आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
भौतिक सभ्यता का प्रभाव हमारे खान-पान से लेकर रीति-रिवाजों तक आ गया है या यों कहिए कि हम पूर्णतया अभारतीय बनते चले जा रहे हैं। हमारे वस्त्र ऐसे हो रहे हैं कि देखने वालों की आँखों में शरारत और कामुकता नाचने लगती है। सिनेमा-साहित्य, नाच, स्नो-पाउडर की भरमार ऐसी बढ़ती है कि लोगों का सारा धन, समय और शक्तियाँ इन्हीं में बर्बाद हो रही हैं। खान-पान, बोली-भाषा, आचार-विचार सभी बदल गये हैं। अपने परिवार के प्रति क्या कर्तव्य होने चाहिए? शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? जीवन कैसे जियें? यह किसी को मालूम तक नहीं है। अवांछनीय प्रतियोगिताओं की बाढ़ में अनैतिकता की बन आई है। स्त्रियों और कुमारियों में सौंदर्य प्रदर्शन की भावना इतना उग्र रूप धारण करती जा रही है कि पुरुषों की आँखें शर्म के मारे झुकी जा रही हैं। घर के लोग खाने-पीने के लिए तड़पें और कुछ चालाक व्यक्ति शौक-मौज का जीवन बितायें। स्त्री और पुरुष के भेद को मिटा देने वाली इस जड़ सभ्यता ने कितना पैशाचिक उत्पीड़न किया है इस समाज का, कि देखने वालों का दम घुटा जा रहा है। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। क्या यही हमारी सभ्यता है? इसी को संस्कृति कहें? हमारे गौरव, हमारी कीर्ति और हमारी संपन्नता का भारतवर्ष यह नहीं है। यह तो बहका हुआ कदम है, जो विदेशियों की राह पर चल रहा है और उसी में नष्ट हो जाता है।
भारतीय धर्म वह था जो "जीवन-सिद्धि" को साकार रूप दे चुका था। यहाँ दांपत्य प्रेम, पितृ-भक्ति, मातृ-पूजा, मातृ-स्नेह सभी एक से एक बढ़-चढ़ कर थे। लोगों के आहार कितने सरल और सात्त्विक थे? संयम और ब्रह्मचर्य की गरिमा से चेहरे प्राणवान्, कांति युक्त तथा ओजस्वी हुआ करते थे। सदाचार, प्रेम, न्याय और आत्मीयता की भावनाओं के कारण सभी ओर सुख और संतोष छाया रहता था। इस पुण्य भूमि पर देवता भी जीवन प्राप्त करने की कामना किया करते थे। भौतिक और आध्यात्मिक सम्मिश्रण के कारण लौकिक जीवन तो सुख और शांति से पूरित हुआ ही करते थे, पारलौकिक अनुभूतियाँ भी यहाँ उपलब्ध हुआ करती थीं। जो एक ऐसे ठोस दर्शनशास्त्र पर आधारित रहती थीं कि दूसरे देश वाले इस पुण्य भूमि के दर्शन करना अपना भाग्य समझते थे।
हमें भौतिक मान्यताओं की रूढ़िवादिता से बाहर निकलकर विवेकशील मनुष्य बनना पड़ेगा। अपने दृष्टिकोण को परिष्कृत करना होगा। मनुष्य जीवन को सच्चे दृष्टिकोण से देखने की दार्शनिक बुद्धि का विकास किए बिना मानवीय प्रगति संभव हो नहीं सकती। पूर्णतया भोगवादी जीवन के परिणाम दुःखदायी ही होते हैं। हम आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि के सम्मिश्रित मार्ग को समझें और उस पर चलें, तो मानव जीवन का सच्चा आनंद प्राप्त कर सकते हैं। यही हमारी पूर्व परंपरा है और अब इसी राह पर चलने के लिए हमें समुद्यत होना है।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न