लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

18 पाठक हैं

अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


इस संसार की हवा में एक बड़ा विषैला नशा है। सौंदर्य की चमक-दमक में कुछ अजीब-सा आकर्षण है, इससे मनुष्य धोखा खा जाता है। अंधेरे में पड़ी हुई रस्सी के जिस तरह से सर्प होने का भ्रम होता है, उसी तरह यहाँ के प्रत्येक पदार्थ में एक प्रकार का मोहक भ्रम भरा पड़ा है, इसी से लोग उन्हीं में भटकते रहते हैं। आकर्षण का एक रूप समाप्त होता है, दूसरा नया उससे भी आकर्षक रूप सामने आ जाता है। न पहले से तृप्ति होती है, न दूसरे से तृष्णा ही समाप्त होती है। बावला इंसान इसी रूप-छल की भूल-भुलैया में गोते मारता रहता है। उसे अपने मूल-रूप की ओर ध्यान देने का अवसर भी नहीं मिल पाता। यह स्थिति बड़ी ही दुःखद है।

वेदांत दर्शन का मत है कि आँख से दिखाई देने वाले दृश्य, नाक से सूंघे जाने वाली गंध, जीभ से चखा जाने वाला स्वाद यह सभी मिथ्या है, परिवर्तनशील है। फूल देखने में बड़ा सुंदर लगता है किंतु मुरझा जाने पर वही कूड़ा-करकटसा लगता है। तब उसकी सुगंध भी लुप्त हो जाती है। इसी तरह वृक्ष-वनस्पति, नदी-पहाड़, पशु-पक्षी सभी बदलते रहते हैं, एक रूप में स्थिर रहने वाली कोई भी वस्तु दिखाई नहीं देती। सूर्य-चंद्रमा तक की विभिन्न कलायें प्रदर्शित होती हैं। इस परिवर्तनशील जगत् में सर्वत्र अस्थिरता और चंचलता ही है। जीवात्मा जब तक अपने परम-पद को नहीं प्राप्त कर लेता, तब तक उसे स्थायी प्रसन्नता, शाश्वत सुख और चिरस्थायी शांति नहीं मिलती। इसलिए प्रतिभासिक सत्ता को साधन मात्र समझकर अपने पारलौकिक हित-चिंतन में लगे रहना चाहिए।

जहाँ माया-मोह के विचार सहज न छूट रहे हों, वहाँ यह सोचना चाहिए कि इस मकान, जमीन, बाग-बगीचे आदि पर अब तक कितने 'दाखिल-खारिज' हो चुके हैं, पर इन्हें कोई स्थायी तौर पर प्राप्त नहीं कर सका तो हमें ही यह वस्तुये कब तक साथ दे सकेंगी? सांसारिक खेल-मात्र में इन सभी वस्तुओं की उपादेयता है, इन्हें इसी रूप में ही देखना भी चाहिए और अपने चरम-कल्याण में तत्परतापूर्वक स्थिर रहना चाहिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book