए। जब खड़ा होना सीख जाता है तो फल, मिठाई, खिलौना आदि का लालच देकर पैरों के बल चलना सिखाती है। माता बार-बार लालच देती है और बच्चे को प्रोत्साहित करती है, इसमें उसका यह उद्देश्य छिपा रहता है कि बच्चा घुटनों चलना छोड़कर खड़ा होना और पैरों के बल चलना सीखे, उन्नति तय करने की यात्रा को जारी रखे। परमात्मा ने हमें धन, संपत्ति, विद्वता, बल, पदवी आदि के लालच इसलिए उपस्थित किये हैं कि उनको पाने के लिए हम घोर प्रयत्न करें और उस प्रयत्न के साथ-साथ अपनी मनोभूमि को उन्नत-बलवान्-विकसित बनावें।

हम लोग उन छोटे बालकों की भाँति कार्य कर रहे हैं, जो मिठाई के लालच में खड़े होकर चलना सीखने का प्रयत्न करते हैं। भौतिक ऐश्वर्य नाशवान् हैं, थोड़ी देर ठहरते हैं, जल्दी नष्ट हो जाते हैं—यह ठीक है। वे सदा किसी के पास नहीं रहते, यह भी ठीक है, पर इसी कारण उन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं छोड़ा जा सकता। मिठाई का टुकड़ा बच्चे की जन्म भर की भूख नहीं बुझा सकता, यह हमेशा रखा भी नहीं रहेगा। यह उसकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करता, यह ठीक है, तो भी यदि बालक उसे लेने का प्रयत्न करता है तो उसे हानि नहीं वरन् लाभ ही है। छोटा टुकड़ा मिला-सही, पर कुछ न कुछ मिला तो, थोडी जिह्वा ने मधुरता का आनंद चखा-सही-पर चखा तो, टुकड़े को प्राप्त करने पर थोड़ी देर प्रसन्नता हुई-सही पर हुई तो। कुछ न कुछ उसने पाया ही, गँवाया तो नहीं। अप्रत्यक्ष रूप से देखा जाए तो टुकड़े की अपेक्षा बहुत मूल्यवान् वस्तु पाई, पैरों की शक्ति बढ़ी, खड़े होने की आदत पड़ी, उन्नति करने का प्रोत्साहन मिला, आत्मविश्वास बढ़ा, मन में मजबूती आई, यह सब क्या कम लाभ हैं?

यदि यह बालक आजकल के निराशावादियों की तरह कहता-"यह टुकड़ा तो जरा-सा है, झट पेट में चला जायेगा, इसे लेकर क्या करूँगा? मैं इसे नहीं लेता, इसके लिए खड़ा होने की मेहनत नहीं करता।" क्या ऐसे उत्तर से माता प्रसन्न होती? क्या ऐसे विचार से उसे खुद लाभ होता ! इस तरह का सोचना सब दृष्टियों से उसी के लिए हानिकर सिद्ध होता।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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