आचार्य श्रीराम शर्मा >> मानवीय मस्तिष्क विलक्षण कंप्यूटर मानवीय मस्तिष्क विलक्षण कंप्यूटरश्रीराम शर्मा आचार्य
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शरीर से भी विलक्षण मस्तिष्क...
परिपक्वता का अभाव
सनकें जब अपने पूरे उभार पर होती हैं तो वे अपने वाहन को इस कदर आवेशग्रस्त
कर देती हैं और विश्वासों की इतनी गहरी भूमिका में उतार देती हैं कि वह
बेचारा संभव-असंभव का भी भेद भूल जाता है, अपनी तर्क शक्ति गँवा बैठता है और
जो कुछ भी उसे सनक ने मान बैठने के लिए कहा था उन्हीं पर पूरा विश्वास करने
लगता।
सनकी की मनःस्थिति के अनुरूप वे कल्पनाएँ कई बार एक सचाई की तरह मस्तिष्क में
जड़ जमाती हैं और धीरे-धीरे व्यक्ति गहरा विश्वास करने लगता है कि
वस्तु-स्थिति वही है जो उसके कल्पना क्षेत्र में उमड़-घुमड़ रही है। ऐसी
स्थिति में उसके लिए कल्पना कल्पना न रहकर एक सचाई बन जाती है और वह अपनी ही
उड़ानों में मान्यताओं में मकड़ी की तरह बेतरह जकड़ जाता है। पूर्ण या आंशिक
भावोन्माद की यह स्थिति कितने ही लोगों में देखी गई है। पागलखाने के डॉक्टर
ऐसे लोगों को पागल नहीं कह सकते क्योंकि अमुक विशिष्ट सनक के अतिरिक्त अन्य
बातों में वे साधारण लोगों की तरह सोचते और काम करते हैं। यदि वे पागल होते
तो सभी बातों में पागल होते। डॉक्टर अधिक से अधिक उन्हें सनकी कह सकते हैं।
सनक का एक विचित्र उदाहरण देखिए। अमेरिका में एक बहुत ही सुसंपन्न और
सुशिक्षित व्यक्ति अंतर्ग्रहीय उड़ानों की कल्पना करते-करते सनक की इस स्थिति
में जा पहुंचा, जहाँ वह मान्यता बना बैठा कि वह शुक्र ग्रह के बारे में न
केवल बहुत कुछ जानता भी है वरन् उस लोक की यात्रा तक कर आता है। वह शुक्र के
राजकुमार का मित्र है और ऐसा अंतरिक्ष यान बनाने की विधि जान चुका है जो
अंतर्ग्रही यात्राएँ बड़ी सरलता से और कम खर्च में कर सकें।
यह व्यक्ति दो करोड़पति कंपनियों का अध्यक्ष था। उम्र पचपन साल। नशेबाजी से
बिल्कुल दूर, विवाहित, दो बच्चों का पिता, धार्मिक प्रकृति, नियमित रूप से
गिरजा जाने वाला, निवासी वाशिंगटन का, नाम हैराल्ड जैसी बर्नी।
अंतरिक्ष यात्राओं के संबंध में अति भावुकतापूर्वक एकांकी चिंतन करते-करते
उसने यह मान्यता बना ली कि वह दो बार शुक्र की यात्रा कर चुका है-"वहाँ के
राजकुमार को अपना मित्र बना चुका है और ऐसी एक कंपनी बनाने में उसका सहयोग
प्राप्त कर चुका है, जो उसके कल्पित 'मैगनेटिक प्लस मोडलेटर' सिद्धांत के
अनुसार सस्ते, सरल और सुविधाजनक अंतरिक्षयान बनाया करेगी। उसने इस कंपनी का
नाम रखा "प्रोपल्सन रिसर्च लेबोरेटरीज"| बर्नी अपने को संसार का सर्वप्रथम
शुक्र ग्रह यात्री मानता था और उसने अपनी दो यात्राओं का विवरण बताने वाली
पुस्तक "शुक्र ग्रह में दो सप्ताह" भी लिखी, वह ११८ पृष्ठ की थी। उसकी सीमित
प्रतियाँ टाइप की गई थीं, प्रेस में नहीं छपाई गई थी, क्योंकि विषय 'अत्यंत
गोपनीय था।' इस आविष्कार के आधार पर "अरबों खरबों की संपत्ति कमाई" जानी थी।
बर्नी अपनी सनक में पूरी तरह खो गया था। कल्पना और यथार्थता का अंतर भुला
देने वाली उसकी मनःस्थिति बन गई थी। उसने आवेश में अपने १६६,००० डालर के शेयर
बेच डाले। आश्चर्य यह कि जिस आत्मविश्वास के साथ बातें की उससे प्रभावित होकर
अनेक सुसंपन्न लोग उसकी बातों पर यकीन करने लग गए और उसके शुक्र ग्रह अभियान
में सम्मिलित हो गये उस कार्य के लिए इन लोगों ने भी अपना प्रचुर धन लगा
दिया। सनक का स्वरूप इतना बड़ा योजनाबद्ध हो सकता है, इसका इतना आश्चर्यजनक
उदाहरण अन्यत्र कदाचित् ही मिलेगा।
बर्नी की महिला सेक्रेटरी 'एन्जेलिका' पूरी तरह इन गतिविधियों पर विश्वास
करती थी। उस बेचारी को पता तक न था कि जिस प्रयोजन के लिए वह इतनी दौड़-धूप
कर रही है वह एक सनकी की निरुद्देश्य और निष्फल मिथ्या कल्पना मात्र थी। एक
दिन बर्नी को और भी विचित्र सनक चढ़ी, उसने 'शुक्रग्रह से अपनी सेक्रेटरी को
वहाँ के राजकुमार यूसीलस' की ओर से फोन कराया कि इस ग्रह पर आकार बर्नी बीमार
हो गये हैं और अपने साथियों के नाम अमुक संदेश नोट कराते हैं, जो उन तक
पहुंचा दिया जाए। सेक्रेटरी ने वैसा ही किया। इसके बाद कुछ समय उपरांत ही
उसके मरने का समाचार आ गया।
सेक्रेटरी ने उचित समझा कि अमेरिका का भाग्य बदल देने वाली इतनी बड़ी योजना
को अधूरी न पड़ी रहने दे वरन् राष्ट्रपति को बता दे। बदहवासी में किंतु पूरे
आत्मविश्वास के साथ एंजेलिका राष्ट्रपति आइजन हावर से मिली। बी की दो शुक्र
यात्राओं से लेकर उसका अंतरिक्ष यान बनाने की योजना और उस लोक में जाने का
पूरा विवरण बताया और सुझाव दिया कि वे स्वयं इस राष्ट्रपति ने इस कार्य को
हाथ में लें और आगे बढ़ायें।
राष्ट्रपति ने इस रोमांचक एवं विचित्र विवरण पर विश्वास न कर उनसे सारा मामला
गुप्त पुलिस के उच्च अधिकारियों को सौंप दिया। पुलिस ने छान बीन की तो शुक्र
पर मरा हुआ 'बर्नी' धरती पर ही जीवित अवस्था में, अर्धविक्षिप्त स्थिति में
पाया गया। वह अपने वतन से बहुत दूर एक साइनबोर्ड बनाने वाले के यहाँ पेट भरने
जितनी मजदूरी कर रहा था, भिखारियों जैसे फटे हाल में रहता हुआ पुलिस ने उसे
पकड़ लिया। अदालत में उस पर झूठी अफवाहें फैलाने और धोखाधड़ी करने के अपराध
में मुकदमा और इसके लिए अदालत ने उसे जेल की सजा भी सुना दी।
मानसिक रोगों में सनक का अपना स्थान है। यह रोग दिन-दिन बढ़ रहा है। लोग तर्क
शक्ति का उपयोग नहीं करते, विवेक पर जोर नहीं देते। मानसिक आलस्य और नशेबाजी
का सम्मिश्रण मानसिक स्तर को इतना दुर्बल बना देता है कि उसमें सनकों के पलने
की संभावना ही चली जाती है।
ब्रिटेन के अस्पतालों में अब मानसिक रोगों के शिकार व्यक्तियों की संख्या
तेजी से बढ़ती जा रही है। इनमें न केवल प्रौढ़ व्यक्ति वरन् छोटे बच्चे भी
शामिल हैं। बड़ी आयु के लोग चिंताओं, मानसिक दबावों अथवा नशेबाजी आदि कारणों
से विक्षिप्त हो सकते हैं, पर छोटे बच्चे क्यों इन रोगों के शिकार होते हैं ?
इस संबंध में वहाँ बहुत अधिक चिंता की जा रही है। इस संबंध में सर जूलियस
हक्सले के नेतृत्व में जो शोध आयोग बना, उसने रिपोर्ट दी है कि पाँच में से
एक मानसिक रोगी यह व्यथा अपने माँ-बाप से लेकर आता है। अर्धविक्षिप्त और सनकी
नर नारी अपेक्षाकृत अधिक बच्चे उत्पन्न करते हैं और उन बालकों में ये
बीमारियाँ जन्म से ही आती हैं, जो आयु वृद्धि के साथ-साथ अधिक स्पष्ट रूप से
प्रकट होने लगती हैं।
शारीरिक और मानसिक उच्छंखलता बरतने से विवेक बुद्धि खीजने लगती है और सोचने
लगती है कि जब अपनी विवेचना और निष्कर्ष का कुछ उपयोग ही नहीं, जो चाहा सो
बरता वाली नीति चल रही है, तो फिर उखाड़-पछाड़ करने का क्या लाभ ? ऐसी थकी
बद्धि की पहरेदारी शिथिल पड़ने पर सनकों को फलनेफूलने का अवसर मिल जाता है और
ऐसे उदाहरण सामने आते हैं जिनमें से एक का वर्णन ऊपर दिया गया है।
गहराई से विचार करें तो हममें से अधिकांश व्यक्ति अपने ढंग के सनकी हैं। जीवन
का लक्ष्य, स्वरूप, उपभोग आदि सब हम लगभग पूरी तरह भूल चुके हैं। उपलब्ध
अद्भुत क्षमताओं, अनुपम परिस्थितियों और दिव्य अनुदानों का क्या सदुपयोग हो
सकता है ? यह हमें तनिक भी नहीं सूझता। जो न सोचने योग्य है वह सोचते हैं और
जो न करने योग्य हैं—सो करते हैं, मिथ्या विडंबनाओं में उलझे और मोद मनाते
रहते हैं। अंततः पापों की गठरी सिर पर बाँध कर अंधकारमय भविष्य के गर्त में
गिरने के लिए चले जाते हैं। क्या यह सनकीपन नहीं है ? आत्मनिरीक्षण करें,
अपनी वर्तमान गतिविधियों पर विचार करें, तो प्रतीत होगा कि अमेरिका के
उपरोक्त सनकीपन से अपना भी सनक भरा जीवन क्रम किसी प्रकार कम नहीं है।
सनक की बढती हई बीमारी लोक व्यवहार और दष्टिकोण निर्धारण के दोनों ही
क्षेत्रों को अपने चंगुल में कसती चली जा रही है, यह कम चिंता का विषय नहीं
है।
सनकीपन जिस प्रकार स्वभाव में सम्मिलित एक मानसिक दुर्बलता है, उसी प्रकार
दंभ भी एक मानसिक दुर्बलता ही है। सनकी व्यक्ति अपनी अव्यावहारिक कल्पनाओं के
मिथ्या लोक में रमण करता रहता है, वही क्षेत्र के कारण व्यक्ति अपने आपके
बारे में अतिरंजित घटनाएँ बना लेता है।
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