आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन सफलता के सात सूत्र साधनश्रीराम शर्मा आचार्य
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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...
जो उत्सर्ग नहीं कर सकता वह कभी कुछ पा भी नहीं सकता। शिशिर में प्रकृति की
आवश्यकता पर पेड़, फूल-पत्तों का त्याग कर देते हैं फलस्वरूप सैकड़ों गुना
सुंदर पत्तों, फूलों तथा फलों का उपहार मिलता है। बीज अपने अस्तित्व की
उत्सर्ग ही नहीं संपूर्ण तिरोधान कर देता और तभी अपने इस त्याग के फलस्वरूप
वह वृक्ष के रूप में सफल होकर संसार को छाया तथा फल देकर श्रेय का भागी बनता
है। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि हृदय में
संकीर्णतापूर्ण स्वार्थ को स्थान न दिया जाए।
संसार में एक से बढ़कर धनकुबेर विजयी तथा विद्यावान व बलवान हुए हैं और
उन्होंने ऐसे काम भी कर दिखाए हैं जो इतिहास में स्मरणीय हैं, किंतु अनेक
मानों में वे असफल ही रहे हैं। जिसने स्वार्थ शोषण तथा अनुचित उपायों से धन
कमाया है, हजारों लाखों का रक्त बहाकर विजय प्राप्त की है। शासन स्थापित कर
मनुष्यों को सताकर और धन बढ़ाकर शोषण की क्रूरता करते रहने वाले विजयी अथवा
धनवान व्यक्ति किसी प्रकार भी सफल नहीं माने जा सकते फिर वे क्यों न ऐतिहासिक
स्थिति तक उठ गए हों। जिस व्यक्ति को लोगों ने घृणा से याद किया, जिसे इतिहास
के काले पृष्ठों पर लिखा गया वह समस्त संसार का स्वामी होने पर भी असफल
व्यक्ति ही कहा जाएगा। सफलता अथवा उसके प्रयत्न में यदि स्नेह तथा सहानुभूति
का समावेश न किया जाएगा तो वह या तो असफलता में बदल जाएगी अथवा प्राप्त ही
नहीं होगी ! जो क्रूर, कठोर तथा असंवेदनशील है, उसके यह दोष ही उसके मार्ग
में कांटे बनकर बिखर जाएँगे। उन्नति तथा विकास की ओर चलने के इच्छुक को स्नेह
तथा सहानुभूति को हृदय में स्थान देना आवश्यक है, जिससे कि प्रतिदान में वह
भी स्नेह-सहानुभूति पाता रहे और उसका पथ अवरोध होता रहे।
अपने गुणों के आधार पर श्रेय पथ पर बढ़ने वाले व्यक्ति में यदि निर्भयता की
कमी है तो समझ लेना चाहिए कि वह अपने लक्ष्य तक न पहुँच सकेगा। भीरु व्यक्ति
में आगे बढ़ने का साहस ही नहीं होता। वह पग-पग पर आपत्तियों तथा कठिनाइयों की
शंका करता रहेगा। सफलता के मार्ग पर असफलता का भय अस्वाभाविक नहीं है, भीरु
व्यक्ति इसी अज्ञात अथवा असंभाव्य असफलता के कारण अपना अभियान ही आरंभ न
करेगा। जिस श्रेय का आरंभ ही न होगा उसका परिणाम आ भी किस प्रकार सकता है ?
संसार में दुष्टों तथा खलों की कमी भी नहीं है। वे स्वभावतः ही बढ़ते हुए
व्यक्ति के मार्ग में अवरोध एवं विरोध बनकर खड़े हो जाते हैं। ऐसे समय में
दुष्टों तथा खलों से निबटने के लिए उस साहस की आवश्यकता होती है, जो भी
व्यक्ति में नहीं होता। असफलता अथवा अवरोध से भयभीत रहने वाला व्यक्ति जीवन
में कभी भी सफलता नहीं पा सकता। सफलता अथवा श्रेय पथ का दूसरा छोर पाने के
लिए आवश्यक है कि मनुष्य अपने में निर्भयता का विकास करे। अन्यथा उसका भय उसे
मैदान छोड़कर भागने के लिए किसी समय भी विवश कर सकता है।
सफलता पाने के लिए प्रसन्नता की उतनी ही आवश्यकता है। जितनी शरीर यात्रा के
लिए जीवन की। अप्रसन्नचेता व्यक्ति एक प्रकार से निर्जीव ही होता है। जो फूल
मुरझाए रहते हैं उन्हें जीवित नहीं कहा जा सकता। अप्रसन्न-चेता व्यक्ति को
विषाद तथा निराशा का क्षय रोग लग जाता है, जिससे उसका सारा उत्साह नष्ट हो
जाता है। सफलता के पथ पर आए अवरोधों तथा विरोधों का सामना करने का साहस भी हो
और संबल भी किंतु हृदय में निर्मलता का अभाव हो तो क्या वह व्यक्ति अपने
ध्येय में सफल हो सकता है ? एक छोटी-सी असफलता, एक रंचक विरोध आ जाने पर वह
छई-मई की तरह मुरझाकर निराश तथा हताश हो जाएगा तब भला इस प्रकार के निम्न
स्वभाव वाला व्यक्ति सफलता के महान् पथ पर किस प्रकार आरूढ़ हो सकता है ?
मानसिक संतुलन प्रसन्नता के आधीन रहा करता है। अप्रसन्नता की स्थिति में
मनुष्य का संतुलन असंभव है और असंतुलन निश्चित रूप से असफलता की जननी है।
इस प्रकार सफलता के आकांक्षी व्यक्तियों को चाहिए कि वे श्रेय पाने के लिए
सफलता के इन साधनों का अभ्यास एवं विकास करते हुए अपने पथ पर बढ़े, उन्हें
सफलता मिलेगी और अवश्य मिलेगी।
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- सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
- सफलता की सही कसौटी
- असफलता से निराश न हों
- प्रयत्न और परिस्थितियाँ
- अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
- सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
- सात साधन
- सतत कर्मशील रहें
- आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
- पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
- छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
- सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
- अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए