सामाजिक >> मैकलुस्कीगंज मैकलुस्कीगंजविकास कुमार झा
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विकास कुमार झा का विचारोत्तेजक उपन्यास
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘बचे खुचे एंग्लो-इंडियन लोगों की मौत के साथ यह गाँव भी पूरी तरह खत्म हो जाएगा। मि. मैकलुस्की के सपनों का कब्रिस्तान...। एंग्लो-इंडियन के दर्दनाक इतिहास की कहानी कहता एक बेपनाह सन्नाटा भर रह जाएगा यहाँ...। उस दर्द को आने वाले समय में कौन महसूस करेगा?’’ मि. मिलर की आवाज अंधेरे में डूब रही है।
रॉबिन को लगा, इस गाँव की चौहूददी के भीतर की धरती जोरों से धड़क रही है। महसूस कर रहा है वह, इसकी तेज धड़कन को। मनुष्य मूर्च्छित हो सकता है। संज्ञाशून्य हो सकता है। उसके विचार विक्षिप्त हो सकते हैं। पर धरती... मातृभूमि कभी मूर्च्छित...संज्ञाशून्य और विक्षिप्त नहीं हो सकती। इसका अनुराग... प्यार भरी गुनगुनी उष्मा, धड़कती रहेगी अनंत काल तक।
रॉबिन को लगा, इस गाँव की चौहूददी के भीतर की धरती जोरों से धड़क रही है। महसूस कर रहा है वह, इसकी तेज धड़कन को। मनुष्य मूर्च्छित हो सकता है। संज्ञाशून्य हो सकता है। उसके विचार विक्षिप्त हो सकते हैं। पर धरती... मातृभूमि कभी मूर्च्छित...संज्ञाशून्य और विक्षिप्त नहीं हो सकती। इसका अनुराग... प्यार भरी गुनगुनी उष्मा, धड़कती रहेगी अनंत काल तक।
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