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			 आचार्य श्रीराम शर्मा >> मानवीय मस्तिष्क विलक्षण कंप्यूटर मानवीय मस्तिष्क विलक्षण कंप्यूटरश्रीराम शर्मा आचार्य
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शरीर से भी विलक्षण मस्तिष्क...
अचेतन ही नहीं मस्तिष्क अतींद्रिय भी
      भौतिक जानकारी संग्रह करने वाले चेतन मस्तिष्क और स्वसंचालित नाड़ी संस्थान
      को प्रभावित करने वाले अचेतन मस्तिष्क तक का ही ज्ञान अभी विज्ञान क्षेत्र की
      परिधि में आया है; पर अब अतींद्रिय मस्तिष्क के अस्तित्व को भी स्वीकारा जा
      रहा है, क्योंकि बहुत सी ऐसी घटनाएँ घटित होती रहती हैं, जिनसे भविष्य में
      होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास मिलने और उसके अक्षरशः सही उतरने के प्रमाण
      मिलते हैं। यह प्रभाव इतने स्पष्ट और इतने प्रामाणिक व्यक्तियों द्वारा
      प्रस्तुत किये गये होते हैं कि उनमें किसी प्रकार के संदेह की गुंजायश नहीं
      रह जाती।
      
      अतींद्रिय चेतना का मानवी सत्ता में अस्तित्व स्वीकार किये बिना इन
      भविष्यवाणियों का और कोई कारण नहीं रह जाता। योगी और सिद्ध पुरुष जिस दिव्य
      चेतना को अपनी तप साधना के माध्यम से विकसित करते हैं, वह कई बार कई
      व्यक्तियों में अनायास और जन्मजात स्तर पर भी पाई जाती है। इस सत्ता का विकास
      करके मनुष्य सीमित परिधि के बंधन काटकर असीम के साथ अपने संबंध मिला सकता है
      और अपनी ज्ञान परिधि को उतनी ही विस्तृत बना सकता है। समय-समय पर इस प्रकार
      के जो प्रमाण मिलते रहते हैं, उनसे उस संभावना को और भी अधिक बल मिलता है कि
      आत्म विकास के प्रयत्न मनुष्य को कहीं से कहीं पहुँचा सकने में समर्थ हैं।
      
      अतींद्रिय ज्ञान के संबंध में कई प्रामाणिक ग्रंथ पाये जाते हैं। उनमें कुछ
      यह है—(१) टी० लोव संग रंपा कृत-थर्ड आई (२) सुग्र अल जहीर द्वारा
      लिखित-मठभूमि की आध्यात्मिक यात्रा। डेनियल बारे लिखित—(३) दी मेकर ऑफ हैवनली
      ट्रेइजर्स। इन पुस्तकों में लेखकों ने अपनी निजी दिव्य अनुभूतियों के वे
      वर्णन लिखे हैं जो उन्होंने आज्ञा चक्र स्थित तीसरे नेत्र से देखे और परीक्षा
      की कसौटी पर पूर्णतया खरे उतरे। भूमध्य भाग में अवस्थित तीसरा नेत्र
      देवी-देवताओं के ही नहीं मनुष्य के भी होता है और वह उसे विकसित करके
      दिव्यदर्शी बन सकता है।
      
      उपरोक्त लेखकों द्वारा उल्लेखित घटनाओं और विवरणों के अनुसार यह अतींद्रिय
      क्षमता मस्तिष्क के उच्चतम विकास के कारण ही प्राप्त हुई है। डेनियल ने अपनी
      पुस्तक "द मैकर ऑफ हैवनली ट्रेजर्स" में लिखा है कि साधारण मनुष्यों से अलग
      और विलक्षण मस्तिष्कीय क्षमताओं वाले जितने भी व्यक्ति प्रकाश में आये हैं,
      उनकी विशेषताओं का मूल उनके मानसिक विकास पर निर्भर करता है। यह विकास कई बार
      तो जन्मांतरों की मानसिक प्रगति के कारण छोटी आयु में अनायास ही हो जाता है,
      किंतु इस विकासक्रम का मार्ग अवरुद्ध किसी के लिए भी नहीं है। प्रयत्न पूर्वक
      कोई भी अपनी मानसिक क्षमताओं का क्रमिक विकास करते हुए उन्हें उच्च स्तर तक
      पहुँचा सकता है।
      
      
      एक विशेषज्ञ के अनुसार यदि संसार भर के विद्युतीय संयंत्र इकट्ठे कर लिये
      जाएँ और उन उपकरणों की समस्त पेचीदगी इकट्ठी कर ली जाए तो वह उस पेचीदगी से
      कहीं कम प्रतीत होगी, जो मानवी-मस्तिष्क में भरे साढ़े चार पाव 'ग्रे मेटर'
      में भरी पड़ी है।
      
      मस्तिष्क का सामने वाला भाग सेरिब्रम संवेदनाओं और इच्छाओं का केंद्र है।
      बुद्धि, विचारशीलता और भावनाएँ भी यहीं उत्पन्न होती है। मस्तिष्क का पिछला
      हिस्सा 'सेरिबेलम' कहा जाता है। यह शरीर के संतुलन को बनाये रखने की तथा
      विभिन्न अवयवों की गतिविधियों को स्वसंचालित रखने की भूमिका संपादित करता है।
      हमारी सहज क्रियाएँ रिफ्लैक्स एक्शन का नियंत्रण भी यहीं से होता है।
      मस्तिष्क का तीसरा भाग जिसको "मेडुला ऑब्लॉगेंटा" कहते हैं, अंगों की
      स्वसंचालित-प्रक्रिया का अधिष्ठाता है।
      
      मस्तिष्क का एक और भी वर्गीकरण हो सकता है। भूरा पदार्थ बुद्धि का और सफेद
      पदार्थ क्रिया का संचालन करता है। मस्तिष्क का दाहिना भाग शरीर के बायें भाग
      का और बाँया भाग शरीर के दाहिने भाग का संचालन करता है।
      
      यह मस्तिष्कीय संरचना अपने आप में पूर्ण है। उसमें स्वावलंबन की और
      घात-प्रतिघात सहने की अद्भुत क्षमता मौजूद है। बाहरी पोषण से अथवा मानसिक
      व्यायामों से वह विकसित हो सकता है और अवरोधों का सामना करने के लिए अभ्यस्त
      हो सकता है। किंतु ऐसा कुछ न भी किया जाये तो भी वह अपनी समर्थता का कई बार
      अनायास ही ऐसा परिचय देता है, जिसे देखकर उसकी आत्म-निर्भरता को स्वीकार करना
      पड़ता है। निद्रा को मस्तिष्क की खुराक माना जाता है और कहा जाता है कि यदि
      मनुष्य सोये नहीं तो जल्दी ही पागल हो जायेगा या मर जायेगा। पर ऐसे अनेक
      प्रमाण मौजूद हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि मस्तिष्क निद्रा आदि किसी सुविधा
      की परवाह न करके अपने बलबूते-अपना काम भली प्रकार चलाता रह सकता है।
      
      इंग्लैंड के एक जे० डब्ल्यू० स्मिथ नामक ७६ वर्षीय किसान की निद्रा उसकी १८
      वर्ष की आयु में किसी बीमारी के कारण सदा के लिए नष्ट हो गई और इसके बाद वह
      कभी भी नहीं सोया। ५८ वर्ष तक बिना निद्रा के भी उसका काम बिना रुकावट के
      चलता रहा।
      
      स्पेन के अर्नेस्टो यअर्स कृषि-फार्म में काम करने वाले लोर्टन मेडिना की आयु
      जब ७० वर्ष की थी। तब वे विगत ५० वर्ष से नहीं सोये। इससे उनकी मुस्तैदी में
      कमी नहीं आई। दिन भर खेत पर काम करते हैं और रात को जागते रहने के कारण वे ही
      चौकीदार लेट भर लेते, उतने से ही उनका काम चल जाता। स्पेन के स्वास्थ्य-विभाग
      ने उनके मरण उपरांत मस्तिष्क की चीर-फाड़ करके अनिद्रा के कारण और उसकी
      क्षति-पूर्ति होते रहने की विशेषता जानने का अधिकार प्राप्त कर लिया।
      
      पूर्वी पटेल नगर दिल्ली में बाबा रामसिंह नामक एक शतायु सज्जन बच्चों की
      कापी-पेंसिल जैसी चीजों की दुकान चलाते थे। उनका कथन था कि गत २२ वर्ष से एक
      क्षण के लिए भी नहीं सोये। इस बात की पुष्टि उस मुहल्ले के सभी लोग करते थे,
      जो रात-बिरात उधर से निकलने पर उन्हें बैठा, गुनगुनाता या कुछ न कुछ खटपट
      करते देखा करते थे। 
      			
						
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