आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
इस समय इस बात की सबसे अधिक आवश्यकता है कि देशवासियों को अध्यात्म का सच्चा स्वरूप बतलाया जाए। उसका महत्त्व समझाया जाय और लोगों की विचारधारा को उस तरफ मोड़ा जाए। इस महान् तत्त्व को केवल कथा-वार्ता का विषय न समझकर, जन-जीवन में व्यावहारिक रूप से उसका समावेश होना परमावश्यक है। मनुष्य का अंतःकरण बदलते ही उसकी दुनिया भी बदल जाती है। अब संसार की परिस्थितियाँ जैसी विकृत हो उठी हैं, उनका परिवर्तन होना अनिवार्य है अन्यथा हम दिन-प्रतिदिन पतन और कष्ट के खड्डे में ही गिरते जायेंगे। यह परिवर्तन बाहरी हेर-फेर से संभव नहीं हो सकता, वरन् उसके लिए मनुष्य की अंत.चेतना को ही प्रभावित किया जाना चाहिए। इस प्रकार के बदलाव से ही हम सब रोग-शोक, क्लेश-कलह, पाप-ताप, आधि-व्याधि से छुटकारा पाने में समर्थ हो सकेंगे। इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय ऐसा नहीं है, जिससे संसार भर में फैली अशांति मिटकर लोगों को सुख-शांति का दर्शन हो सके।
युग-निर्माण योजना को मैंने अच्छी तरह पढा और समझा है। उसकी पृष्ठभूमि में जो रहस्यमय शक्तियाँ काम कर रही हैं, उनका भी कुछ परिचय मुझे प्राप्त हो चुका है। इसलिए मुझे इस बात से बड़ी प्रसन्नता होती है कि जनता को सच्चे अर्थों में अध्यात्मवादी बनाने का एक ठोस प्रयत्न किया जा रहा है। इसके द्वारा मनुष्यों के अनेक कष्ट, संताप तो मिट सकेंगे, पर सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि भारत की महान् निधि, 'अध्यात्म' का सच्चा स्वरूप समझने और उसे अपने व्यावहारिक जीवन में स्थान देने का अलभ्य अवसर सर्वसाधारण को प्राप्त हो सकेगा।
भारतवर्ष यदि अपनी समस्त कठिनाइयों को हल करके संसार का मार्गदर्शक बनना चाहे तो उसका एकमात्र आधार अध्यात्म ही है। इसी के द्वारा हमारा भूतकाल महान् बन सका था और इसी से भविष्य के उज्ज्वल बनने की आशा भी की जा सकती है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि हम व्यावहारिक अध्यात्म का स्वरूप सर्वसाधारण को समझा सकें और उसके प्रत्यक्ष लाभों से लोगों को अवगत करा दें।
अशांति के दावानल में जलता हुआ समस्त संसार आज अध्यात्म के अमृत के लिए तरस रहा है। हमें आगे बढ़कर इसी महान् तत्त्वज्ञान का सच्चा स्वरूप प्रकट करने में अपनी शक्ति को लगाना है। युग-निर्माण योजना अध्यात्मवाद को जन-जन के जीवन में प्रविष्ट करने की व्यावहारिक विधि है। जितनी गहराई तक इसकी संभावनाओं पर विचार किया जाता है, उतनी ही अधिक आशा बँधती है और लगता है कि यदि हम इस मार्ग पर दृढतापूर्वक चल सकें तो प्राचीन काल की तरह भारत पुनः 'स्वर्ग' कहलाने का गौरव प्राप्त कर सकेगा और संसार के अन्य भागों के निवासी यहाँ से सन्मार्ग पर चलने की शिक्षा प्राप्त करके इसे पुन: जगद्गुरु का सम्मान प्रदान करेंगे। खोये हुए अतीत को पुनः वापस लाने का यह आध्यात्मिक प्रयत्न हमारे लिए आशा की किरण बनकर आया है और उसका हमें सादर अभिनंदन करना चाहिए।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न