आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन सफलता के सात सूत्र साधनश्रीराम शर्मा आचार्य
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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...
कठिनाइयों से भय मानना अंतर में छिपी कायरता का द्योतक है। अपनी इस कायरता के
कारण ही मार्ग में आई हुई कठिनाई पहाड़ के समान दुरूह मालूम होती हैं किंतु
जब उस कठिनाई को दूर करने के लिए साहसपूर्वक जुट पड़ा जाता है तो यह विदित
होते देर नहीं लगती कि जिस कठिनाई को हम पर्वत के समान दुर्गम समझ रहे थे, वह
उस बादल के समान हीन अस्तित्व थी जो थोड़ी-सी हवा लगने पर टुकड़े-टुकड़े होकर
छितरा जाता है।
सफलता को आसान समझकर उसकी कामना करने वाले व्यक्ति प्रौढ बुद्धि के नहीं माने
जा सकते। सफलता की उपलब्धि सरलता से नहीं कठोर संघर्ष से ही संभव होती है।
अध्ययन, अध्यवसाय और अनुभव की साधना किए बिना अभीष्ट सफलता को पा सकने की
कल्पना भी नहीं की जा सकतीs। अपने को योग्य बनाकर पूरे संकल्प के साथ लक्ष्य
की ओर बढ़ना होगा। मार्ग में आने वाली बाधाओं का,
यह मानकर स्वागत करना होगा कि वे हमारे साहस, निश्चय और संकल्प की परीक्षा
लेने आई हैं। कठिनाइयों को देखकर भयभीत होने के स्थान पर उन्हें दूर करने के
लिए जी-जान से जुट जाना होगा। इस प्रकार पूरे समारोह और साहस के साथ लक्ष्य
की ओर अभियान करने पर सफलता की आशा की जा सकती है। इसमें संदेह नहीं कि ऐसा
अदम्य उत्साह और उद्योग की क्षमता प्रकट करने वाले पुरुषार्थी के गले में
जयमाला पड़ती ही है और वे समाज द्वारा अभिवंदित होकर उन्नति के उच्च सिंहासन
पर अभिषेक के अधिकारी बनते हैं।
सफलता की सिद्धि मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है। जो व्यक्ति अपने इस अधिकार
की उपेक्षा करके यथा-तथा जी लेने में ही संतोष मानते हैं, वे इस महा-मूल्य
मानव जीवन का अवमूल्यन कर एक ऐसे सुअवसर को खो देते हैं, जिसका दुबारा मिल
सकना संदिग्ध है। अस्तु उठिए और आज से ही अपनी वांछित सफलता को वरण करने के
लिए उद्योग में जुट पडिए।
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