आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
आज मनुष्य जाति जीवन का जितना समय भौतिक प्रगति में लगा रही है, यदि उसका एक अंश भी आत्म-क्षेत्र को उन्नत एवं उर्वर बनाने में लगा सके तो कोई कारण नहीं कि वह अपने जीवनलक्ष्य आनंद को न पा पाये। इसी एकमात्र भौतिक दृष्टिकोण के कारण ही तो वह अध्यात्म के शुभ परिणामों से वंचित बनी हुई है। आत्मा-परमात्मा के ज्ञान से रहित जड़-ज्ञान से उत्पन्न होने वाले दुःखदायी परिणामों को भोग रही है। मनुष्य ने जितनी प्रगति भौतिक क्षेत्र में की है, उससे कहीं अधिक संभावना आध्यात्मिक क्षेत्र में भरी पड़ी है। किंतु उसको पाने के लिए भी अपनी चेतना और शक्ति को उसी प्रकार आत्म-विकास में लगाना होगा, जिस प्रकार भौतिक प्रगति में लगाई जा रही है। एक बार आत्मिक आनंद को पा लेने पर संसार के सारे वैभव और भोग-विलास तुच्छ लगने लगेंगे।
मनुष्य का जीवन-लक्ष्य नश्वर भोगों को प्राप्त करना नहीं है। वह तो संसार में अमृतत्त्व प्राप्त करने के लिए अवतरित हुआ है। संसार में यदि कुछ अमृत है, अविनाशी और अक्षर है तो वह आत्मा ही है। मनुष्य जन्म का उद्देश्य ही अध्यात्म मार्ग द्वारा आत्मा और आत्मा द्वारा परमात्मा को प्राप्त करना है। इस श्रेय को विस्मृत कर जो व्यक्ति केवल सांसारिक भोगों द्वारा शरीर की ही उपासना में लगे रहते हैं, वे अपनी बड़ी भारी हानि करते हैं। ऐसे अबोध लोगों को ही शास्त्रों में अज्ञानी एवं प्रमादी कहा गया है।
हमारी दुःखपूर्ण परिस्थितियों का उत्तरदायित्व हमारे एकमात्र भौतिकवादी दृष्टिकोण पर है। यदि हम अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन कर उसे थोड़ा भी आध्यात्मिक बना सकें तो बहुत अंशों तक हमारी ये दुःखद स्थिति बदल सकती है। आत्मा की उपेक्षा करते रहने पर भौतिक संपदायें कभी भी हमारी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकतीं। शाश्वत सुख की प्राप्ति अथवा जीवन लक्ष्य की सिद्धि एक ही मार्ग में संभव है और वह मार्ग है आध्यात्मिक जीवन पद्धति। इस पुण्य पथ का अवलंब लिए बिना निस्तार होना कठिन है।
अध्यात्म मानव-जीवन का बहुत बड़ा आधार है, उसकी महानतम संपदा है। मनुष्य के भौतिक एवं आत्मिक चिर उत्कर्ष के लिए इसका ग्रहण नितांत आवश्यक है। मनुष्य जीवन की अगणित समस्याओं को हल करने और सुख-शांतिपूर्वक जीने के लिए इससे बढ़कर अन्य कोई उपाय नहीं है। इसकी उपेक्षा करने के कारण ही मनुष्य जाति सब कुछ पाकर भी दीन-हीन बनी आत्मिक दरिद्रता का जीवनयापन कर रही है। इस भयानक पतन का एक ही कारण है और वह है आत्मा की उपेक्षा करके अनाध्यात्मिक जीवन बिताना।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न