आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन सफलता के सात सूत्र साधनश्रीराम शर्मा आचार्य
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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...
कभी-कभी देखा जाता है कि प्रयत्न करने पर भी कुछ लोग वांछित सफलता नहीं पाते
और तब दृष्टिकोण में इस भ्रम की संभावना हो उठती है कि प्रयत्न और पुरुषार्थ
व्यर्थ है, मनुष्य का भाग्य ही प्रबल होता है किंतु यह भ्रम सर्वथा भ्रम ही
है, सत्य का इससे दूर का भी संबंध नहीं होता। ऐसे प्रयत्नशील व्यक्ति की
असफलता को लेकर भाग्यवाद में आस्था की स्थापना करने लगना मानसिक निर्बलता का
लक्षण है। निश्चय ही उस असफल व्यक्ति के प्रयत्न में कुछ न कुछ खोट अथवा कमी
रही होगी, जिससे कि उसे उस समय असफलता का मुंह देखना पड़ा। यदि प्रयत्न पूरा
और सावधानी के साथ किया जाए तो किसी के आने का अवसर ही शेष नहीं रह जाता।
पूरा और सुचारु प्रयत्न सफलता की एक ऐसी गारंटी है जो कभी असिद्ध नहीं हो
सकती।
किसी एक प्रयत्न से कोई निश्चित सफलता मिल ही जाए, यह आवश्यक नहीं। सफलता के
लिए कभी-कभी प्रयत्नों की परंपरा लगा देनी होती है। परिश्रम एवं पुरुषार्थ के
रूप में उसका उतना मूल्य चुका ही देना होता है जितना उसके लिए अनिवार्य है।
एक बार असफलता का सामना हो जाने पर किसी को असफल मान लेना उसके साथ अन्याय
करने के समान है। संसार में लिंकन जैसे हजारों व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने
सैकड़ों बार असफल होकर भी, अंत में अभीष्ट सफलता का वरण कर ही लिया सच्चा
पुरुषार्थी वास्तव में वही है, जो बार-बार असफलता को देखकर भी अपने प्रयत्न
में शिथिलता न आने दें और हर असफलता के बाद एक नए उत्साह से सफलता के लिए
निरंतर उद्योग करता रहे। जो पत्थर एक आघात में नहीं टूटता उसे बार-बार के
आघात से तोड़ा ही जा सकता है।
असफलता को अंगीकार करने का अर्थ है निराशा को निमंत्रण देना। निराशा के
दुष्परिणामों के विषय में अधिक कुछ कहना व्यर्थ है। निराशा की भावना को यदि
नागपाश की भाँति कह दिया जाए तो कुछ अनुचित न होगा। निराशा मनुष्य की
क्रियाशीलता पर सर्प की भाँति लिपटकर न केवल उसकी गति ही अवरुद्ध कर देती है
प्रत्युत् अपने विषैले प्रभाव से उसके जीवन तत्त्व को भी नष्ट करती रहती है।
यह अधिक अस्वाभाविक नहीं है कि असफलता की स्थिति में कभी-कभी निराशा मनुष्य
के विचारों पर अपनी काली छाया डालने का साहस कर ही जाती है, किंतु उस छाया को
देर तक ठहरने न देना चाहिए। यदि यह गलती की जाएगी तो वर्तमान पर ही नहीं
भविष्य पर भी उसका दूरगामी कुप्रभाव पड़े बिना न रह सकेगा। वे सारे स्वप्न,
सारी स्वर्ण कल्पनाएँ, जिनको मूर्तिमान करने की आकांक्षा लेकर अपने कर्म
क्षेत्र में कदम बढ़ाया है सहसा धूमिल पड़ जाएँगी। व्यक्ति का आत्मविश्वास
उत्साह और साहस धीरे-धीरे साथ छोड़ने लगेगा। विचारों के माध्यम से जीवन
क्षितिज पर अंधकार घनीभूत हो उठेगा और तब कुंठा और कायरता के सिवाय उनके पास
कुछ भी तो शेष न बचेगा। इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि असफलता के साथ निराशा
को जोड़कर ऐसी हानि न की जाए जो कभी पूरी न हो सके।
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- सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
- सफलता की सही कसौटी
- असफलता से निराश न हों
- प्रयत्न और परिस्थितियाँ
- अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
- सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
- सात साधन
- सतत कर्मशील रहें
- आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
- पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
- छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
- सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
- अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए