आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
सदगुरु की तलाश प्रत्येक श्रेयार्थी साधक को करनी चाहिए। इस पुण्य प्रयोजन
के लिए प्रज्ञा अभियान के संचालन तंत्र पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माता जी
का चयन किया जा सकता है। वे इन दिनों प्रज्ञा परिजनों की तात्कालिक
आवश्यकता पूरी करने के लिए युग सन्धि में आत्मशक्ति के व्यापक उत्पादन का
महत्व समझते हुए ब्रह्मनिष्ठ आत्माओं के सृजन में निरत हैं। सूक्ष्म व
कारण शरीर से वे स्वयं तथा प्रत्यक्ष रूप में वंदनीया माता भगवती देवी
सबकी परोक्ष सहायता करने में पूर्ण सक्षम हैं।
भगवान राम के दो गुरु थे, एक गुरु - वशिष्ठ दूसरे, विश्वामित्र। वशिष्ठ
कुल-गुरु थे, योग वशिष्ट उन्होंने ही पढ़ाया था।
किन्तु बला और अतिबला विद्याएँ प्राप्त करने के लिए उन्हें यज्ञ रक्षा के
बहाने विश्वामित्र आश्रम में रहना पड़ा। जो वहाँ सीखा जा सका, वह वशिष्ठ
की सीमा से बाहर था। बला और अतिबला सावित्री-गायत्री रूपी भौतिकी एवं
आत्मिकी को कहते हैं। प्रथम के द्वारा उन्होंने असुरों को परास्त किया और
दूसरे के माध्यम से राम राज्य की स्थापना वाले और कठिन उत्तरदायित्वों को
पूर्ण कर सकने में समर्थ हुए।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान