आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न
भारतवर्ष की सबसे बड़ी विशेषता और महत्ता उसका अध्यात्मवादी दृष्टिकोण है। अतीत काल से अब तक हमारे देश का गौरव इसी आधार पर प्रकाशवान् रहा है। एक समय था जब यहाँ के निवासी तैंतीस कोटि देवताओं के नाम से पुकारे जाते थे, ज्ञान और विज्ञान की दृष्टि में उन्हें जगद्गुरु की पदवी प्राप्त हुई थी। व्यवस्था, दूरदर्शिता और प्रतिभा का स्तर अत्यंत ऊँचा होने के कारण चक्रवर्ती शासन का गुरुतर भार उन्हीं के कंधों पर डाला जाता था। धन, विद्या, चरित्र सब दृष्टियों से यह देश नर-रत्नों की खान माना जाता था। इस सबका कारण यहाँ की आध्यात्मिक विशेषता ही थी।
अध्यात्म-तत्त्वज्ञान को पारस माना गया है, क्योंकि उसका स्पर्श होते ही लोहे के समान तुच्छ श्रेणी के व्यक्तित्व भी सोने के समान बहुमूल्य और आकर्षक बन जाते हैं। अध्यात्म को कल्पवृक्ष कहा गया है, क्योकि उस दृष्टिकोण के प्राप्त होते ही मनुष्य आप्तकाम बन जाता है। अनावश्यक तृष्णाओं को वह मस्तिष्क में से कूड़े-कचरे की तरह बुहारकर बाहर फेंक देता है और जो कामनाएँ आवश्यक होती हैं, उन्हें तत्परता, पुरुषार्थ और लगन के साथ पूरा करने में जुट जाता है। इस प्रकार कार्य-संलग्न हुए व्यक्ति के लिए असफलता नाम की कोई वस्तु बाकी नहीं रहती। आलस्य और प्रमाद ही असफलता के जनक हैं, इन दो शत्रुओं को परास्त कर देने के बाद मनुष्य को आप्तकाम होने में देर नहीं लगती। उसकी कोई कामना अधूरी नहीं रहती।
अध्यात्म का आधार संयम है और संयमी मनुष्य के लिए शारीरिक अस्वास्थ्य का प्रश्न ही नहीं उठता। अध्यात्म का मूल मंत्र प्रेम है। जो दूसरों के साथ आत्मीयता, उदारता, सेवा, सहिष्णुता और मधुरता का व्यवहार करेगा उसके लिए दूसरों का सहयोग, सदभाव एवं सौजन्य मिलेगा ही। सर्वत्र उसे स्नेही और सज्जन ही भरे हुए मिलेंगे। अध्यात्म-तत्त्वज्ञान आत्मशोधन पर अवलंबित है। जो अपने दोष और त्रुटियों को समझ लेगा और उन्हें सुधारने के लिए सचेष्ट रहेगा, उस व्यक्ति के सामने न तो कोई समस्या रहेगी और न उलझन। जब मनुष्य अपने ही दोष, दुर्गुण, कुविचार, कुसंस्कारों को रंगीन चश्मे की तरह औरत पर धारण किये रहता है तो सर्वत्र उसे नरक दिखाई पड़ता है। पर जब वह अपने को सुधारने और बदलने के लिए प्रयत्नशील होता है तो बाहरी समस्याएँ और परिस्थितियाँ अपने आप ही सरल हो जाती हैं। इस प्रकार आध्यात्मिक विचारधारा मनुष्य को स्वर्गीय जीवन की आनंदमय अनुभूति कराती रहती है और अतंतः आत्मा-परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य भी उसी मार्ग पर चलते हुए प्राप्त हो जाता है।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न