जीवनी/आत्मकथा >> मेरी हक़ीक़त मेरी हक़ीक़तभालचन्द्र मुणगेकर
|
3 पाठकों को प्रिय 238 पाठक हैं |
डॉ. भालचन्द्र मुणगेकर की आत्मकथा : मेरी हक़ीक़त।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
व्यक्ति-विकास की एक पारम्परिक धारणा रही है - या तो वह आनुवांशिक से होता है यह परिवेशजन्य। लेकिन इससे परे जाकर मनुष्य-विकास का यात्रा में यदि किसी पर व्यक्ति, विचार या ग्रन्थ का प्रभाव होता है तो वह वंश और परिवेश को भी लाँघकर एक अपनी मिसाल कायम करता है। इसका जीता-जागता उदाहरण डॉ. भालचन्द्र मुणगेकर की यह आत्मकथा है : ‘मेरी हक़ीक़त’।
यह आत्मकथा लेखक के होश सँभालने तक के अठारह वर्ष की ऐसी विकासगाथा है जो ‘दलित’ सीमा को लाँघकर मनुष्य की जिजीविषा का एक अदम्य स्रोत बनकर उभर आती है।
दलित बस्ती में जन्म, ‘युवक क्रान्ति दल’ में जुझारू युवापन। प्रौढ़ावस्था में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर, महात्मा फुले, कार्ल मार्क्स, वि. स. खांडेकर जैसी शख्सियतों के जीवन, साहित्य और दर्शन का उनके जीवन पर अमिट प्रभाव पड़ा।
रिजर्व बैंक के वरिष्ठ अधिकारी, अर्थशास्त्र के प्राध्यापक, मुम्बई विश्वविद्यालय के पहले दलित कुलपति और उससे भी आगे जाकर भारतवर्ष के योजना आयोग के सदस्य बनने तक का करिश्मा कोई जादुई चमत्कार नहीं है, बल्कि इसके पीछे जाति और अस्पृश्यता निर्मूलन, स्त्री-पुरुष समानता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक समाजवाद और मानवतावाद जैसे मूल्यों की पक्षधरता का कैनवस विस्तार लिए हुए है।
‘मेरी हक़ीक़त’ आत्मकथा व्यक्ति-विकास मूल्यों, विचारों, व्यक्ति-प्रभावों, जीवनधारा व दर्शन की भूमिका को रेखांकित करती है और इसीलिए न सिर्फ वह प्रेरक बन जाती है अपितु पठनीय भी।
-सुनीलकुमार लवटे
यह आत्मकथा लेखक के होश सँभालने तक के अठारह वर्ष की ऐसी विकासगाथा है जो ‘दलित’ सीमा को लाँघकर मनुष्य की जिजीविषा का एक अदम्य स्रोत बनकर उभर आती है।
दलित बस्ती में जन्म, ‘युवक क्रान्ति दल’ में जुझारू युवापन। प्रौढ़ावस्था में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर, महात्मा फुले, कार्ल मार्क्स, वि. स. खांडेकर जैसी शख्सियतों के जीवन, साहित्य और दर्शन का उनके जीवन पर अमिट प्रभाव पड़ा।
रिजर्व बैंक के वरिष्ठ अधिकारी, अर्थशास्त्र के प्राध्यापक, मुम्बई विश्वविद्यालय के पहले दलित कुलपति और उससे भी आगे जाकर भारतवर्ष के योजना आयोग के सदस्य बनने तक का करिश्मा कोई जादुई चमत्कार नहीं है, बल्कि इसके पीछे जाति और अस्पृश्यता निर्मूलन, स्त्री-पुरुष समानता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक समाजवाद और मानवतावाद जैसे मूल्यों की पक्षधरता का कैनवस विस्तार लिए हुए है।
‘मेरी हक़ीक़त’ आत्मकथा व्यक्ति-विकास मूल्यों, विचारों, व्यक्ति-प्रभावों, जीवनधारा व दर्शन की भूमिका को रेखांकित करती है और इसीलिए न सिर्फ वह प्रेरक बन जाती है अपितु पठनीय भी।
-सुनीलकुमार लवटे
|
लोगों की राय
No reviews for this book