आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
मामृवत्लालयित्री च पितृवत्मार्गदर्शिका।
नमोऽस्तु गुरु सत्तायै श्रद्धा प्रज्ञायुता च यः।।
माता के समान लालन (दुलार) करने वाली और पिता के समान मार्ग दर्शन (सुधार)
करने वाली उस गुरुसत्ता को नमस्कार है, जो श्रद्धा और प्रज्ञा से समन्वित
है।
मातरं भगवतीं देवीं श्रीरामञ्च जगद्गुरुम्।
पादपद्यमे तयो: श्रित्वा प्रणमामि मुहुर्मुहुः।।
(विश्व) माता स्वरूप वं० माता भगवती देवी शर्मा तथा जगत् पिता स्वरूप
वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्री राम शर्मा आचार्य- दोनों के चरण कमलों में
सिर झुकाकर बारम्बार प्रणाम करता हूँ।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान