आचार्य श्रीराम शर्मा >> समय का सदुपयोग समय का सदुपयोगश्रीराम शर्मा आचार्य
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समय का सदुपयोग....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
जीवन का महल समय की -घंटे -मिनटों की ईंटों से चिना गया है। यदि हमें जीवन
से प्रेम है तो यही उचित है कि समय को व्यर्थ नष्ट न करें। मरते समय एक
विचारशील व्यक्ति ने अपने जीवन के व्यर्थ ही चले जाने पर अफसोस प्रकट करते
हुए कहा था-मैंने समय को नष्ट किया, अब समय मुझे नष्ट कर रहा
है।’’
खोई दौलत फिर कमाई जा सकती है। भूली हुई विद्या फिर याद की जा सकती है। खोया स्वास्थ्य चिकित्सा द्वारा लौटाया जा सकता है पर खोया हुआ समय किसी प्रकार नहीं लौट सकता, उसके लिए केवल पश्चाताप ही शेष रह जाता है।
जिस प्रकार धन के बदले में अभिष्ठित वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं, उसी प्रकार समय के बदले में भी विद्या, बुद्धि, लक्ष्मी कीर्ति आरोग्य, सुख -शांति, मुक्ति आदि जो भी वस्तु रुचिकर हो खरीदी जा सकती है। ईश्वर ने समय रुपी प्रचुर धन देकर मनुष्य को पृथ्वी पर भेजा है और निर्देश दिया है कि इसके बदले में संसार की जो वस्तु रुचिकर समझे खरीद ले।
किंतु कितने व्यक्ति हैं जो समय का मूल्य समझते और उसका सदुपयोग करते हैं ? अधिकांश लोग आलस्य और प्रमाद में पड़े हुए जीवन के बहुमूल्य क्षणों को यों ही बर्बाद करते रहे हैं। एक-एक दिन करके सारी आयु व्यतीत हो जाती है और अंतिम समय वे देखते हैं कि उन्होंने कुछ भी प्राप्त नहीं किया, जिंदगी के दिन यों ही बिता दिये। इसके विपरीत जो जानते हैं कि समय का नाम ही जीवन है वे एक -एक क्षण कीमती मोती की तरह खर्च करते हैं और उसके बदले में बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं। हर बुद्धिमान व्यक्ति ने बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा परिचय यही दिया है कि उसने जीवन के क्षणों को व्यर्थ बर्बाद नहीं होने दिया। अपनी समझ के अनुसार जो अच्छे से अच्छा उपयोग हो सकता था, उसी में उसने समय को लगाया। उसका यही कार्यक्रम, अंततः उसे इस स्थिति तक पहुँचा सका, जिस पर उसकी आत्मा, संतोष का अनुभव करे।
प्रतिदिन एक घंटा समय यदि मनुष्य नित्य लगाया करे तो उतने छोटे समय से भी वह कुछ ही दिनों में बड़े महत्त्वपूर्ण कार्य पूरे कर सकता है। एक घंटे में चालीस पृष्ठ पढ़ने से महीने में बारह सौ पृष्ठ और साल में करीब पंद्रह हजार पृष्ठ पढ़े जा सकते हैं। यह क्रम दस वर्ष जारी रहे तो डेढ़ लाख पृष्ठ पढ़े जा सकते हैं। इतने पृष्ठों में कई सौ ग्रंथ हो सकते हैं। यदि वे एक ही किसी विषय के हों तो वह व्यक्ति उस विषय का विशेषज्ञ बन सकता है। एक घंटा प्रतिदिन कोई व्यक्ति विदेशी भाषाएँ सीखने में लगावे तो वह मनुष्य निःसंदेह तीन वर्ष में इस संसार की सब भाषाओं का ज्ञाता बन सकता है। एक घंटा प्रतिदिन व्यायाम में कोई व्यक्ति लगाया करे तो अपने आय को पंद्रह वर्ष बढ़ा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के प्रख्यात गणित आचार्य चार्ल्स फास्ट ने प्रतिदिन एक घंटा गणित सीखने का नियम बनाया था और उस नियम पर अंत तक डटे रहकर ही इतनी प्रवीणता प्राप्त की।
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर समय के बड़े पाबंद थे। जब वे कालेज जाते तो रास्ते के दुकानदार अपनी घड़ियाँ उन्हें देखकर ठीक करते थे। वे जानते थे कि विद्यासागर कभी एक मिनट भी आगे-पीछे नहीं चलते।
एक विद्वान ने अपने दरवाजे पर लिख रखा था। ‘‘कृपया बेकार मत बैठिये। यहाँ पधारने की कृपा की है तो मेरे काम में कुछ मदद भी कीजिये। साधारण मनुष्य जिस समय को बेकार की बातों में खर्च करते रहते हैं, उसे विवेकशील लोग किसी उपयोगी कार्य में लगाते हैं। यही आदत है जो सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को भी सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचा देती है। माजार्ट ने हर घड़ी उपयोगी कार्य में लगे रहना अपने जीवन का आदर्श बना लिया था। वह मृत्यु शैय्या पर पड़ा रहकर भी कुछ करता रहा। रैक्यूम नामक प्रसिद्ध ग्रंथ उसने मौत से लड़ते -लड़ते पूरा किया।
ब्रिटिश कॉमनवेल्थ और प्रोटेक्टरेट के मंत्री का अत्यधिक व्यस्त उत्तरदायित्व वहन करते हुए मिल्टन ने ‘पैराडाइस लास्ट’ की रचना की। राजकाज से उसे बहुत कम समय मिल पाता था, तो भी जितने कुछ मिनट वह बचा पाता उसी में उस काव्य की रचना कर लेता। ईस्ट इंडिया हाउस की क्लर्की करते हुए जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपने सर्वोत्तम ग्रंथों की रचना की। गैलेलियों दवादारु बेचने का धंधा करता था तो भी उसने थोड़ा -थोड़ा समय बचाकर विज्ञान के महत्त्वपूर्ण आविष्कार कर डाले।
हेनरी किरक व्हाट को सबसे बडा समय का अभाव रहता था, पर घर से दफ्तर तक पैदल आते और जाने के समय का सदुपयोग करके उसने ग्रीक भाषा सीखी। फौजी डाक्टर बनने पर अधिकांश समय घोड़े की पीठ पर बीतता था। उसने उस समय को भी व्यर्थ न जाने दिया और रास्ता पार करने के साथ- साथ उसने इटेलियन और फ्रेंच भाषाएँ भी पढ़ लीं। यह याद रखने की बात है कि-परमात्मा एक समय में एक ही क्षण हमें देता है और दूसरा क्षण देने से पूर्व उस पहले वाले क्षण को छीन लेता है। यदि वर्तमान काल में उपलब्ध क्षणों का हम सदुपयोग नहीं करते तो वे एक -एक करके छिनते चले जाएँगे, चाहे अंत में खाली हाथ ही रहना पड़ेगा।’’
एडवर्ड वटलर लिटन ने अपने एक मित्र को कहा था-लोग आश्चर्य करते हैं कि मैं राजनीति तथा पार्लियामेंट के कार्यक्रमों में व्यस्त रहते हुए भी इतना साहित्यिक कार्य कैसे कर लेता हूँ ? 60 ग्रंथों की रचना मैंने कैसे कर ली ? पर इसमें आश्चर्य की बात नहीं। यह नियंत्रित दिनचर्या का चमत्कार है। मैंने प्रतिदिन तीन घंटे का समय पढ़ने और लिखने के लिये नियत किया हुआ है। इतना समय मैं नित्य ही किसी न किसी प्रकार अपने साहित्यिक कार्यो के लिए निकाल लेता हूँ। बस एक थोड़े से नियमित समय ने ही मुझे हजारों पुस्तकें पढ़ डालने और साठ ग्रंथों के प्रणयन का अवसर ला दिया। घर- गृहस्थी के अनेक झंझटों और बाल -बच्चों की साज -सँभाल से दिनभर लगी रहने वाली महिला हैरियट वीचर स्टो ने गुलाम -प्रथा के विरुद्ध आग उगलने वाली वह पुस्तक ‘टॉम काका की कुटिया’ लिखकर तैयार कर दी, जिसकी प्रशंसा आज भी बेजोड़ रचना के रुप में की जाती है।
चाय बनाने के लिए पानी उबालने में जितना समय लगता है, उसमें व्यर्थ बैठे रहने की बजाय लांगफैले ने ‘इनफरल’ नामक ग्रंथ का अनुवाद करना शुरू किया और नित्य इतने छोटे समय का उपयोग इस कार्य के लिए नित्य करते रहने से उसने कुछ ही दिन में वह अनुवाद पूरा कर लिया।
इस प्रकार अगणित उदापरण हमें अपने चारों ओर बिखरे हुए मिल सकते हैं। हर उन्नतिशील और बुद्धिमान मनुष्य की मुलभूत विशेषताओ में एक विशेषता अवश्य मिलेगी-समय का सदुपयोग। जिसने इस तथ्य को समझा और कार्य रूप में उतारा उसने ही यहाँ आकर कुछ प्राप्त किया है, अन्यथा तुच्छ कार्यों मेम आलस्य और उपेक्षा के साथ दिन काटने वाले लोग किसी प्रकार साँसे तो पूरी कर लेते हैं, पर उस लाभ से वंचित ही रह जाते है, जो मानव जीवन जैसी बहुमुल्य वस्तु प्राप्त होने पर उपलब्द होनी चाहिए या हो सकती थी।
खोई दौलत फिर कमाई जा सकती है। भूली हुई विद्या फिर याद की जा सकती है। खोया स्वास्थ्य चिकित्सा द्वारा लौटाया जा सकता है पर खोया हुआ समय किसी प्रकार नहीं लौट सकता, उसके लिए केवल पश्चाताप ही शेष रह जाता है।
जिस प्रकार धन के बदले में अभिष्ठित वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं, उसी प्रकार समय के बदले में भी विद्या, बुद्धि, लक्ष्मी कीर्ति आरोग्य, सुख -शांति, मुक्ति आदि जो भी वस्तु रुचिकर हो खरीदी जा सकती है। ईश्वर ने समय रुपी प्रचुर धन देकर मनुष्य को पृथ्वी पर भेजा है और निर्देश दिया है कि इसके बदले में संसार की जो वस्तु रुचिकर समझे खरीद ले।
किंतु कितने व्यक्ति हैं जो समय का मूल्य समझते और उसका सदुपयोग करते हैं ? अधिकांश लोग आलस्य और प्रमाद में पड़े हुए जीवन के बहुमूल्य क्षणों को यों ही बर्बाद करते रहे हैं। एक-एक दिन करके सारी आयु व्यतीत हो जाती है और अंतिम समय वे देखते हैं कि उन्होंने कुछ भी प्राप्त नहीं किया, जिंदगी के दिन यों ही बिता दिये। इसके विपरीत जो जानते हैं कि समय का नाम ही जीवन है वे एक -एक क्षण कीमती मोती की तरह खर्च करते हैं और उसके बदले में बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं। हर बुद्धिमान व्यक्ति ने बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा परिचय यही दिया है कि उसने जीवन के क्षणों को व्यर्थ बर्बाद नहीं होने दिया। अपनी समझ के अनुसार जो अच्छे से अच्छा उपयोग हो सकता था, उसी में उसने समय को लगाया। उसका यही कार्यक्रम, अंततः उसे इस स्थिति तक पहुँचा सका, जिस पर उसकी आत्मा, संतोष का अनुभव करे।
प्रतिदिन एक घंटा समय यदि मनुष्य नित्य लगाया करे तो उतने छोटे समय से भी वह कुछ ही दिनों में बड़े महत्त्वपूर्ण कार्य पूरे कर सकता है। एक घंटे में चालीस पृष्ठ पढ़ने से महीने में बारह सौ पृष्ठ और साल में करीब पंद्रह हजार पृष्ठ पढ़े जा सकते हैं। यह क्रम दस वर्ष जारी रहे तो डेढ़ लाख पृष्ठ पढ़े जा सकते हैं। इतने पृष्ठों में कई सौ ग्रंथ हो सकते हैं। यदि वे एक ही किसी विषय के हों तो वह व्यक्ति उस विषय का विशेषज्ञ बन सकता है। एक घंटा प्रतिदिन कोई व्यक्ति विदेशी भाषाएँ सीखने में लगावे तो वह मनुष्य निःसंदेह तीन वर्ष में इस संसार की सब भाषाओं का ज्ञाता बन सकता है। एक घंटा प्रतिदिन व्यायाम में कोई व्यक्ति लगाया करे तो अपने आय को पंद्रह वर्ष बढ़ा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के प्रख्यात गणित आचार्य चार्ल्स फास्ट ने प्रतिदिन एक घंटा गणित सीखने का नियम बनाया था और उस नियम पर अंत तक डटे रहकर ही इतनी प्रवीणता प्राप्त की।
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर समय के बड़े पाबंद थे। जब वे कालेज जाते तो रास्ते के दुकानदार अपनी घड़ियाँ उन्हें देखकर ठीक करते थे। वे जानते थे कि विद्यासागर कभी एक मिनट भी आगे-पीछे नहीं चलते।
एक विद्वान ने अपने दरवाजे पर लिख रखा था। ‘‘कृपया बेकार मत बैठिये। यहाँ पधारने की कृपा की है तो मेरे काम में कुछ मदद भी कीजिये। साधारण मनुष्य जिस समय को बेकार की बातों में खर्च करते रहते हैं, उसे विवेकशील लोग किसी उपयोगी कार्य में लगाते हैं। यही आदत है जो सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को भी सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचा देती है। माजार्ट ने हर घड़ी उपयोगी कार्य में लगे रहना अपने जीवन का आदर्श बना लिया था। वह मृत्यु शैय्या पर पड़ा रहकर भी कुछ करता रहा। रैक्यूम नामक प्रसिद्ध ग्रंथ उसने मौत से लड़ते -लड़ते पूरा किया।
ब्रिटिश कॉमनवेल्थ और प्रोटेक्टरेट के मंत्री का अत्यधिक व्यस्त उत्तरदायित्व वहन करते हुए मिल्टन ने ‘पैराडाइस लास्ट’ की रचना की। राजकाज से उसे बहुत कम समय मिल पाता था, तो भी जितने कुछ मिनट वह बचा पाता उसी में उस काव्य की रचना कर लेता। ईस्ट इंडिया हाउस की क्लर्की करते हुए जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपने सर्वोत्तम ग्रंथों की रचना की। गैलेलियों दवादारु बेचने का धंधा करता था तो भी उसने थोड़ा -थोड़ा समय बचाकर विज्ञान के महत्त्वपूर्ण आविष्कार कर डाले।
हेनरी किरक व्हाट को सबसे बडा समय का अभाव रहता था, पर घर से दफ्तर तक पैदल आते और जाने के समय का सदुपयोग करके उसने ग्रीक भाषा सीखी। फौजी डाक्टर बनने पर अधिकांश समय घोड़े की पीठ पर बीतता था। उसने उस समय को भी व्यर्थ न जाने दिया और रास्ता पार करने के साथ- साथ उसने इटेलियन और फ्रेंच भाषाएँ भी पढ़ लीं। यह याद रखने की बात है कि-परमात्मा एक समय में एक ही क्षण हमें देता है और दूसरा क्षण देने से पूर्व उस पहले वाले क्षण को छीन लेता है। यदि वर्तमान काल में उपलब्ध क्षणों का हम सदुपयोग नहीं करते तो वे एक -एक करके छिनते चले जाएँगे, चाहे अंत में खाली हाथ ही रहना पड़ेगा।’’
एडवर्ड वटलर लिटन ने अपने एक मित्र को कहा था-लोग आश्चर्य करते हैं कि मैं राजनीति तथा पार्लियामेंट के कार्यक्रमों में व्यस्त रहते हुए भी इतना साहित्यिक कार्य कैसे कर लेता हूँ ? 60 ग्रंथों की रचना मैंने कैसे कर ली ? पर इसमें आश्चर्य की बात नहीं। यह नियंत्रित दिनचर्या का चमत्कार है। मैंने प्रतिदिन तीन घंटे का समय पढ़ने और लिखने के लिये नियत किया हुआ है। इतना समय मैं नित्य ही किसी न किसी प्रकार अपने साहित्यिक कार्यो के लिए निकाल लेता हूँ। बस एक थोड़े से नियमित समय ने ही मुझे हजारों पुस्तकें पढ़ डालने और साठ ग्रंथों के प्रणयन का अवसर ला दिया। घर- गृहस्थी के अनेक झंझटों और बाल -बच्चों की साज -सँभाल से दिनभर लगी रहने वाली महिला हैरियट वीचर स्टो ने गुलाम -प्रथा के विरुद्ध आग उगलने वाली वह पुस्तक ‘टॉम काका की कुटिया’ लिखकर तैयार कर दी, जिसकी प्रशंसा आज भी बेजोड़ रचना के रुप में की जाती है।
चाय बनाने के लिए पानी उबालने में जितना समय लगता है, उसमें व्यर्थ बैठे रहने की बजाय लांगफैले ने ‘इनफरल’ नामक ग्रंथ का अनुवाद करना शुरू किया और नित्य इतने छोटे समय का उपयोग इस कार्य के लिए नित्य करते रहने से उसने कुछ ही दिन में वह अनुवाद पूरा कर लिया।
इस प्रकार अगणित उदापरण हमें अपने चारों ओर बिखरे हुए मिल सकते हैं। हर उन्नतिशील और बुद्धिमान मनुष्य की मुलभूत विशेषताओ में एक विशेषता अवश्य मिलेगी-समय का सदुपयोग। जिसने इस तथ्य को समझा और कार्य रूप में उतारा उसने ही यहाँ आकर कुछ प्राप्त किया है, अन्यथा तुच्छ कार्यों मेम आलस्य और उपेक्षा के साथ दिन काटने वाले लोग किसी प्रकार साँसे तो पूरी कर लेते हैं, पर उस लाभ से वंचित ही रह जाते है, जो मानव जीवन जैसी बहुमुल्य वस्तु प्राप्त होने पर उपलब्द होनी चाहिए या हो सकती थी।
समय की संपदा नष्ट न करें
समय अपनी गति से चल रहा है, चल ही नहीं रहा-भाग रहा है। निरंतर गतिमान इस
समय के साथ कदम मिलाकर चलने पर ही मानव जीवन की सार्थकता है। इसके साथ कदम
से कदम मिलाकर नहीं चलने वाला व्यक्ति पिछड़ जाता है। पिछड़ना सफलता से
दूर हटना है, उसकी ओर गतिशील होना नहीं।
सुनते हैं कि मनुष्य की साँसें गिनी हुई हैं। एक श्वांस के साथ जीवन की इस अमूल्य निधि की एक इकाई कम हो गई। एक -एक इकाइयाँ कम होती जाएँ तो जीवन की पूँजी एक दिन चुक जाती है। उस समय मृत्यु दूत बनकर लेने आ जाते हैं, उसके साथ जाते-जाते व्यक्ति पीछे मुड़कर देखता है तो उसे ज्ञात हो जाता है कि उसने कितनी बेदर्दी से समय को गँवाया है या उसके एक -एक क्षण का सदुपयोग किया है।
संपदा का, विद्या का रोना सभी को रोते देखा है। कोई धन के अभाव में दुःखी है तो किसी के पास ज्ञान नहीं- विद्या नहीं, उसके लिए सिर पीट रहा है। समझ में नहीं आता कि यह हनुमान कब अपनी सामर्थ्य को समझेंगे तथा एक छलांग मारकर लंका पहुंच जाएँगे। विश्व की संपदा, विश्व का ज्ञान भंडार तो उनकी बाट जोह रहा है। समय जैसी मूल्यवान् संपदा का भंडार भरा होते हुए भी जो विननिमय कर धन ज्ञान तथा लोकहित को नहीं पा सकते उनसे अधिक अज्ञानी किसे कहा जाए ?
समय अमूल्य है, समय को जिसने बिना सोचे -समझे खर्च कर दिया वह जीवन पूँजी भी यों ही गँवा देता है। यह पूँजी अपने आप खर्च होती है, आप कृपण बनकर उसे सोने-चाँदी -सिक्के की तरह जोड़कर नहीं रख सकते। यह गतिवान् है, आप अपनी अन्य संपदाओं की तरह उस पर अधिकार जमा नहीं सकते। आपका उसपर स्वामित्व वहीं तक है कि आप उसका सदुपयोग कर लें।
जिस व्यक्ति में समय को खर्चने की, उसका सदुपयोग करने की सामर्थ्य नहीं होती तो समय उसे खर्च कर देता है। दिन -रात के चौबीस घंटे कम नहीं होते। इस समय को हम किस प्रकार व्यतीत करते हैं, इसका लेखा -जोखा करते चले तो हमें ज्ञात हो जाता है कि हम जी रहे हैं या समय को व्यर्थ गँवाकर एक प्रकार की आत्महत्या कर रहे हैं।
सुनते हैं कि मनुष्य की साँसें गिनी हुई हैं। एक श्वांस के साथ जीवन की इस अमूल्य निधि की एक इकाई कम हो गई। एक -एक इकाइयाँ कम होती जाएँ तो जीवन की पूँजी एक दिन चुक जाती है। उस समय मृत्यु दूत बनकर लेने आ जाते हैं, उसके साथ जाते-जाते व्यक्ति पीछे मुड़कर देखता है तो उसे ज्ञात हो जाता है कि उसने कितनी बेदर्दी से समय को गँवाया है या उसके एक -एक क्षण का सदुपयोग किया है।
संपदा का, विद्या का रोना सभी को रोते देखा है। कोई धन के अभाव में दुःखी है तो किसी के पास ज्ञान नहीं- विद्या नहीं, उसके लिए सिर पीट रहा है। समझ में नहीं आता कि यह हनुमान कब अपनी सामर्थ्य को समझेंगे तथा एक छलांग मारकर लंका पहुंच जाएँगे। विश्व की संपदा, विश्व का ज्ञान भंडार तो उनकी बाट जोह रहा है। समय जैसी मूल्यवान् संपदा का भंडार भरा होते हुए भी जो विननिमय कर धन ज्ञान तथा लोकहित को नहीं पा सकते उनसे अधिक अज्ञानी किसे कहा जाए ?
समय अमूल्य है, समय को जिसने बिना सोचे -समझे खर्च कर दिया वह जीवन पूँजी भी यों ही गँवा देता है। यह पूँजी अपने आप खर्च होती है, आप कृपण बनकर उसे सोने-चाँदी -सिक्के की तरह जोड़कर नहीं रख सकते। यह गतिवान् है, आप अपनी अन्य संपदाओं की तरह उस पर अधिकार जमा नहीं सकते। आपका उसपर स्वामित्व वहीं तक है कि आप उसका सदुपयोग कर लें।
जिस व्यक्ति में समय को खर्चने की, उसका सदुपयोग करने की सामर्थ्य नहीं होती तो समय उसे खर्च कर देता है। दिन -रात के चौबीस घंटे कम नहीं होते। इस समय को हम किस प्रकार व्यतीत करते हैं, इसका लेखा -जोखा करते चले तो हमें ज्ञात हो जाता है कि हम जी रहे हैं या समय को व्यर्थ गँवाकर एक प्रकार की आत्महत्या कर रहे हैं।
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